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महिला के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने से हाई कोर्ट का इनकार, पूर्व पति से 25 लाख रुपये और कार लेने की आरोपी है महिला

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने पूर्व पति से 25,00,000 और घड़ियां, चश्मा और ऑडी कार सहित कई महंगी वस्तुएं लेने के आरोप में एक महिला के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया है. यह आदेश जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने दिया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि वर्तमान मामले में लगाए गए आरोप महिला के खिलाफ पुरुष द्वारा दायर पिछले मामले के आरोपों से मिलते-जुलते नहीं हैं.

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपों की पुष्टि के लिए प्राथमिकी दर्ज की जाती है और इसका मतलब यह नहीं है कि आरोपी अपराध का दोषी है. अदालत ने कहा यह देखते हुए कि प्राथमिकी को रद्द करने का कोई वैध आधार नहीं है. अदालत ने कहा यदि जांच अधिकारी को लगता है कि आरोपों में कोई दम नहीं है या इन आरोपों की पहले की प्राथमिकी में जांच की जा चुकी है और वे निराधार पाए गए हैं, तो ऐसा कुछ भी नहीं है जो उसे अपनी जांच के संदर्भ में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने से रोकता हो.

न्यायालय महिला द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें 2022 में उसके पूर्व साथी द्वारा दर्ज की गई शिकायत के आधार पर उसके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी. एफआईआर में धारा 379 (चोरी), 406 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी) और 471 (जाली दस्तावेज का उपयोग करना) के तहत आरोप शामिल हैं.

एफआईआर के अनुसार दंपति की मुलाकात 2015 में हुई थी जब वह एक बैंक में सहायक प्रबंधक के रूप में काम कर रही थी. इसके बाद महिला ने खुद को एक तलाकशुदा और एक छोटे बच्चे की मां के रूप में पेश किया और इन बहानों के तहत उसके साथ संबंध बनाना शुरू कर दिया. पुरुष ने दावा किया कि महिला ने अपने पति को अपने भाई और एक अन्य व्यक्ति को अपने पिता के रूप में पेश किया. आखिरकार उसने उसके साथ रहने का फैसला किया और अपनी शादी को औपचारिक रूप देने के लिए 15 फरवरी, 2022 को शादी का हलफनामा तैयार किया.

पुरुष द्वारा दर्ज की गई शिकायत के अनुसार महिला ने अन्य सह-आरोपियों के साथ मिलकर 13,00,000 से अधिक मूल्य की तीन लग्जरी घड़ियां, 1,50,000 मूल्य के पांच जोड़ी ब्रांडेड चश्मे चुराने की साजिश रची और उसकी ऑडी ए6 भी ले ली. इसके अलावा, महिला ने धमकी दी कि अगर वह उनकी मांगें पूरी नहीं करता है तो वह और सह-आरोपी उसे परेशान करने के लिए उसके खाली चेक दूसरों को बांट देंगे.

हालांकि, महिला ने तर्क दिया कि एफ़आईआर उस व्यक्ति के खिलाफ़ पहले दर्ज की गई दुष्कर्म की शिकायत का जवाबी हमला है. उसके वकील ने दावा किया कि मौजूदा एफ़आईआर में लगाए गए आरोप झूठे, तुच्छ और उसे परेशान करने का एक साधन हैं. इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि मौजूदा एफ़आईआर में पहले दर्ज की गई एफ़आईआर के समान ही तथ्य शामिल हैं, जिसकी पहले ही जांच हो चुकी है और जिसके परिणामस्वरूप क्लोजर रिपोर्ट तैयार की गई है.

शुरू में, कोर्ट ने नोट किया कि जहां कुछ आरोप ओवरलैप होते हैं, वहीं दूसरी एफ़आईआर में अतिरिक्त आरोप अलग-अलग तारीखें और अलग-अलग लेन-देन शामिल हैं. चूंकि आरोप एक जैसे नहीं है इसलिए दूसरी एफ़आईआर को रद्द नहीं किया जा सकता था. इस प्रकार न्यायालय ने जांच जारी रखने की अनुमति दे दी तथा महिला द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी.

ये भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के बाद अगले आदेश तक के लिए कार्यवाही पर लगाया रोक

-भारत एक्सप्रेस

गोपाल कृष्ण

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