Gyanvapi Survey: ज्ञानवापी मस्जिद मामले में एएसआई की सर्वे रिपोर्ट सामने आने के बाद से इस पर लगातार चर्चा हो रही है. रिपोर्ट को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्ष के अपने-अपने दावे और बयान सामने आ रहे हैं. इसी बीच काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद का भी बयान सामने आ रहा है, जिन्होंने कहा है कि ज्ञानवापी के तहखाने के नीचे मंदिर का इतिहास उत्खनन के जरिये पता किया जा सकता है. एएसआई सर्वे में ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार (जीपीआर) सर्वे भी यही इशारा कर रहे हैं. क्योंकि मस्जिद के तहखाने के फर्श के तीन मीटर नीचे भी फर्श मिलने से कई सवाल उठ रहे हैं. एक कुआं भी है, लेकिन वहां अब तक कोई पहुंच नहीं पाया है.
इसी के साथ ही बीएचयू के प्राचीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर और पुरातत्वविद अशोक कुमार सिंह ने बताया है कि डेढ़ साल पहले बनारस के बभनियांव गांव में जमीन के नीचे दबे शिवलिंग मिले थे. उनका दावा है कि, अगर गांव में जिस पैटर्न पर खोदाई हुई थी, उसी तरह से ज्ञानवापी में भी खुदाई की जाए तो संभव है कि तहखाने के नीचे मंदिर का सही इतिहास पता चल सके. आगे कहते हैं कि जीपीआर सर्वे के मुताबिक मंदिर का इतिहास गुप्त काल (240 ईसवी से 550 ईसवी) का हो सकता है. वह कहते हैं कि पुरातत्वशास्त्र में माना जाता है कि कहीं पुरातात्विक साक्ष्य मिलते हैं तो उसके प्रत्येक एक मीटर नीचे जाने पर पूरी शताब्दी बदलती जाती है. हम समय में पीछे चलते जाते हैं.
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पुरातत्वविद अशोक कुमार सिंह ने मीडिया को दिए बयान में आगे कहा कि वाराणसी के बभनियांव गांव में खोदाई की गई तो पहले 500 साल पुरानी वस्तुएं मिलीं और फिर इसके बाद 1000 वर्ष पुरानी, फिर 1500 वर्ष और इसके बाद 2000 साल प्राचीन वस्तुएं, पूजा की सामग्री, मंदिर की दीवार, प्रदक्षिणा पथ आदि मिले थे. वह कहते हैं कि जैसे-जैसे खोदाई होती गई, वैसे-वैसे मंदिर का इतिहास बदलता गया. वह कहते हैं कि इसी तरह ज्ञानवापी का मामला भी है. इसको लेकर जितना नीचे जाएंगे, स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के बारे में उतनी ही बातें सामने आएंगी.
बता दें कि एएसआई की सर्वे रिपोर्ट गुरुवार को कोर्ट द्वारा सार्वजनिक कर दी गई, जिससे साफ होता है कि मस्जिद से पहले वहां बड़ा हिंदू मंदिर था. 839 पेज की सर्वे रिपोर्ट में कई अहम जानकारियां दी गई हैं, जिसमें से एक जीपीआर सर्वे हिंदू मंदिर की प्राचीनता का सच सामने ला रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, तहखाने के नीचे फर्श के बारे में जानकारी सामने आई है, लेकिन वह किस सामग्री से बना है, किस राजवंश और किस वर्ष में बना है, अभी पता नहीं चल पाया है.
-भारत एक्सप्रेस
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