One Nation One Election: प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ को लेकर बड़ा फैसला लिया है. सरकार ने इसके लिए एक कमेटी गठित कर, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को उसका मुखिया बना दिया है और उसमें मौजूदा गृहमंत्री अमित समेत 8 सदस्यों को भी जगह दी है. ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की चर्चा छिड़ते ही विपक्षी दल सत्तारूढ़ भाजपा पर हमलावर हो गए हैं. हालांकि, कुछ नेताओं ने इसका समर्थन भी किया है.
विपक्षी दल जहां ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का विरोध कर रहे हैं, वहीं सत्ता पक्ष और उनके सहयोगी दल वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन कर रहे हैं. ताजा बयान सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर का आया है, जिसमें उन्होंने पूर्व की सरकारों को लेकर विपक्षी दलों पर हमला बोला है और कहा है कि इसे बहुत पहले आ जाना चाहिए था. राजभर ने कहा कि पहले कांग्रेस की सरकारें जो थी, वो इसके पक्ष में थीं. अब इसे किया जा रहा है तो उन्हें दुख हो रहा है.
ओपी राजभर ने कहा, ‘यह नीति बहुत पहले बन जानी चाहिए थी. कांग्रेस सरकार और अन्य सरकारें जो पहले आई हैं, वो इस विषय पर केवल चर्चा करके छोड़ देती थीं. पता लगा कि कभी किसी चीज का चुनाव है तो कभी किसी चीज का चुनाव. अलग-अलग चुनाव पर जो देश का धन खर्च होता है, वो एक बार चुनाव होने से बचेगा और उसे देश के विकास के लिए लगाया जा सकेगा.’
जब केंद्र सरकार ने वन नेशन, वन इलेक्शन की कमेटी को लेकर नोटिफिकेशन जारी करते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में आठ सदस्यीय समिति का गठन किया तो देश की कई बड़ी राजनीतिक पार्टियां विरोध करने लगीं. विपक्षी दलों का आरोप है कि वन नेशन, वन इलेक्शन पॉलिसी के आने से राज्यों की छोटी पार्टियां पूरी तरह से खत्म हो जाएंगी, जिससे सत्तारूढ़ भाजपा को फायदा होगा. इसलिए वे नहीं चाहते हैं कि ऐसा कुछ हो.
मालूम हो कि, वन नेशन, वन इलेक्शन पॉलिसी के लिए जो कमेटी बनाई गई है, उसमें पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चेयरमैन बनाया गया है और गृह मंत्री अमित शाह के साथ ही कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी, पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद, वित्त कमीशन के पूर्व चेयरमैन एनके सिंह व लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप सहित हरीश साल्वे और पूर्व सीवीसी संजय कोठारी को कमेटी का सदस्य बनाया गया है. वहीं, इस कमेटी का नाम उच्च स्तरीय समिति रखा गया है जो कि अंग्रेज़ी में HLC है.
इसी के साथ राजभर ने आगे ये भी कहा कि अलग-अलग चुनाव होने पर राज्यों में नाजायज खर्च सरकारी खजाने से होता है. कभी इस राज्य का चुनाव तो कभी उस राज्य का चुनाव, बस यही चलता रहता है. इसमें समय और धन दोनों की खर्च होता है.
-भारत एक्सप्रेस
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