देश

भारत औपनिवेशिक विचारों को नकार रहा है: उपराष्ट्रपति

भारत तेजी से औपनिवेशिक मानसिकता को छोड़ रहा है. हम अब पूर्व में पूजनीय औपनिवेशिक विचारों और प्रतीकों को चुनौती दे रहे हैं. भारतीय लोक प्रशासन में भारतीय विशेषताएं होनी चाहिए, जो औपनिवेशिक मानसिकता से दूर हों, जो स्वतंत्रता के बाद हमारी आकांक्षाओं के अनुरूप हो. सोमवार को यह बातें उपराष्ट्रपति, जगदीप धनखड़ (Vice President Jagdeep Dhankhad)  ने कही. वह नई दिल्ली (New Delhi) में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (Indian Institute of Public Administration) की 70वीं वार्षिक बैठक को संबोधित कर रहे थे.

औपनिवेशिक युग के 1500 कानून अब नहीं

कार्यक्रम के दौरान उपराष्ट्रपति ने कहा, भारतीय लोक प्रशासन में भारतीय विशेषताएं होनी चाहिए जो औपनिवेशिक मानसिकता से परे हो और स्वतंत्रता के बाद की हमारी आकांक्षाओं के अनुरूप हों. भारत तेज गति से औपनिवेशिक मानसिकता को छोड़ रहा है. अब चिकित्सा या प्रौद्योगिकी सीखने के लिए अंग्रेज़ी की आवश्यकता नहीं है. देश आज औपनिवेशिक विचारों और प्रतीकों को चुनौती दे रहा है.


ये भी पढ़ें: विदेशी मुद्रा भंडार में कनाडा, अमेरिका और जर्मनी से आगे भारत


राजपथ अब कर्तव्य पथ है और रेस कोर्स रोड (Race Course Road) अब लोक कल्याण मार्ग (Lok Kalyan Marg) है. नेताजी अब उस कैनोपी के नीचे विराजमान हैं, जहा पहले कभी सम्राट जॉर्ज की प्रतिमा हुआ करती थी. भारतीय नौसेना के चिन्ह को बदलकर उसमें तिरंगे को समाहित किया गया है. औपनिवेशिक युग के 1500 कानून अब कानून की पुस्तकों में नहीं हैं. नए आपराधिक कानून, भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली को औपनिवेशिक विरासत से मुक्त किया है. यह एक महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी बदलाव है कि ‘दंड’ संहिता अब ‘न्याय’ संहिता बन गई है, जो पीड़ितों की हितों की रक्षा, अभियोजन को कुशलतापूर्वक पूर्ण करने और अन्य कई पहलुओं में सुधार पर केंद्रित है.

डेटा हमारे प्रक्रियाओं के अग्रिम पंक्ति में हो

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि लोक अधिकारियों में सॉफ्ट स्किल्स, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और सांस्कृतिक क्षमता का विकास महत्वपूर्ण है ताकि अधिकारी हाशिये पर मौजूद कमजोर वर्ग की कठिनाइयों को समझ कर ऐसी नीतियां तैयार करें जिनसे चुनौतियों का समाधान हो. धनखड़ ने कहा, “जैसे-जैसे हम शासन के नए युग में प्रवेश कर रहे हैं, डेटा हमारे निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं के अग्रिम पंक्ति में होना चाहिए. विभिन्न कल्याणकारी नीतियों के प्रभाव को समझने के लिए प्रमाण आधारित अध्ययन आवश्यक हैं.

साइबर सुरक्षा और डेटा की गोपनीयता को प्राथमिकता दें

उन्होंने आगे कहा, अनुभवजन्य साक्ष्यों पर आधारित मूल्यांकन न केवल हमारे संस्थानों की विश्वसनीयता को बढ़ाएगा बल्कि शासन में सार्वजनिक विश्वास को भी बरकरार रखेगा. यह उन लोगों के लिए एक उपयुक्त जवाब भी साबित होगा जो भारत के अभूतपूर्व विकास को स्वीकार नहीं करते और हमारे संस्थानों को कलंकित करने का कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. जब हम प्रौद्योगिकी को समाहित करते हैं तो हमें साइबर सुरक्षा और डेटा की गोपनीयता को प्राथमिकता देनी चाहिए. नागरिकों के बीच विश्वास का वातावरण निर्मित होना चाहिए, जहां वे महसूस करें कि उनकी जानकारी सुरक्षित है और जिम्मेदारी से उपयोग की जा रही है.”

-भारत एक्सप्रेस

आईएएनएस

Recent Posts

महिला पर विवादित टिप्पणी के चलते संजय राउत के भाई सुनील राउत पर मुकदमा दर्ज

Sunil Raut Controversial Comment: शिवसेना (यूबीटी) के उम्मीदवार और संजय राउत के भाई सुनील राउत…

9 mins ago

BJP नेता गौरव वल्लभ का बड़ा बयान, ’23 नवंबर से बांग्लादेशी घुसपैठियों को चुन-चुनकर झारखंड से बाहर खदेड़ा जाएगा’

Jharkhand Assembly Election 2024: बीजेपी नेता गौरव वल्लभ ने कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को यह…

29 mins ago

Delhi Waqf Board Case: आप के खिलाफ दाखिल चार्जशीट पर संज्ञान लेने को लेकर कोर्ट 6 नवंबर को सुनाएगा फैसला

दिल्ली वक्फ बोर्ड से जुड़े धन शोधन के मामले में आम आदमी पार्टी (AAP) के…

10 hours ago

मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया को लेकर सुनवाई टली, जानें वजह

दिल्ली शराब नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)…

11 hours ago

जेल में वकीलों की असुविधाओं से संबंधित याचिका पर Delhi HC ने अधिकारियों को निर्देश दिया, कहा- 4 सप्ताह में अभ्यावेदन पर शीघ्र निर्णय लें

दिल्ली हाई कोर्ट ने महानिदेशक (कारागार) को निर्देश दिया कि वह जेलों में अपने मुवक्किलों…

11 hours ago