Neuro Problems: स्ट्रेस और टेंशन ये दो ऐसे शब्द हैं जो आजकल हर कोई इस चीज से गुजर रहा है. आजकल की भागती दौड़ती ज़िन्दगी में हम न चाहते हुए भी हम हर छोटी बड़ी चीज़ों का टेंशन लेते हैं और खुद की सेहत से खिलवाड़ करते हैं. अकसर यह समस्या से युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. लेकिन क्या न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के बारे में जानते हैं, जिससे सबसे ज्यादा युवा पीढ़ी फेस कर रही हैं.
आपको बता दें जो दुनिया के लिए सबसे बड़ी चिंता बनती जा रही है. इसका शारीरिक और मानसिक सेहत पर तो निगेटिव असर पड़ता ही है, क्वालिटी ऑफ लाइफ भी बुरी तरह प्रभावित हो सकती है. इसी को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. द लैंसेट न्यूरोलॉजी जर्नल में पब्लिश हालिया स्टडी में बताया गया है कि साल 2021 में दुनियाभर में 3.4 बिलियन यानी 340 करोड़ से ज्यादा लोग कई तरह की न्यूरोलॉजिकल प्राब्लम्स के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं. आइए जानते हैं क्या कहती है स्टडी…
हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, हमारा दिमाग, रीढ़ की हड्डी और तंत्रिकाएं मिलकर तंत्रिका तंत्र बनाती हैं, जो शरीर की सभी गतिविधियों को कंट्रोल करती है. जब तंत्रिका तंत्र का कोई भी हिस्सा किसी बीमारी की चपेट में या प्रभावित होता है तो इसके कई जोखिम देखने को मिल सकते हैं. न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम्स में चलने-बोलने, खाने-निगलने, सांस लेने और किसी नई चीज को सीखने में समस्याएं हो सकती हैं. जिससे याददाश्त कमजोर होती है, मानसिक समस्याएं बढ़ सकती हैं. न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर में कुछ कंडीशन बेहद गंभीर माने जाते हैं. कई बार तो ये जानलेवा भी हो सकता है.
लैंसट में पब्लिश रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल पॉपुलेशन में इजाफा होने के साथ प्रदूषण में रहना, मेटाबॉलिज्म और लाइफस्टाइल से जुड़े जोखिम की वजह से इस तरह की समस्याओं का खतरा बढ़ जा रहा है. शोधकर्ताओं ने बताया कि दुनियाभर में पिछले 31 सालों में न्यूरोलॉजिकल कंडीशन की वजह से विकलांगता और समय से पहले मौत के मामले बढ़े हैं. जिसे डिसेबिलिटी एडजेस्टेड लाइफ ईयर (DALYs) के तौर पर जाना जाता है. इसमें 18% की बढ़ोतरी हुआ है.
इस स्टडी के मुताबिक, साल 2021 में जिन 10 सबसे ज्यादा न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम्स की चपेट में लोग आएं, उनमें स्ट्रोक, नियोनेटल एन्सेफैलोपैथी यानी ब्रेन इंजरी, माइग्रेन, अल्जाइमर-डिमेंशिया, डायबिटिक न्यूरोपैथी, मेनिनजाइटिस, मिर्गी, समय से पहले जन्म की वजह से बच्चों में न्यूरोलॉजिकल कठिनाई, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर और तंत्रिका तंत्र के कैंसर शामिल है.
इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME), वाशिंगटन में अध्ययनकर्ता और रिसर्च प्रमुख लेखक डॉ. जेमी स्टीनमेट्ज ने बताया कि करीब सभी देशों में इस तरह की समस्याएं बढ़ी हैं. न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के कारण 80% से ज्यादा मौतें और सेहत से जुड़े खतरे, कम और मध्यम इनकम वाले देशों में रिपोर्ट हो रहे हैं. इन बढ़ती समस्याओं के बावजूद साल 2017 तक दुनियाभर में सिर्फ एक चौथाई देशों में ही न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के लिए अलग बजट और आधे देशों के पास क्लीनिकल गाइडलाइंस थे. चूंकि ये स्थिति काफी चिंताजनक है, इसलिए सभी देशों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए.
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