दिल्ली कहां गईं तिरे कूचों की रौनकें
गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूं मैं…
कभी स्वर्ण की तरह दमकने और गुलजार रहने वाली दिल्ली को जहरीली हवा और प्रदूषण ने बीमार बना दिया है। पिछले कई वर्षों की तरह इस बार भी अक्टूबर नवंबर का महीना दिल्ली को भयभीत करने वाला बन गया। इस दौरान वायु प्रदूषण नए रिकॉर्ड बनाते हुए खतरनाक स्तर तक पहुंच गया। वायु प्रदूषण की ये समस्या अब दिल्ली तक ही सीमित नहीं रह गई है बल्कि देश के अधिकांश हिस्से इससे जूझ रहे हैं।
हर साल की तरह इस बार भी ये समस्या देश की राजधानी दिल्ली एवं आसपास के इलाकों में जानलेवा बन गई। जो बीमार चल रहे थे उनकी मुश्किलें बढ़ गईं लेकिन जो स्वस्थ थे वो बीमार पड़ने लगे। सांस लेना तक दुश्वार हो गया। हालत ये हो गई कि सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई चलने लगी। सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थान राजस्थान की सरकारों को प्रदूषण कम करने के सख्त निर्देश दिए हैं और कहा है- “हम चाहते हैं कि इसे रोका जाए। हम नहीं जानते कि आप इसे कैसे करेंगे, लेकिन इसे रोकना आपका काम है। तुरंत एक्शन लें। केन्द्र सरकार धान की खेती कम कर अन्य फसलें उगाने पर जोर दे।”
प्रति वर्ष अक्टूबर-नवंबर महीने में सामने आने वाली इस समस्या के निराकरण के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है लेकिन ऐसी कोई पहल जमीनी स्तर पर कहीं भी दिखाई नहीं देती। वैसे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अक्टूबर महीने में ही वायु प्रदूषण पर संज्ञान लिया था लेकिन वह अपने दिशा निर्देश लागू कराने में विफल रहा। वायु प्रदूषण का जो स्तर इन दिनों बना हुआ है वह स्वयं इस विफलता की कहानी बयां कर रहा है। कहते हैं कि जब पानी सिर से ऊपर बहने लगे तो तैराकी सिखाने का वक्त नहीं होता। जान बचाने का वक्त होता है। यह बात हमारे जिम्मेदार संस्थानों और सरकार को कब समझ में आएगी?
दिल्ली की सरकार कहती रही थी कि पंजाब में पराली जलने से हर साल वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या होती है। पंजाब और दिल्ली की सरकार जब एक ही राजनीतिक पार्टी की हो गई तो उसने कहना शुरू किया हरियाणा दिल्ली के पास है और हरियाणा के कारण ही दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है। हरियाणा की सरकार कह रही है कि वह स्वयं पंजाब से फैल रहे प्रदूषण का शिकार है। यह सब कहते-सुनते वो 50 दिन बीत जाएंगे जो वायु प्रदूषण के कारण साल में सबसे ज्यादा जानलेवा साबित हो रहे हैं। गंभीर वायु प्रदूषण पर हमारी गंभीरता का यही स्तर है और हम बीते कई सालों से इस ‘गंभीरता’ को देखते सुनते आए हैं लेकिन सब कुछ जानने समझने के बाद भी कभी गंभीर नहीं हुए। ऐसे में जब तक वायु प्रदूषण के मूल कारणों को हम नहीं समझ लेते तब तक समाधान कैसे निकाल सकते हैं? एनजीटी हो या सुप्रीम कोर्ट उन्हें केन्द्र और राज्य सरकार की मदद से समाधान निकालने पर जोर देना होगा। विशेषज्ञ कमेटी उनकी मदद कर सकती है। लेकिन सिर्फ निर्देश जारी कर देने भर से जिम्मेदारी पूरी नहीं होगी।
हाल ये है कि दिल्ली इस समय दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन चुकी है। प्रदूषण की लिस्ट में पाकिस्तान का लाहौर दूसरे नंबर पर, कोलकाता तीसरे नंबर पर, कराची चौथे नंबर पर, मुंबई पांचवें नंबर पर, छठे नंबर पर इराक का बगदाद, सातवें पर ढाका, आठवें पर काठमांडू, नौवें नंबर पर उज्बेकिस्तान का ताशकंद और 10वें नंबर पर इंडोनिशिया का जकार्ता हैं। इस लिस्ट में गौर करने वाली बात यह है कि टॉप टेन में भारत के तीन शहर- दिल्ली, कोलकाता और मुंबई शामिल हैं।
दिल्ली की हवा किस कदर जहरीली हो गई, उसका अंदाजा वायु प्रदूषण को मापने वाले इंडेक्स एक्यूआई यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स के आंकड़ों से लगाया जा सकता है। वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट IQ Air’s 2023 ने 8 नवंबर को ताजा आंकड़ा जारी किया। इसका आधार है रियल टाइम एयर क्वालिटी इंडेक्स। रिपोर्ट के अनुसार नई दिल्ली में एक्यूआई लेवल (PM2.5) 443 पाया गया जो लाहौर के एक्यूआई लेवल 455 से कम है। यह महज संयोग है कि रियल टाइम क्वालिटी रिपोर्ट में नई दिल्ली दूसरे नंबर पर है। अगर एक हफ्ते के पूरे आंकड़े को देखा जाए तो नई दिल्ली आज दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार है।
IQ Air’s 2023 की वार्षिक रिपोर्ट 2022 कहती है दुनिया के टॉप 20 प्रदूषित शहरों में 14 भारत से हैं जिनमें भिवाड़ी, दिल्ली, दरभंगा, आसोपुर, पटना, गाजियाबाद, देहरादून, छपरा, मुजफ्फरनगर, ग्रेटर नोएडा, बहादुरगढ़, फरीदाबाद और मुजफ्फरपुर जैसे शहर शामिल हैं।
Statista.com के आंकड़े बताते हैं कि 1990 में प्रदूषण के कारण भारत में 13 लाख 33 हजार लोगों की जान चली गई थी। सन् 2000 में यह आंकड़ा 13.87 लाख हुआ। 2010 में 14.59 लाख और 2019 में 16.67 लाख हो गया। दुनिया में 2019 में प्रदूषण के कारण 90 लाख लोगों की मौत हुई थी। इस हिसाब से वायु प्रदूषण के कारण दुनिया में मौत की नींद सो रहा हर पांचवां-छठा व्यक्ति भारत से है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार हर घंटे भारत में करीब 12 व्यक्ति वायु प्रदूषण के कारण मौत की नींद सो जाते हैं। इनमें से 7 बच्चे होते हैं। शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी ऑर्गनाइजेशन की 2023 की जीवन प्रत्याशा रिपोर्ट (AQLI) खुलासा करती है कि दिल्ली में रहने वाले लोगों की औसत आयु 11.9 साल कम हो गई है।
साल दर साल वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर होती चली गई और हम इसका समाधान खोजने के बजाए पराली पर ध्यान टिकाए रहे। पराली का जलना खत्म मानो वायु प्रदूषण खत्म। लेकिन, क्या सचमुच वायु प्रदूषण के कारण प्रदूषण की स्थिति गंभीर हो रही है? अगर ऐसा होता तो भारत के 14 शहर सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर नहीं होते। हर शहर पराली जलाने वाले प्रदेश के दायरे में नहीं आते।
एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर बीते 2 नवंबर को 68% और खराब हो गया। यह खतरनाक और अभूतपूर्व स्थिति 24 घंटे के भीतर बनी। इसी दौरान ‘सफर’ के आंकड़े बता रहे थे कि दिल्ली के पीएम 2.5 की सांद्रता का स्तर बीते कुछ दिनों से 25-35 प्रतिशत के स्तर पर बना हुआ था। पिछले साल की तुलना में पराली के कारण वायु प्रदूषण का स्तर कम हुआ है और यह औसतन 25 प्रतिशत भूमिका निभाने के स्तर पर बना रहा। इसका मतलब यह है कि पराली के कारण स्थिति खराब हुई- यह निष्कर्ष निकालना सही नहीं होगा। तो फिर कारण क्या है?
वायु प्रदूषण के कारण एक नहीं, अनेक हैं। सिर्फ किसान नहीं, उद्योग-धंधे और हमारे जीवन-स्तर में आया बदलाव इसके लिए जिम्मेदार हैं। बिजली उत्पादक यंत्र, औद्योगिक बॉयलर, स्टील मिलें और व्यावसायिक एवं घरेलू यंत्र से निकलने वाले प्रदूषण से पीएम2.5 का स्तर बुरा होता चला जाता है। जब यह पीएम10 से मिलता है जो मूलत: धूलकण होते हैं तो स्थिति और बुरी हो जाती है। वाहनों से निकलते प्रदूषण, कचरा जलाने, निर्माण उद्योग और दूसरे स्रोतों से धूल का निर्माण वायु प्रदूषण की स्थिति को भयावह बना रहा है।
वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए हम उपायों को दो स्तरों पर बांट सकते हैं- तात्कालिक और दीर्घकालिक यानी स्थायी समाधान। तात्कालिक उपाय पेन किलर की तरह हैं। ये फौरी राहत दे सकते हैं। इनमें ऑड ईवन का प्रयोग, वर्क फ्रॉम होम, पराली जलाने पर एक निश्चित समय तक के लिए रोक, पटाखे फोड़ने पर रोक, प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित स्थानों पर पानी के फव्वारे, निर्माण उद्योग पर निश्चित समयावधि के लिए रोक, कचरों को जलाने पर सख्ती शामिल हैं।
लेकिन स्थायी समाधान हम प्रकृति की शरण में जाकर ही ढूंढ़ सकते हैं। कंक्रीट प्रदेश को हरित प्रदेश में बदलना पहला लक्ष्य होना चाहिए। पेड़-पौधे धूलकणों को अपने आप में समेट लेते हैं और बारिश धूलकणों को वायु के साथ मिलकर प्रदूषण का खेल नहीं होने देती। नदियों की सफाई भी हरित प्रदेश को बनाने और बारिश को नियमित करने में मददगार होगी। इसका असर वायु प्रदूषण के नियंत्रण पर दिखेगा।
डीजल से चलने वाली गाड़ियां, जेनरेटर के विकल्प हमें जनता को देने होंगे। कूड़े-कचरे का पहाड़ खड़ा न हो और जो ऐसे पहाड़ हैं उसका प्रबंधन हो-यह भी वायु प्रदूषण से मुक्ति का स्थायी समाधान देने में कारगर हो सकता है। लेकिन, ऐसे कदम उठाए जाएंगे-इसमें संदेह है। वैसे भी मौसम में बदलाव के कारण जनवरी आते-आते प्रदूषण की समस्या से लोग उबर चुके होंगे। फिर सर्दी से मरने और बचने का दौर शुरू होगा। बारिश और बाढ़ भीषण गर्मी के बाद आएंगी। इस शोर में समस्या पर चर्चा कुछ दिनों के लिए फिर रुक जाएगी, उस समय तक जब ये फिर से सिर उठाना शुरू करेगी। ऐसा लगता है मानो यह चक्र अब निरंतर चलते रहने वाला हो। लेकिन आज की यह अनदेखी और लापरवाही भविष्य में बहुत महंगी साबित हो सकती है जिसके लिए आने वाली पीढ़ी शायद हमें माफ न करे।
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