दिल्ली हाई कोर्ट ने 30 वर्षीय व्यक्ति के मामले को मेडिकल बोर्ड को भेजने से इनकार कर दिया है, जिसे 2013 में सिर में चोट लगी थी और वह वानस्पतिक अवस्था में पड़ा हुआ है. अदालत ने उसे निष्क्रिय इच्छा मृत्यु की अनुमति देने से इनकार कर दिया है.
उच्च न्यायालय ने कहा कि मामले के तथ्य संकेत देते हैं कि व्यक्ति को यांत्रिक रूप से जीवित नहीं रखा जा रहा है और वह बिना किसी अतिरिक्त बाहरी सहायता के खुद को जीवित रखने में सक्षम है. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा याचिकाकर्ता किसी भी जीवन रक्षक प्रणाली पर नहीं है और याचिकाकर्ता बिना किसी बाहरी सहायता के जीवित है. हालांकि न्यायालय माता-पिता के साथ सहानुभूति रखता है, क्योंकि याचिकाकर्ता गंभीर रूप से बीमार है. यह न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता और ऐसी प्रार्थना पर विचार करने की अनुमति नहीं दे सकता जो कानूनी रूप से अस्वीकार्य है.
उच्च न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के कई निर्णयों का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि सक्रिय इच्छा मृत्यु कानूनी रूप से अस्वीकार्य है. अदालत ने कहा याचिकाकर्ता जीवित है और किसी भी व्यक्ति, जिसमें चिकित्सक भी शामिल है, को किसी अन्य व्यक्ति को कोई घातक दवा देकर उसकी मृत्यु का कारण बनने की अनुमति नहीं है, भले ही इसका उद्देश्य रोगी को दर्द और पीड़ा से राहत दिलाना ही क्यों न हो.
अदालत ने कहा कि वह याचिकाकर्ता के इस अनुरोध को स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं है कि उसे मेडिकल बोर्ड के पास भेजा जाए ताकि यह विचार किया जा सके कि उसे निष्क्रिय इच्छा मृत्यु की अनुमति दी जा सकती है या नहीं और याचिका खारिज कर दी. निष्क्रिय इच्छामृत्यु का अर्थ है वेंटिलेटर या फीडिंग ट्यूब जैसे कृत्रिम जीवन समर्थन को रोककर जानबूझकर रोगी को मरने देना.
उच्च न्यायालय एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें निष्क्रिय इच्छा मृत्यु के लिए उसकी स्वास्थ्य स्थिति की जांच करने के लिए मेडिकल बोर्ड गठित करने के निर्देश देने की मांग की गई थी.
-भारत एक्सप्रेस
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