दिल्ली हाई कोर्ट ने अपनी बेटी के ठिकाने के बारे में जानकारी होने के बावजूद उसे देखने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने पर मां के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई है. अदालत ने कहा कि महिला ने कोर्ट के सामने पूरी जानकारी नहीं दी. अदालत ने उसपर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और अमित शर्मा की बेंच ने 10 हजार रुपए के जुर्माने के साथ ही उसकी याचिका को खारिज कर दिया है.
कोर्ट ने कहा है कि इस तरह का उपाय लापता बच्चों के वास्तविक मामलों या ऐसे मामलों में नागरिकों की सहायता के लिए है, जहां किसी व्यक्ति की सुरक्षा और संरक्षा खतरे में हो. पीठ ने कहा मौजूदा मामले के तथ्य ऐसी किसी स्थिति का खुलासा नहीं करते. याचिकाकर्ता जैसे वादियों द्वारा इस तरह की याचिका का दुरूपयोग किया जा रहा है, जो केवल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से अपने वैवाहिक विवादों को अदालत में लाने की कोशिश कर रहे है, वह भी बिना सही तथ्यों का खुलासा किए.
महिला ने याचिका में दावा किया कि उसके पति के परिवार ने उसे प्रताड़ित किया और उसने वैवाहिक घर छोड़ दिया, लेकिन जब वह अक्टूबर में अपनी बेटी से मिलने लौटी तो उसे उससे मिलने नहीं दिया गया. हालांकि पुलिस की स्थिति रिपोर्ट में एक अलग तस्वीर सामने आई जिसमें दावा किया गया कि महिला 10 जनवरी को अपने वैवाहिक घर से चली गई और उसके पति ने गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई. शिकायत के बाद पुलिस अधिकारी उसके परिवार के सदस्यों और ससुराल वालों के साथ उसकी तलाश में मुंबई गए और उसे एक अन्य व्यक्ति के साथ एक होटल में पाया.
अदालत में सामना किए जाने पर महिला ने इन तथ्यों पर विवाद नहीं किया और उसके वकील ने कहा कि उन्हें स्थिति की पूरी जानकारी नहीं है. पति के वकील ने कहा कि बच्चा उसके पास सुरक्षित है और उसकी देखभाल उसके दादा-दादी कर रहे है. महिला के वकील ने कहा कि वह अपनी बेटी से अगस्त में उसके जन्मदिन पर मिली थी लेकिन इस तथ्य का उल्लेख उसकी याचिका में नहीं किया गया है. अदालत ने कहा इस तथ्य का भी याचिका में उल्लेख नहीं किया गया है और यह धारणा बनाने की कोशिश की गई है कि बेटी का पता नहीं है. मौजूदा याचिका कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इसे 10000 रुपए के जुर्माने के साथ खारिज किया जाता है जिसे याचिकाकर्ता को दो सप्ताह के भीतर दिल्ली हाई कोर्ट कानूनी सेवा समिति के पास जमा कराना होगा.
-भारत एक्सप्रेस
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