दिल्ली हाईकोर्ट ने गर्भस्थ शिशु की लैंगिक पहचान का खुलासा करने के आरोपी डॉक्टर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द कर दी. उसने कहा कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है तो यह बताए कि डॉक्टर ने कानून का उल्लंघन करते हुए प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीकों का इस्तेमाल किया. कोर्ट ने कहा कि आरोपी महिला डॉक्टर के खिलाफ केवल एक फर्जी रोगी का अल्ट्रासाउंड करने का आरोप है.
न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने कहा कि आरोपी डॉक्टर के खिलाफ ऐसा कोई सबूत नहीं है जो साबित करें कि उसने पीसी और पीएनडीटी अधिनियम की धारा 4 का उल्लंघन करते हुए प्रसव पूर्व निदान तकनीकों का इस्तेमाल किया या फिर भ्रूण के लिंग का निर्धारण करके उसका खुलासा कर दिया. जबकि खुलासा करना उक्त कानून की धारा 5 और 6 का उल्लंघन है. वैसे गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता लगाने के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीक का उपयोग गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीसी एवं पीएनडीटी) अधिनियम के तहत प्रतिबंधित है. लेकिन आरोपी डॉक्टर के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है.
मामले के अनुसार अगस्त 2020 में हरि नगर की एक अल्ट्रासाउंड सेंटर पर छापा मारा गया था. उसके बाद पुलिस ने डॉक्टर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी. उसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया था. प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता डॉक्टर ने एक फर्जी मरीज का अल्ट्रासाउंड किया था. साथ ही लैब में काम करने वाले कर्मचारी ने भ्रूण के लिंग का कथित तौर पर खुलासा कर दिया था. डॉक्टर ने प्राथमिकी रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. उसने कहा था कि तीन साल से अधिक समय बीत जाने के बावजूद पुलिस ने आरोपपत्र दाखिल नहीं किया है. उससे पता चलता है कि उसके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है. अभियोजन पक्ष ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि अल्ट्रासाउंड याचिकाकर्ता ने किया था और भ्रूण के लिंग का कथित खुलासा सह-आरोपी ने किया था.
-भारत एक्सप्रेस
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