नाबालिग से रेप और रेप की कोशिश न मानने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए स्वतः संज्ञान पर जस्टिस बीआर गवई की पीठ चार सप्ताह बाद सुनवाई करेगी. बलात्कार के अन्य मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पीड़िता को लेकर की गई टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी को जज जमानत तो दे दें, लेकिन ऐसी टिपण्णी क्यों करते हैं? जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में जज को अधिक सावधान रहना चाहिए. वही मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस तुषार मेहता ने कहा कि न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए.
उन्होंने कहा कि एक आम आदमी यह समझेगा कि जज कानूनी बारीकियों से परिचित नहीं है. बलात्कार के एक अन्य मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पीड़िता को ही कथित अपराध का जिम्मेदार मानते हुए आरोपी को जमानत दे दी.
यह मामला सितंबर 2024 का है, जहां एक यूनिवर्सिटी की छात्रा ने आरोप लगाए थे कि बार में मिले एक शख्स ने उसके साथ नशे की हालत में रेप किया था. जबकि जमानत याचिका में कहा है कि महिला ही उसके साथ जाने को तैयार हुई थी और सहमति से.सेक्स हुआ था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाई कोर्ट का यह फैसला असंवेदनशीलता को दर्शाता है.
कोर्ट ने कहा था कि यह फैसला जल्दबाजी में नही दिया गया है बल्कि फैसला सुरक्षित रखने के चार महीने बाद दिया गया है. इस फैसले में कई गई टिप्पणी अमानवीय रुख को दर्शाता है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि अभियोजन पक्ष के जो आरोप हैं, उसमें कहा गया है कि लड़की का प्राइवेट पार्ट पकड़ा गया और उसके पायजामें का नाड़ा तोड़ा गया, हाई कोर्ट ने कहा कि ये आरोप अपने आप में रेप और रेप की कोशिश का केस नहीं बनता है.
हाई कोर्ट ने कहा है कि स्तन पकड़ने और पायजामे का नाड़ा खोलना दुष्कर्म नहीं है, बल्कि यौन उत्पीड़न है. यह मामला कासगंज के पटियाली थाना क्षेत्र का है. चार साल पहले पीड़िता की मां ने 12 जनवरी 2022 को ट्रायल कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी.
आरोप लगाया कि 10 नवंबर 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ पटियाली में देवरानी के घर गई थी. उसी दिन शाम को लौटते वक्त गांव के ही पवन, आकाश और अशोक मिल गए. पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही. मां ने उसपर भरोसा करते हुए बाइक पर बैठा दिया. रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की को पकड़ लिया और उसके कपडे उतारने का प्रयास करते हुए पुलिया के नीचे खींचने लगे.
बता दें कि इससे पहले आरोपियों के खिलाफ धारा 376 आईपीसी (बलात्कार) और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. हाई कोर्ट ने कहा कि आरोपियों पर लगाए गए आरोप और मामले के तथ्यों के आधार पर इस मामले में रेप की कोशिश का अपराध नहीं बनता. इसकी बजाय उन्हें आईपीसी की धारा 354 (बी) यानी पीड़िता को निवस्त्र करने या उसे नग्न होने के लिए मजबूर करने के इरादे से हमला या दुर्व्यवहार करने और पॉक्सो एक्ट की धारा 9 (एम) के तहत आरोप के तहत तलब किया जा सकता है.
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-भारत एक्सप्रेस
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