उच्च न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 (वी) की वैधता को बरकरार रखा है, जिसमें कहा गया है कि एक-दूसरे से सपिंड यानि चचेरे भाई के रूप में संबंधित पक्षों के बीच कोई भी विवाह तब तक संपन्न नहीं किया जा सकता है, जब तक कि यह उन्हें नियंत्रित करने वाले उपयोग या रीति-रिवाज द्वारा स्वीकृत न हो. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि यदि विवाह में साथी की पसंद को अनियमित छोड़ दिया जाता है, तो अनाचारपूर्ण रिश्ते को वैधता मिल सकती है.
हाई कोर्ट ने इस प्रावधान को रद्द करने की मांग करने वाली एक महिला द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया. उसने पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उक्त प्रावधान के अनुसार उसके और उसके दूर के चचेरे भाई के बीच विवाह को अमान्य घोषित कर दिया गया था. उनकी अपील को पिछले साल अक्टूबर में एक समन्वय पीठ ने खारिज कर दिया था. पीठ ने कहा कि महिला विवादित प्रावधान में शामिल निषेध को चुनौती देने के लिए कोई आधार बताने में विफल रही और उसमें लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती देने के लिए कोई कानूनी आधार बताने में भी विफल रही.
अदालत ने कहा, याचिका न तो राज्य द्वारा लगाए गए उक्त प्रतिबंध के आधार की पहचान करती है और न ही उक्त धारा को चुनौती देने के लिए कोई ठोस कानूनी आधार बताती है. पीठ ने महिला के इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि विवादित धारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है क्योंकि अपवाद केवल कानून के बल पर प्रथा के आधार पर व्यक्तियों के बीच विवाह के लिए है, जिसके लिए कड़े सबूत की आवश्यकता होती है और इसका अस्तित्व होना चाहिए.
याचिकाकर्ता अपने मामले के तथ्यों में प्रथा के अस्तित्व को साबित करने में असमर्थ रही और उसने माता-पिता की सहमति पर भरोसा किया है जो प्रथा की जगह नहीं ले सकती. इसलिए यह अदालत वर्तमान रिट याचिका में एचएमए अधिनियम की धारा 5(वी) को दी गई चुनौती में कोई योग्यता नहीं पाती.
पीठ ने कहा हमारी सुविचारित राय है कि याचिका में दलीलों या दलीलों के दौरान उक्त विवादित प्रावधान को चुनौती देने के लिए कानून में कोई भी उचित आधार इस न्यायालय के समक्ष नहीं रखा गया है. हालांकि, पीठ ने कहा कि महिला अपने पूर्व पति के खिलाफ कानून के अनुसार उचित मंच के समक्ष उचित कानूनी कार्यवाही शुरू करने के लिए स्वतंत्र होगी.
-भारत एक्सप्रेस
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