यूजीसी-नेट (UGC-NET) रिजल्ट जारी होने में हो रही देरी को लेकर दायर याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने, शिक्षा मंत्रालय, विश्विद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. जनवरी 2025 में इस मामले में अगली सुनवाई होगी.
यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता उज्ज्वल गौड़ की ओर से दायर की गई है. गौड़ ने अनुच्छेद 226 के तहत दायर कर यूजीसी-नेट परीक्षा चक्र को लेकर चिंता व्यक्त की है. याचिका में भारत के शिक्षा प्रणाली में न्याय, समानता और पारदर्शिता के सिद्धांत को बनाए रखने की मांग की गई है. उन्होंने कहा कि यह केवल एक परीक्षा की बात नही है, यह उन हजारों उम्मीदवारों के न्याय की लड़ाई है, जिनका भविष्य इन परिणामों पर निर्भर करता है. मौजूदा प्रणाली को संविधान के मूल्यों के अनुरूप तत्काल सुधार की आवश्यकता है.
याचिका में उज्ज्वल गौड़ ने कई महत्वपूर्ण सुधारों की मांग की है:
1. स्कोर सामान्यीकरण में विसंगतियों को ठीक करने और सभी उम्मीदवारों के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी परिणाम प्रकाशित करने की मांग की है.
2. ओबीसी, एससी/एसटी श्रेणियों के लिए संविधान द्वारा निर्धारित आरक्षण कोटा का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना.
3. जूनियर रिसर्च फेलोशिप स्लॉट्स के वितरण में न्यायसंगतता सुनिश्चित करने की मांग की गई है.
4. प्रश्नपत्रों में विसंगतियों के मामलों में हिंदी की तुलना में अंग्रेजी को प्राथमिकता देने वाले भेदभावपूर्ण प्रावधानों में संशोधन और हिंदी-माध्यम के उम्मीदवारों के लिए समान व्यवहार सुनिश्चित करना.
5. इसके अलावे प्रतियोगी परीक्षाओं में तकनीकी शिकायतों को स्वतंत्र रूप से संबोधित करने के लिए एक राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल बनाने की मांग की गई है.
6. परीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए सभी उम्मीदवारों के लिए एक समान परीक्षा समय निर्धारित करने का प्रस्ताव.
7. शिकायत प्रक्रिया को और अधिक सुलभ बनाने के लिए अंकों में विसंगतियों को दूर करने और प्रश्नपत्रों में त्रुटियों को चुनौती देने के लिए शुल्क को तर्कसंगत बनाने के लिए एक ही पाली में यूजीसी-नेट आयोजित करने का प्रस्ताव.
8. परीक्षा प्रक्रिया में विश्वास बहाल करने के लिए सामान्यीकरण सूत्र, कट-ऑफ मानदंड और प्रश्न चयन पद्धतियों के सार्वजनिक प्रकटीकरण का आह्वान.
इससे पहले उज्ज्वल गौड़ ने यूजीसी और एनटीए को पत्र लिखकर कहा था कि यूजीसी नेट रिजल्ट की घोषणा में लंबे समय तक देरी के कारण छात्रों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा था कि परिणाम में देरी न सिर्फ स्टूडेंट्स के प्रयासों को कमतर आंकना है, बल्कि यह उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन भी है, जो कि कानून के समक्ष समानता और किसी भी पेशे को चुनने की आजादी देता है.
-भारत एक्सप्रेस
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