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भारत की टॉयलेट तकनीक से ‘Squatty Potty’ को मिलियन डॉलर्स का मुनाफा

आज के मॉडर्न घरों में भारतीय स्टाइल के टॉयलेट को अक्सर पिछड़ा और पुराना माना जाता है, लेकिन यही पारंपरिक डिजाइन अब एक अमेरिकी कंपनी के लिए करोड़ों डॉलर का कारोबार बन गया है. अमेरिका की कंपनी ‘Squatty Potty’ ने भारतीय पखाने की हजारों साल पुरानी तकनीक का उपयोग कर कब्ज की समस्या का समाधान पेश किया और इसने मिलियन डॉलर्स का बिजनेस खड़ा कर लिया है.

जूडी एडवर्ड्स का कब्ज से छुटकारा पाने का आइडिया

अमेरिका की जूडी एडवर्ड्स, जो कब्ज की समस्या से परेशान थीं, ने इस समस्या से निजात पाने के लिए एक अनोखा तरीका अपनाया. अपने पति बिल और बेटे बॉबी के साथ मिलकर उन्होंने एक विशेष डिजाइन तैयार किया. यह डिज़ाइन भारतीय शौचालय पद्धति से प्रेरित था, जिसमें कमोड के दोनों ओर पायदान होते हैं, जिससे पैर मोड़कर शौच करना आसान हो जाता है.

‘Squatty Potty’ का डिजाइन और असर

जूडी को यह आइडिया तब आया जब वह शौच करते समय अपने पैरों के नीचे किताबें रखती थीं, ताकि पैरों को ऊंचा किया जा सके और शौच की प्रक्रिया को सहज बनाया जा सके. इस विचार से प्रेरित होकर उन्होंने ‘Squatty Potty’ नामक उत्पाद का डिजाइन तैयार किया.

‘Squatty Potty’ का उपयोग करने से शौच के दौरान शरीर की स्थिति भारतीय पखाने जैसी हो जाती है, जो कब्ज और अन्य पेट संबंधी समस्याओं को कम करने में मदद करती है. इस नवाचार ने जूडी को रातों-रात सफलता दिलाई.

मुनाफे में चमत्कारी वृद्धि

2011 में स्थापित इस कंपनी ने महज़ कुछ सालों में सफलता की नई ऊंचाइयां छू लीं. जूडी ने पहले ही साल में चीन में 2,000 टॉयलेट बेचे और 1 मिलियन डॉलर का मुनाफा कमाया. 2017 तक, ‘Squatty Potty’ ने अमेरिका में 4 मिलियन टॉयलेट बेच दिए, और 2020 तक कंपनी ने दुनियाभर में 5 मिलियन टॉयलेट बेचे.

भारत की प्राचीन पद्धति की अहमियत

यहां दिलचस्प बात यह है कि ‘Squatty Potty’ का डिज़ाइन और इसका सिद्धांत भारत की प्राचीन पद्धति से प्रेरित है. भारतीय शैली के शौचालय का उपयोग लगभग 8,000 साल पहले हड़प्पा सभ्यता में किया जाता था, और यह तकनीक सिंधु घाटी सभ्यता से ही विकसित हुई थी. हड़प्पा सभ्यता में फ्लश और नॉन-फ्लश टॉयलेट्स के अलावा एक जटिल जल निकासी प्रणाली भी थी, जिससे यह साबित होता है कि भारतीय सभ्यता ने शौचालय और जल निकासी प्रणाली में कई तरह की उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया था.

यह माना जाता है कि भारत से यह ज्ञान मिस्र और फिर रोमन सभ्यता में पहुंचा, जहां रोम के टॉयलेट सिस्टम में भारतीय पद्धतियों का प्रभाव देखा गया.

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जापानी और भारतीय शौचालय की समानताएँ

चलिए, इसे पूरी तरह से स्वीकार कर लें – चाहे हम पश्चिमी कमोड का कितना भी प्रयोग करें, भारतीय शैली के शौचालय अपने पारंपरिक डिज़ाइन के कारण हर लिहाज से बेहतर हैं. इसके सिद्धांत को जापानी टॉयलेट डिजाइन में भी अपनाया गया है, जो शौच को आरामदायक बनाने के लिए इसी पद्धति का पालन करते हैं.

इससे यह साबित होता है कि भारतीय तकनीक न केवल प्राचीन समय में, बल्कि आज भी लोगों की दैनिक जिंदगी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, जो समग्र स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद साबित हो रही है.

-भारत एक्सप्रेस

Vikash Jha

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