अगर बात वाकई इतनी आगे जा चुकी है तो सत्ता बचाने के चक्कर में ट्रूडो निश्चित ही आग से खेल रहे हैं। और इस बात को उनके अलावा पूरी दुनिया समझ रही है।

नया भवन मिल जाने के बाद पुरानी इमारत के उपयोग के सवाल को भी मोदी सरकार ने परिपक्वता से हल किया है।

वैश्विक कूटनीति के संदर्भ में यह भारत को लेकर आया एक बड़ा बदलाव है और इसका श्रेय पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही जाता है।

दूसरी तरफ बीजेपी है जिसकी दिक्कत यह है कि तमाम आक्रामक प्रचार के बावजूद वो उदयनिधि के बयान की आलोचना करने में सतर्कता भी बरत रही है क्योंकि सवाल फिर आंबेडकर और पेरियार पर भी उठते हैं.

चोर चोरी से जाए, सीनाजोरी से न जाए। कहावत पुरानी है, लेकिन हमारे पड़ोसी चीन से जुड़े बार-बार के नए संदर्भों पर एकदम सटीक बैठती है।

भारत के लिए चंद्रयान-3 की कामयाबी चांद पर बेस बनाने के लिए एक टर्निंग प्वाइंट है मगर इसका घोषित उद्देश्य मानव कल्याण है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह भरोसा दिलाकर कि भारत की एकता को आंच आए, न ऐसी मेरी भाषा होगी, न कोई कदम होगा- बड़ी बात कह दी है।

2014 में सत्ता में आने के बाद यह दूसरी बार है जब प्रधानमंत्री मोदी को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा।

हिंसा का यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा है। देश की सर्वोच्च अदालत ने संवेदनशील इलाकों में सुरक्षाकर्मियों की तैनाती बढ़ाने और नफरत फैलाने वाले भाषण पर रोक लगाने का आदेश दिया है।

केन्द्र सरकार राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला करे या नहीं, यह उसका विशेषाधिकार है लेकिन व्यापक यौन हिंसा से निपटने के उपाय तो अवश्य ही उसकी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में होने चाहिए।