मेरी बात

विश्व शांति की जिद, मोदी जी-20 देशों की उम्मीद

एक मज़बूत नेतृत्व की पहचान परीक्षा की घड़ी में होती है और परीक्षा की ये घड़ी तब आती है जब विपत्तियों का पहाड़ खड़ा हो। वैसे तो विपत्तियों से सभी संघर्ष करते हैं, लेकिन संघर्ष करने के भी अपने-अपने तरीके होते हैं। ये तरीके तीन तरह के हैं। पहला कठिन परिश्रम, दूसरा हालात के मुताबिक चलने की कोशिश करना और तीसरा है होशियारी से चुनौतियों का सामना करना (स्मार्ट वर्क)। इनमें कठिन परिश्रम और हालातों के मुताबिक चलना किसी की काबिलियत नहीं मानी जा सकती, लेकिन होशियारी से चुनौतियों का सामना एक काबिल नेतृत्व ही कर सकता है। इसलिए अगर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ दुनिया उम्मीद लगाए देख रही है, तो इसका मतलब है कि उनका व्यक्तित्व हालात से उबारने की काबिलियत रखता है। यही वजह है कि जी-20 के एक परिवर्तनीय पद पर उनके आने से दुनिया में नई उम्मीद जागी है।

बात सितंबर 2014 की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका में थे। वहां एक कार्यक्रम में पीएम मोदी की एक घोषणा ने दुनिया को चौंका दिया था। उन्होंने कहा था कि 21वीं सदी भारत की होगी। तब तीन बातें उन्होंने गिनाईं थीं- लोकतंत्र, मांग और आबादी का स्वरूप। 8 साल पहले की उस चौंकाने वाली घोषणा को दुनिया महत्व देने लगी है। जी-20 समूह की अध्यक्षता कर रहा भारत दुनिया में सबसे तेज गति से विकास की राह पर है जबकि अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और चीन गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। वहीं रूस अपने पड़ोसी यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझकर रह गया है।

कोविड महामारी से उबरती दुनिया युद्ध, महंगाई और बेरोजगारी के बीच खाद्य एवं ऊर्जा के संकट का सामना कर रही है। ऐसे में भारत की ओर सबकी नज़र है जिसने महामारी के दौर में भी ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की राह नहीं छोड़ी। विपरीत परिस्थितियों में भी भारत का लोकतंत्र जिन्दा है। लोक कल्याणकारी योजनाएं ऐसी हैं कि 80 करोड़ आबादी सरकार की ओर से पांच किलो अनाज हर महीने मुफ्त हासिल कर रही हैं। आर्थिक गतिविधियां और निवेश दुनिया में किसी भी देश के मुकाबले बेहतर स्थिति में है।

जी-20 के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालते ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया को विश्वास दिलाया है कि वैश्विक बदलाव में यह मंच उत्प्रेरक (कैटेलिस्ट) साबित होगा। मगर, भारत की चुनौती आसान नहीं है। इसे समझने के लिए इंडोनेशिया के बाली शहर में जी-20 की बैठक के दौरान घटी दो घटनाओं पर गौर करें। जियो पॉलिटिक्स में मौजूदा तनाव को इन घटनाओं में स्पष्ट महसूस किया जा सकता है।

एक घटना है कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच खुली तकरार की। दोनों राष्ट्र प्रमुखों के बीच तू-तू मैं-मैं तक हुई और उसका वीडियो सामने आ गया है। दूसरी घटना है चीनी राष्ट्रपति के साथ ब्रिटिश प्रधानमंत्री की तय द्विपक्षीय वार्ता के रद्द हो जाने की। यह घटना भी लीक से हटकर घटी है जो चीन और इंग्लैंड के बीच असहज रिश्ते को बयां करता है।

भारत की वैश्विक नेतृत्वकारी भूमिका को समझने के लिए जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान दो अन्य मुलाकातों का जिक्र भी जरूरी है। 2014 और 2019 के दौरान 18 बार मुलाकात कर चुके पीएम नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग गलवान घाटी में संघर्ष के बाद पहली बार इंडोनेशिया के बाली में मिले। एक साथ डिनर किया और औपचारिक बातचीत भी। शी जिनपिंग का जो व्यवहार कनाडा या इंग्लैंड के प्रधानमंत्रियों के साथ दिखा, उसकी तुलना में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उनका व्यवहार बिल्कुल अलग था। यह एशिया और दुनिया में भारत की बढ़ती महत्वपूर्ण भूमिका और स्वीकार्यता का प्रमाण है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच तीन घंटे से ज्यादा चली बातचीत भी भारत समेत दुनिया के लिए महत्वपूर्ण घटना है। उत्तर कोरिया का आक्रामक व्यवहार और एक और युद्ध का खतरा टालने के लिए इन दोनों देशों का करीब आना जरूरी है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका इस मुलाकात और बदले हालात के पीछे की वजह है।

विश्व फोरम पर भारत ने खुलकर हमेशा युद्ध का विरोध और शांति की वकालत की है। सितंबर में समरकंद में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि “आज का युग युद्ध का युग कतई नहीं होना चाहिए।” दो महीने बाद नवंबर में बाली शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी ने इसी भावना को दोहराया है- “यह युद्ध का समय नहीं है।” बाली सम्मेलन से ठीक पहले खेरसोन से रूसी सेना की वापसी शांति का संदेश ही था, जिसे गंभीरता से लिया गया।

मौजूदा वैश्विक तनाव के बीच भारत ने लगातार जो रचनात्मक, सहयोग और सर्वसम्मति बनाने का रुख दिखाया है उसी का नतीजा है कि आज भारत की युद्ध विरोधी आवाज और शांति की अपील को सुना जा रहा है। यहां तक कि पोलैंड में कथित रूसी मिसाइल हमले पर नाटो के देश उत्तेजित नहीं हुए और इस सच्चाई तक पहुंचे कि इस घटना के पीछे रूस का हाथ नहीं है।

युद्ध में उलझे रूस-यूक्रेन दोनों ही देश मानते रहे हैं कि भारत ही उचित मध्यस्थता कर सकता है। जाहिर है कि अब जी-20 देश के अध्यक्ष के तौर पर भारत का महत्व पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है। इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि पहली बार रूस ने अफगानिस्तान मसले पर बातचीत में भारत को न्योता दिया है। मॉस्को फॉर्मैट कंसल्टेशन्स ऑन अफगानिस्तान’ की बैठक में भारत उसी दिन शरीक हुआ जिस दिन जी-20 की अध्यक्षता भारत को मिली।

‘नेबर फर्स्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट’ की पॉलिसी के साथ-साथ कोरोना महामारी के दौर में पूरी दुनिया को मदद करने वाली पॉलिसी ने मोदी के नेतृत्व वाले भारत को विश्वस्तर पर स्थापित किया है। भारत की वैश्विक छवि को मजबूत बनाने में विदेश मंत्री एस जयशंकर की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी गौर करना जरूरी है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से तेल खरीदने पर उठे सवालों पर जो जवाब एस जयशंकर ने दिया था वह चाहकर भी दुनिया भुला नहीं सकती। एस जयशंकर ने कहा था कि रूस से भारत जितना ईंधन एक महीने में खरीदता है उतना यूरोपीय यूनियन आधे दिन में खरीद लेता है। इसलिए सवाल भारत से नहीं यूरोपीय यूनियन से बनता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वादा किया है कि अलग-अलग देशों और शहरों में वे जी-20 की बैठकें आयोजित किया करेंगे। एक ऐसे समय में जब दुनिया आर्थिक संकट का सामना कर रही है, महंगाई और बेरोजगारी जैसी परिस्थितियों से गुजर रही है, ऐसे हालात में भारत रास्ता दिखाने को तैयार बैठा है। यही वो मौका है जब भारत निवेशकों को आकर्षित कर सकता है।

भारत के पड़ोसी बांग्लादेश ने जिस तरह से चीनी पहल ‘वन बेल्ट वन रोड’ पर उंगली उठाते हुए चीनी लोन के चक्र में बचने की सलाह दे डाली, उससे पता चलता है कि वैश्विक परिस्थितियां अब बदल चुकी हैं। हालांकि चीन ने इस पर एतराज भी जताया है। मगर, संदेश साफ है कि भारत के जी-20 ग्रुप के अध्यक्ष बनने से चीन के व्यापारिक वर्चस्व को चुनौती मिलेगी।

भारत को लेकर दुनिया को उम्मीद इस कारण भी है क्योंकि चीन और पाकिस्तान के उकसावे के बावजूद भारत का रवैया संयमित रहा है। आज का भारत उदारीकरण, मुक्त व्यापार और वैश्विक सहयोग की नीति पर चल रहा है। शांति, विकास और सह अस्तित्व ऐसी भारतीय नीतियां आज विश्व की जरूरत बन चुकी हैं। जी-20 अध्यक्ष के रूप में भारत वैश्विक युद्धोन्माद को कम करने की कोशिशों में कामयाब हुआ तो यह बड़ी बात होगी। चाहे उत्तर कोरिया पर लगाम कसने में चीन का उपयोग हो या फिर यूक्रेन युद्ध में रूस को बेक़ाबू होने से रोकना, दुनिया में भारत ही इकलौता ऐसा देश है जिसके लिए ऐसा करना संभव है। यह काम जापान या अमेरिका के वश की बात नहीं है। इजरायल और फिलीस्तीन के बीच संतुलित कूटनीति के जरिए भारत पहले ही दुनिया को संदेश दे चुका है। ऐसे में जी-20 अध्यक्ष के रूप में भारत की संयमिता और सक्रियता की आज पूरे विश्व को दरकार है।

 

 

 

उपेन्द्र राय, सीएमडी / एडिटर-इन-चीफ, भारत एक्सप्रेस

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