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सहमति से बने लंबे शारीरिक संबंध को शादी के झूठे वादे से नहीं जोड़ा जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि किसी महिला और पुरुष के बीच सहमति से लंबे समय तक शारीरिक संबंध रहे हैं, तो यह नहीं माना जा सकता कि महिला की सहमति केवल शादी के वादे पर आधारित थी.

न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने बलात्कार के एक आरोपी की दोषसिद्धि और सजा को रद्द करते हुए कहा कि शादी का झांसा देकर बलात्कार का आरोप सिद्ध करने के लिए ठोस और स्पष्ट सबूत होने चाहिए. अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि संबंध केवल शादी करने के वादे पर बनाए गए थे और वादा पूरा करने की कोई मंशा नहीं थी, तभी इसे बलात्कार कहा जा सकता है.

यह मामला एक ऐसे व्यक्ति से जुड़ा था जिसे एक लड़की के अपहरण और बलात्कार के आरोप में दोषी ठहराया गया था. निचली अदालत ने उसे 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी. लड़की के पिता ने पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी 20 वर्षीय बेटी आरोपी (18 वर्षीय) के साथ चली गई थी. बाद में दोनों को हरियाणा में पाया गया और युवक को गिरफ्तार कर लिया गया.

सहमति से संबंध और शादी का वादा

युवक ने अदालत में कहा कि दोनों के बीच प्रेम संबंध था और शारीरिक संबंध भी आपसी सहमति से बने थे, जिसमें कोई अपराध नहीं था. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि यदि शादी का वादा धोखे की मंशा से किया गया था और लड़की केवल इसी वादे के कारण शारीरिक संबंध के लिए राजी हुई थी, तो ऐसी स्थिति में सहमति को वैध नहीं माना जाएगा और इसे बलात्कार कहा जा सकता है.

हालांकि, यदि शादी का वादा ईमानदारी से किया गया था लेकिन बाद में कुछ अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण विवाह नहीं हो पाया, तो इसे झूठा वादा नहीं माना जा सकता. ऐसे मामलों में बलात्कार का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.

लंबे समय तक सहमति से बने संबंधों पर अदालत की राय

कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि सहमति से शारीरिक संबंध लंबे समय तक जारी रहे हैं, तो यह नहीं कहा जा सकता कि सहमति केवल शादी के वादे के कारण दी गई थी. इस मामले में अभियुक्त और पीड़िता एक-दूसरे से प्रेम करते थे और शादी करने की मंशा से शारीरिक संबंध बने थे. यदि किसी कारणवश विवाह नहीं हो पाया, तो इसे शादी के झूठे वादे से जोड़कर नहीं देखा जा सकता.

हाईकोर्ट ने आरोपी को दोषमुक्त कर दिया और उसकी रिहाई का आदेश दिया. साथ ही, यह भी निर्देश दिया कि आरोपी या उसके परिवार का कोई भी सदस्य पीड़िता या उसके परिवार के किसी सदस्य के जीवन में हस्तक्षेप नहीं करेगा. इसके अलावा, वह किसी भी माध्यम (व्हाट्सएप, मोबाइल या अन्य) से पीड़िता से संपर्क करने की कोशिश नहीं करेगा.


ये भी पढ़ें- दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला, कानून का उल्लंघन करने वाले कथित बच्चे और वयस्क आरोपी का संयुक्त मुकदमा नहीं चलेगा


-भारत एक्सप्रेस

गोपाल कृष्ण

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