Anand Mohan: भारतीय राजनीति में बाहुबली नेताओं की कमी नहीं रही है लेकिन जिस तरह खुला उत्पात बिहार के बाहुबली नेताओं ने मचाई वह शायद ही कहीं अन्य के बाहुबलियों ने मचाई. अशोक सम्राट, सूरजभान सिंह, अनन्त सिंह, रामा सिंह, सुनील पाण्डेय, मुन्ना शुक्ला समेत बिहार में तमाम ऐसे बाहुबली हुए हैं जिनकी एक अलग धमक रही है. इन बाहुबली नेताओं के नाम से आज भी बिहार, झारखण्ड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों में एक डर बना रहता है. अशोक सम्राट को बिहार के अंडरवर्ड का पहला डॉन कहा जाता है.
आनंद मोहन सिंह भी इसी कड़ी से जुड़ा हुआ नाम है जो राजनीति में तो है लेकिन उसके ऊपर कई आरोप हैं, जिसमें सबसे बड़ा आरोप 5 दिसम्बर 1994 को तत्कालीन गोपालगंज डीएम जी कृष्णैया की हत्या का लगा जिसने आनन्द मोहन के राजनैतिक जीवन को लगभग खत्म कर दिया.
आनन्द मोहन के बाबा राम बहादुर सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे, वह सहरसा जिले के पंचगछिया गांव के निवासी थे लेकिन आनन्द मोहन ने आंदोलनों के बाद बाहुबल के जरिए पहले बिहार विधानसभा फिर लोकसभा और अन्त में जेल का रास्ता चुना.
80 के दशक के आखिरी दिनों में बिहार के कोसी परिक्षेत्र में आनंद मोहन सिंह और पप्पू यादव की बीच मतभेद की बाते आम हो गईं थीं क्योंकि दोनों उस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व जमाना चाहते थे. 1980 में ही आनंद मोहन सिंह ने समाजवादी क्रांति सेना का गठन किया.
आनंद मोहन शुरुआत से ही हथियारों का शौक़ीन रहा है, 90 के दशक में उसकी तस्वीरें असलहों के साथ छपा करती थीं. 90 के दशक के शुरुआती दिनों में आनंद मोहन पर NSA, CCA और MISA के तहत कई आपराधिक धाराओं में मुकदमें दर्ज किए गए. इसके पीछे की वजह आनंद का आपराधिक रिकॉर्ड माना जाता है. हालांकि, चुनाव लड़ने के लिए आनंद मोहन 1990 में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और जनता दल के प्रत्याशी के तौर पर महिषी विधानसभा से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की. उस चुनाव में बाहुबली अनन्त सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह भी चुनावी मैदान में थे और जीत दर्ज की.
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सन् 1993 में आनंद मोहन ने नई पार्टी बनाई और इसका नाम बिहार पीपुल्स पार्टी रखा गया. 1994 में वैशाली लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद ने जीत दर्ज की. बिहार पीपुल्स पार्टी को सवर्णों के साथ ओबीसी वर्ग का भी बड़ा समर्थन मिल रहा था. इसी पार्टी के एक मजबूत स्तम्भ थे कौशलेन्द्र शुक्ला उर्फ छोटन शुक्ला.
छोटन शुक्ला की हत्या कर दी गई, शुक्ला की अंतिम यात्रा के दौरान भीड़ काफी आक्रोशित हो गई थी. अंतिम यात्रा में शामिल लोगों ने 1985 बैच के आईएएस अधिकारी और गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया को मार दिया. भीड़ को उकसाने का आरोप आनंद मोहन पर लगा.
जिलाधिकारी हत्याकांड के बाद 1996, 1998 में आनंद मोहन ने जेल में रहते हुए शिवहर जिले से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. 2007 में आनंद मोहन को जिलाधिकारी हत्याकांड मामले में उन्हें निचली कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई. लेकिन, 2008 में पटना हाई कोर्ट ने सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भी पटना हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था. बता दें कि नीतीश कुमार की सरकार में आनंद मोहन को सरकारी नियमों में बदलाव करके रिहा किया गया है.
-भारत एक्सप्रेस
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