13 March 2024 का दिन भारतीय निवेशकों के लिए काला दिन साबित हुआ है. एक ही दिन में निवेशकों के करीब 14 लाख करोड़ रुपये स्वाहा हो गए. इसका कारण था SEBI प्रमुख माधबी पुरी बुच (Madhabi Puri Buch) का वह बयान, जिसने भारतीय शेयर बाजार (Share Market) में खलबली मचा दी. उन्होंने छोटी और मझोली मिड-कैप कंपनियों के वैल्यूएशन पर बयान दिया था, जिसमें कहा गया था कि इसमें नजर आ रही खामियां Bubbles (बुलबुले) की तरह हैं, जो कभी भी फूट सकते हैं.
कुछ जानकारों का मानना है कि यह बयान बाजार की खामियों की ओर इशारा करते हुए निवेशकों को आगाह करने के लिए दिया गया था. मगर विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार या संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों को कुछ भी कहने से पहले उसका आकलन करना चाहिए, क्योंकि उनकी मामूली नकारात्मक टिप्पणी भी बाजार को नुकसान पहुंचा सकती है.
इस मामले में हुआ भी कुछ ऐसा ही. माधबी पुरी बुच के बयान ने बाजार की नींव ही हिला दीं और निवेशकों के लाखों करोड़ रुपये डूब गए. उनके विरोधियों का आरोप है कि वह एक ऐसे गिरोह का हिस्सा हैं, जिसके एक मजबूत सूत्र रघुराम राजन सरकार की आर्थिक नीतियों के धुर विरोधी हैं.
यही वजह रही कि उन्हें रिजर्व बैंक के गवर्नर पद से चलता भी कर दिया गया था. शायद इसी कारण अब माधबी पुरी बुच पर भी रघुराम राजन की भाषा बोलने के आरोप भी लगने लगे हैं. यहां उल्लेखनीय है कि रघुराम राजन उनकी पत्नी राधिका पुरी और सेबी चेयरमैन माधबी पुरी बुच IIM अहमदाबाद में पढ़ाई के दिनों से ही बेहद करीबी दोस्त हैं.
दरअसल 11 मार्च को मुंबई में एएमएफआई कार्यक्रम में अपने संबोधन में सेबी में चेयरमैन के पद पर आसीन माधबी पुरी बुच ने ऐसा बयान दिया कि भारतीय शेयर बाजार क्रैश हो गया.
उन्होंने कहा कि इक्विटी बाजारों में छोटे और मध्यम कैप में ऐसे कई bubbles हैं, जो निवेशकों को प्रभावित करने वाले बुलबुले बनकर कभी भी फट सकते हैं. इतना ही नहीं छोटे और मिड-कैप शेयरों के ओवर वैल्यूएशन का दावा करते हुए उन्होंने यह भी कहा था कि सेबी के डाटा विश्लेषण के अनुसार बहुत से मामलों में जानकारी मिली है कि ‘मूल्यांकन पैरामीटर चार्ट से दूर हैं और बुनियादी बातों द्वारा समर्थित नहीं हैं. यह एक तरह से तर्कहीन अतिउत्साह का मामला है’.
सेबी प्रमुख की मानें तो स्मॉल और मिड-कैप सेक्टर के शेयरों में कीमतों को लेकर हेरफेर के संकेत दिख रहे हैं. इसलिए सेबी ने म्यूचुअल फंड्स को अपने स्मॉल-कैप और मिड-कैप फंडों के पोर्टफोलियो में गहराई से जांच करने का निर्देश दिया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे कितने लिक्विड हैं और अपने बेंचमार्क की तुलना में कितने अस्थिर हैं.
इस बयान के तीसरे दिन Indian Express ने अपनी रिपोर्ट में माधबी पुरी के बयान के बाद बनी स्थिति और निवेशकों की मन स्थिति पर रिपोर्ट लिखी. जानकारों की मानें तो माधबी पुरी के एक बयान ने बाजार में भूचाल ला दिया और निवेशकों के करीब 14 लाख करोड़ रुपये स्वाहा हो गए.
यहां यह भी उल्लेखनीय है भारत में शुरू हुए स्टार्ट-अप के साथ छोटी और मिड-कैप कंपनियां भारतीय अर्थव्यवस्था में बेहद अहम भूमिका निभा रही हैं. मगर इस तथ्य को नजरअंदाज करके चुनावी समर के दौरान माधबी पुरी बुच द्वारा दिया गया बयान अर्थशास्त्रियों के गले से भी नहीं उतर पा रहा है. शायद यही कारण है कि माधबी पुरी पर भी रघुराम राजन की भाषा बोलने के आरोप लगने लगे हैं.
माधबी पुरी के बयान के बाद बाजार में छाए बादलों को हटाने के लिए खुद केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सकारात्मक टिप्पणी की. उन्होंने स्पष्ट किया कि वह बाजारों को अपने दम पर खेलने की अनुमति देती हैं. उन्होंने कहा कि इसे बाजार के ज्ञान पर छोड़ देना चाहिए, क्योंकि हम सभी ने देखा है कि विश्व स्तर पर भारी उतार-चढ़ाव के बावजूद, भारतीय बाजार ने खुद को मजबूत बनाए रखा है. मैं बाजार में बहुत भरोसा करती हूं.
यहां यह भी गौर करने का विषय है कि बीते साल जिस समय हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था पर हमला हुआ था, तब भी जॉर्ज सोरोस (George Soros) का नाम सामने आया था. माधबी पुरी बुच उस समय भी SEBI प्रमुख के पद पर कार्य कर रही थीं.
अब चुनाव से ठीक पहले खुद उनके इस बयान पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. सवाल यह उठता है कि यह सब अचानक हो रहा है या यह भारत सरकार और भारतीय अर्थव्यवस्था के खिलाफ हमले की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है? निश्चित तौर पर भारतीय जांच एजेंसियां भी इसकी तह तक जाने में जुटी होंगी, क्योंकि जॉर्ज सोरोस पर पहले से आरोप लगते रहे हैं कि वह अपने हितों को पूरा करने के लिए कई देशों के खिलाफ ऐसी मुहिम चला चुके हैं
जॉर्ज सोरोस अमेरिका के बड़े कारोबारियों में से एक हैं, लेकिन उनकी छवि काफी विवादित रही है. वह सटोरिया, निवेशक और कारोबारी हैं. लेकिन खुद को दार्शनिक और सामाजिक कार्यकर्ता कहलाना पसंद करते हैं. उन पर दुनिया के कई देशों की राजनीति और समाज को प्रभावित करने के लिए एजेंडा चलाने का आरोप लगता रहता है.
सोरोस फंड मैनेजमेंट के संस्थापक जॉर्ज सोरोस ने विभिन्न देशों के खिलाफ सनसनीखेज रिपोर्ट देने वाली संस्था Open Society Foundations को 32 बिलियन डॉलर से अधिक का दान दिया था. भारतीय कारोबारी समूह अडानी के खिलाफ सनसनीखेज रिपोर्ट जारी करने वाली संस्था हिंडनबर्ग रिजर्व को भी जॉर्ज सोरोस द्वारा समर्थित संस्था माना जाता है. आरोप है कि उन्होंने कई देशों में चुनावों को प्रभावित करने के लिए खुलकर भारी-भरकम फंडिंग की है. गौरतलब है कि भारत में भी लोकसभा चुनाव होने वाले हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल जनवरी में जॉर्ज सोरोस लिंक्ड ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) की उस रिपोर्ट को नकार दिया था, जिसके आधार पर अडानी समूह के खिलाफ जांच करने के लिए SIT गठन की मांग की गई थी. इस रिपोर्ट में कुछ मीडिया समूहों ने अडानी ग्रुप पर स्टॉक में हेराफेरी और सेबी की विफलता का दावा भी किया था.
यहां उल्लेखनीय है कि रघुराम राजन की पत्नी राधिका पुरी अमेरिका की जिस शिकागो यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं, उसका लिंक भारत की अर्थव्यवस्था को लगातार नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे फंड मैनेजर जॉर्ज सोरोस से जुड़ा हुआ हैं.
जॉर्ज सोरोस वही कुख्यात फंड मैनेजर है, जो विभिन्न देशों के खिलाफ अभियान चलाने वाले समूह को फंडिंग करता है. बीते साल जिस हिंडनबर्ग रिपोर्ट के माध्यम से भारतीय कारोबारी गौतम अडानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले किए गए थे, उसकी फंडिंग के पीछे भी जॉर्ज सोरोस का ही लिंक बताया जाता है.
ऐसे में रघुराम राजन और राधिका पुरी का यही अपुष्ट जॉर्ज सोरोस और हिंडनबर्ग कनेक्शन माधबी पुरी बच के उस बयान को और भी ज्यादा गंभीर बना देता है, जिसने भारतीय शेयर बाजार को लाखों करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा दिया. क्योंकि अर्थ तंत्र से जुड़ा हर दिग्गज जानता है कि विकास और अर्थव्यवस्था से जुड़ी सरकार की हर उपलब्धि पर सवाल खड़ा करने वाले रघुराम राजन उनकी पत्नी राधिका पुरी और सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच IIM-अहमदाबाद में पढ़ाई के दिनों से ही बेहद करीबी दोस्त हैं. बताया तो यह भी जाता है कि माधबी पुरी जब भी अमेरिका जाती हैं तो राधिका पुरी से जरूर मिलती हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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