Maulana Arshad Madani: देश के सामाजिक तानेबाने से छेड़छाड़ देश को नष्ट कर देगी, इस प्रकार का कोई भी प्रयास देश के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए बड़ा ख़तरा है. भारत सदियों से विभिन्न धर्मों और सभ्यता का केन्द्र रहा है. शांति, एकता एवं सहनशीलता इसकी उज्जवल परंपराएं रही हैं परन्तु अब कुछ शक्तियां सत्ता के नशे में सदियों पुरानी इस परंपरा को नष्ट कर देना चाहती हैं. यह बातें जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कही हैं.
उन्होंने कहा, “शांति और एकता से अधिक उन्हें अपने राजनीतिक लाभ और सत्ता प्रिय है, यही कारण है कि आए दिन नए-नए धार्मिक मुद्दों को उछाल कर शांति और भाईचारे की उपजाऊ भूमि में नफरत के बीज बोए जा रहे हैं. इस सामाजिक तानेबाने को अब तोड़ देने की साजिश हो रही है जिसने इस देश में रहने वाले सभी लोगों को एक साथ जोड़ के रखा हुआ है, यह एक ऐसी डोर है जो अगर टूट गई तो न केवल हमारी सदियों पुरानी सभ्यता के लिए यह एक बड़ी हानि होगी बल्कि यह व्यवहार देश को विनाश और तबाही के उस रास्ते पर डाल देगा जहां से वापसी आसान न होगी.”
जमीअत उलमा-ए-हिंद के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए मदनी ने कहा कि इसे एक सदी पहले देश की आज़ादी के लिए उलमा ने एक प्लेटफार्म के रूप में स्थापित किया था, इसलिए उलमा पूरी ताक़त के साथ देश की आज़ादी के लिए जान हथेली पर रख कर जेलों को आबाद करते रहे और फांसी के फंदे पर झूलते रहे. आज़ादी के लिए जान देते रहे यहांतक कि देश आज़ाद हो गया और आज़ाद होते ही जमीअत उलमा-ए-हिंद ने अपने आप को राजनीति से अलग कर लिया, परन्तु इसके लक्ष्य और उद्देश्य में देश की अखण्डता, एकता और भाईचारे को बढ़ावा देना प्राथमिकता है. यही कारण है कि आज़ादी के बाद धर्म के आधार पर देश के विभाजन का उसने पूरी ताक़त से विरोध किया था, उन्होंने स्पष्ट किया कि जमीअत उलमा-ए-हिंद अपने महानुभावों द्वारा स्थापित दिशा-निर्देशों का आज भी पालन कर रही है, वो अपना हर काम धर्म से ऊपर उठकर मानवता के आधार पर करती है. हाल ही में मेवात में जिन बेघर लोगों को घर बनाने के लिए ज़मीन और सहायता राशि प्रदान की गई है उनमें तीन हिंदू परिवार भी शामिल हैं. यह संगठन वर्षों से मेरिट के आधार पर हर साल जरूरतमंद छात्रों को छात्रवृत्ति दे रहा है, इसमें बड़ी संख्या में हिंदू छात्र भी शामिल होते हैं, इसलिए कि जमीअत उलमा-ए-हिंद का मूल उद्देश्य मानवता का कल्याण है.
मौलाना मदनी ने कहा कि पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है, इसलिए अब समय आ गया है कि देश का प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का एक बड़ा ग्रुप ईमानदारी से अपना विश्लेषण करें और इस बात की समीक्षा करें कि पिछले कुछ वर्षों से उसने अपने लिए जो मार्ग चुना है क्या वो सही है या गलत और क्या यह मार्ग देश के हित में है? मीडिया यह भी भूल जाता है कि जिस भारत को आज ‘लोकतंत्र की जननी’ कहा जाता है वो भी इसका एक मज़बूत स्तंभ है, याद रखें किसी इमारत के स्तंभों में से कोई एक स्तंभ अगर कमज़ोर हो तो इमारत को मज़बूत नहीं कहा जा सकता.
मौलाना मदनी ने संसद में हुई वर्तमान घुसपैठ और हंगामे के संदर्भ में कहा कि यह कोई सामान्य घटना नहीं थी परन्तु मीडिया ने उसे बहुत अधिक महत्व नहीं दिया, निःसंदेह यह एक गंभीर मामला था लेकिन मीडिया ने कोई प्रश्न नहीं किया, परन्तु अगर सागर शर्मा के स्थान पर कोई शकील अहमद होता तो यही मीडिया आसमान सिर पर उठा लेता और ये सिर्फ अपराधियों के लिए नहीं बल्कि, यह पूरे समुदाय के लिए देश की भूमि को संकीर्ण कर डाला. संविधान के वर्चस्व के संदर्भ में उन्होंने कहा कि राजनीति के नाम पर अब जो कुछ हो रहा है उससे संविधान के वर्चस्व पर प्रश्न चिंह लग चुका है. सवाल यह है कि जिस संविधान की दुहाई दी जाती है यह कोई नया संविधान है या फिर वह है जिसे आज़ादी के बाद तैयार किया गया था, अगर यह आज़ादी के बाद लाया गया संविधान है तो फिर हमें यह मानना ड़ेगा कि अब जिस तरह हर मसले को धार्मिक रंग देने का प्रयास किया जाता है और पक्षपात का व्यवहार किया जा रहा है यह सरासर गलत और देश की शांति और एकता के लिए बहुत घातक है.
उन्होंने आगे कहा कि देश का संविधान अपने नागरिकों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता देता है, इसमें सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए गए हैं और किसी भी नागरिक, वर्ग या समुदाय के खिलाफ पक्षपात का व्यवहार किए जाने से मना किया गया है, मगर हो यह रहा है कि एक विशेष वर्ग को हीन भावना से ग्रस्त रखने के उद्देश्य से संविधान द्वारा दिए गए सभी अधिकार इससे छीन कर बहुसंख्यकों को प्रसन्न करने की नीति पर खुलेआम काम हो रहा है, एक मुद्दा समाप्त नहीं होता कि कोई अन्य मुद्दा उठा कर ऐसा प्रोपेगंडा शुरू करवा दिया जाता है जिससे सांप्रदायिक लामबंदी बनी रहे. हमारा संविधान देश के हर नागरिक को धार्मिक आज़ादी प्रदान करता है, इसके बावजूद लगातार समान नागरिक संहिता लाने का शोशा छोड़ा जाता है, अन्य अपराधों के लिए आई.पी.सी. की जो धाराएं हैं वो सभी नागरिकयों पर समान रूप से लागू की जाती हैं, परन्तु घरेलू मामले विशेष रूप से शादी ब्याह, तलाक़ आदि के नियम अलग-अलग हैं और सदियों पुराने हैं, खुद हिंदुओं में विभिन्न बिरादरियों में शादी और तलाक़ के अलग-अलग तरीके और रिवाज प्रचलित हैं, मगर इससे देश की शांति और अखण्डता पर कभी कोई खतरा नहीं पैदा हुआ, समान नागरिक संहिता लाने का अर्थ यह है कि सब के लिए पर्सनल लॉ एक जैसा होगा, लेकिन आभास यह दिया जाता है कि यह मुसलमानों के लिए ही लाया जा रहा है, उन्होंने आगे कहा कि बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीमकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से यह बात कही है कि मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाने का कोई प्रमाण नहीं मिला, लेकिन अब कुछ लोग इसका राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं और उसे बहुसंख्यकों की सफलता के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास भी हो रहा है. उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह है कि देश का कोई धर्म नहीं होगा मगर यह दुखद है कि अब देश में सब कुछ इसके उलट हो रहा है.
मौलाना मदनी ने दो टूक शब्दों में कहा कि अब देश के सभी नागरिकों को नहीं बहुसंयकों को खुश करने की राजनीति हो रही है, देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे और लोकतंत्र के लिए यह घातक है. उन्होंने कहा कि अंग्रेज़ों ने हमें थाल में सजा कर आज़ादी नहीं दी थी बल्कि इसके लिए हमारे महानुभावों को बहुत बलिदान देना पड़ा है, इस बलिदान में सभी धर्मों के लोग थे, हमारे पास जनशक्ति और क्षमता की कोई कमी नहीं है, जरूरत यह है कि इस शक्ति और क्षमता का सकारात्मक प्रयोग किया जाए, मगर अब नफरत और पक्षपात की जो राजनीति शुरू हुई है यह देश को विकास नहीं विनाश के रास्ते पर ले जाने वाली है. इसके लिए देश के सभी न्यायप्रिय लोगों और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों पर विश्वास रखने वालों को मिलकर गंभीरता से सोचना होगा और इसके खिलाफ एक प्रभावी योजना तैयार करनी होगी और देश के मीडिया को भी अपनी असली भूमिका निभानी होगी, नहीं तो आने वाले कल का इतिहास इसके लिए हमें क्षमा नहीं करेगा.
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