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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अनुच्छेद 142 पर बयान से उठा नया विवाद, न्यायपालिका और विधायिका में तकरार की आशंका

Article 142 Controversy: राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा निर्धारित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान पर अलग-अलग प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. माना जा रहा है कि न्यायपालिका और विधायिका में एक बार फिर आने वाले समय में तकरार देखने को मिल सकता है. उत्तराखंड हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश लोकपाल सिंह उपराष्ट्रपति के उस बयान को सही मान रहे है, जिसमें उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 142 परमाणु मिसाइल बन गया है.

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 142 का गलत इस्तेमाल नही होना चाहिए. वही जस्टिस वर्मा के घर मिले कैश को लेकर कहा कि एफआईआर होनी चाहिए. बिना एफआईआर के जांच संभव नही है. उन्होंने कहा कि कोई भी आदमी अपने मामले में न्यायाधीश नही होता. सुप्रीम कोर्ट को अपनी निगरानी में एजेंसी से जांच करानी चाहिए थी. इससे न्यायपालिका की छबि उज्ज्वल दिखाई देती.

जज वर्मा के घर मिली नकदी पर भी उठे सवाल

राष्ट्रपति और राज्यपाल को लेकर दिए गए निर्देश पर उन्होंने कहा कि निर्देश नही देना चाहिए था कि इतने समय में विधेयकों का निपटारा करें लेकिन रिटायर्ड जस्टिस लोकपाल सिंह यह भी मानते है कि विधायकों का सुप्रीम कोर्ट आना सही है. वही सुप्रीम कोर्ट के वकील एम एल लाहोटी ने कहा उपराष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 142 को लेकर दिए गए बयान को सही मानते है. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल जरूरी है.

लाहोटी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए समय तय नही कर सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट संसद को यह नही कह सकता कि कानून बनाओ. सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रपति और राज्यपाल को आदेश देने का अधिकार नही है. यहां तक कि स्पीकर तक को आदेश नही दे सकता. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र, कर्नाटक मामले में स्पीकर को आदेश दिया है. वकील लाहोटी ने वर्मा को लेकर उपराष्ट्रपति का बयान गलत है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा की जा रही जांच सही है. सुप्रीम कोर्ट का अपना एक प्रोसीजर होता है और उसके तहत जांच हो रही है. जांच रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई होगी.

परमाणु मिसाइल’ बना अनुच्छेद 142

जगदीप धनखड़ ने एक समारोह में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है. उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि भारत में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे और कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे और सुपर संसद के रूप में काम करेंगे. उन्होंने कहा हाल ही मैं एक निर्णय द्वारा राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है. हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या चल रहा हैं? हमें अत्यंत संवेदनशील होना होगा. यह कोई समीक्षा दायर करने या न करने का प्रश्न नहीं है.

उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका की भूमिका, पारदर्शिता और हाल की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है. इस देश में न्यायिक सुधार अब टालने लायक नहीं हैं. इस देश में न्यायिक सुधार इतने आवश्यक हैं कि संसद अब कोई बड़ा कानून पारित भी कर ले तो उसे कोई एक जज एक याचिका पर रोक देता है. अगर कोई एक जज एक याचिका पर संसद द्वारा पारित कानून को रोक सकता है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी हैं. बड़े फैसले अब संसद नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट करेगा और तब सरकार सिर्फ नाम की रह जायेगी.

संवैधानिक पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की आवश्यकता पर बल

उपराष्ट्रपति ने उपस्थित लोगों से कहा कि भारत में राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है और राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण एवं बचाव की शपथ लेते हैं. जबकि मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसदों और न्यायाधीशों सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते है. जगदीप धनखड़ ने हाल ही में हुई एक घटना का जिक्र किया, जिसमें एक न्यायधीश के यहां बड़ी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी, फिर भी उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.

धनखड़ ने कहा कि इस देश में किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा सकती है, चाहे वह आपके सामने मौजूद व्यक्ति ही क्यों न हो. इसके लिए बस कानून का शासन लागू करना होता है. इसके लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं होती है. बता दें कि संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है, चाहे वह किसी मामले में हो.

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-भारत एक्सप्रेस 

गोपाल कृष्ण

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