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विकास की राह ताक रही हैं अभी भी झारखंड-छत्तीसगढ़ की कई रेल परियोजनाएं

12 मार्च को रांची-मुरी, बोकारो-वाराणसी बंदे भारत ट्रेन का उद्घाटन प्रधानमंत्री द्वारा किया जाना है. अभी 4 दिन पहले ही हटिया रेल मंडल की विभिन्न विकास योजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन भी प्रधानमंत्री के द्वारा किया गया. इतना ही नहीं, हटिया रेल मंडल को नए बजट में भी भरपूर तवज्जो मिला लेकिन आज भी झारखण्ड के विकास और झारखण्ड छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के एकीकरण के लिए कई योजनाएं हैं जो अपनी स्वीकृति की राह ताक रही हैं. इन योजनाओं में लोहरदगा लाइन, रांची-लोहरदगा-टोरी रेल लाइन का दोहरीकरण, रांची से देश के दक्षिण और पश्चिमी भाग के लिए और अधिक ट्रेनों की शुरूआत आदि प्रमुख हैं.

इन परियोजनाओं का है औचित्य

ऐसा नहीं कि इन रेल परियोजनाओं का औचित्य नहीं है. सबसे पहली बात कि इस विशाल भौगोलिक क्षेत्र तक कोई रेल लाइन नहीं है जिस कारण आदिवासी आबादी विकास और राष्ट्रीय मुख्य धारा से वंचित है. इतना ही नहीं, राज्य और राष्ट्रीय राजधानी से कनेक्टिविटी के लिए भी इन परियोजनाओं का जल्द पूरा होना जरूरी है.इसके साथ ही इन परियोजना क्षेत्र की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि इनके पूरा होने से सीमा क्षेत्रों में सेना और बलों में सेवारत बड़ी संख्या में लोगों की यात्रा में आसानी होगी. साथ ही आर्थिक रूप से इस खनिज समृद्ध क्षेत्र में खनिजों और वन उत्पादों का परिवहन, बॉक्साइट चीनी मिट्टी, लौह अयस्क आदि की बहुलता भी इनके औचित्य को दर्शाने के लिए काफी है. इन परियोजनाओं के पूरा होने से क्षेत्र में उद्योगों और कारखानों का पर्याप्त विकास भी होगा.पर्यटन के विकास में भी ये परियोजनाएं रीढ़ की हड्डी का काम करने की क्षमता रखती है. इसके अलाव भी आजादी की लड़ाई में खास योगदान देने वाले टाना भगत व आदिवासी शिल्प को उचित पहचान दिलाने में ये रेल की ये पर्योजनाएं मील का पत्थर साबित हो सकती है.

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पांच दशकों से चली आ रही है मांग

ऐसा नहीं कि इन रेल परियोजनाओं की मांग पहले नहीं उठी. 1972 से इसकी मांग तत्कालीन बिहार के स्थानीय कद्दावर नेता श्रद्धेय कार्तिक उरांव जी के समय से उठती रही है. परंतु इस पिछड़े पठारी, आदिवासी क्षेत्र को रेलवे व मुख्य धारा से जोड़ने की दिशा में कोई ठोस करवाई नहीं हुई. सरकारें आईं और गई लेकिन इन मांगों पर किसी ने सकारात्मक रुख अख्तियार नहीं किया. अब जरूरत है इसके लिए गंभीर पहल की. रेल मंडल के पुराने जानकार लोगों का मानना है कि अब जिस तरह इस रेल मंडल पर विकास के लिहाज से ध्यान दिया जा रहा है, दशकों से इन परियोजनाओं की फाइलों पर जमी धूल भी हटेगी.

-भारत एक्सप्रेस

मधुकर आनंद, ब्यूरो चीफ़, भारत एक्सप्रेस, रांची

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