खालिस्तान समर्थक भगोड़े अमृतपाल सिंह की कहानी किसी सस्पेंस थ्रिलर से कम है क्या? वो देश भर की पुलिस को चकमा ही नहीं दे रहा है, बल्कि सोशल मीडिया पर नई-नई शर्तें और कानून के राज को खुलेआम चैलेंज कर रहा है। 18 मार्च को उसे गिरफ्तार करने के लिए मोगा के कमालके में कमाल की नाकेबंदी की गई थी। आठ-आठ जिलों के एसएसपी, दो डीआईजी स्तर के अधिकारी और अर्द्धसैनिक बलों की कंपनियां लगी रहीं, लेकिन अमृतपाल उनके सामने से ही फरार हो गया। दो हफ्ते पहले जिस काम को पूरा करने का जिम्मा पंजाब के आठ जिले की पुलिस पर था, अब नौ राज्यों की पुलिस भी मिलकर उसे पूरा नहीं कर पा रही है। वो उत्तराखंड से लेकर हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र और न जाने कहां-कहां देखा गया है। ये तो वो जगह है जहां से उसकी लोकेशन मिली है। उसके उत्तरप्रदेश बॉर्डर पार कर नेपाल पहुंच जाने की अटकलें भी हैं। भारतीय दूतावास की अपील पर नेपाल के इमिग्रेशन डिपार्टमेंट ने उसे वॉच लिस्ट में जरूर डाल दिया लेकिन पुराना इतिहास गवाह है कि नेपाल में ऐसी कार्रवाई कितनी असरकारी होती है। अब फिर चर्चा है कि पुलिस ने अमृतसर और बठिंडा में और उसके आसपास सुरक्षा कड़ी कर दी है, क्योंकि अमृतपाल सिंह अमृतसर के स्वर्ण मंदिर या बठिंडा में तख्त श्री दमदमा साहिब में से किसी एक में प्रवेश करने के बाद आत्मसमर्पण कर सकता है। ये कोई नहीं बता रहा है कि अगर पुलिस के पास उसके नेपाल चले जाने की सूचना थी, तो फिर ‘परिंदा भी पर नहीं मार सकता’ वाली सुरक्षा के तमाम दावों के बीच वो बॉर्डर पार कर वापस भारत कैसे लौट आया? ये तो दो ही स्थितियों में संभव है – या तो पुलिस के सूचना तंत्र में खामी है या फिर उसका सुरक्षा तंत्र फेल कर गया है।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए ने आतंकी संगठनों और गैंगस्टरों की जांच के लिए 2022 और 2023 में पंजाब में कई जगहों पर छापेमारी की थी। उस समय अमृतपाल को क्यों बख्शा गया, इसका जवाब किसी के पास नहीं है जबकि उस समय हमारे घरेलू मीडिया समेत अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी जैसे देशों में भिंडरावाले 2.0 के रूप में उसकी ताजपोशी का डंका जमकर पीटा जा रहा था। सवाल बहुत सारे हैं? जालंधर में आमने-सामने की भिड़ंत में तीन में से केवल उसी गाड़ी का बचकर निकल भागना जिसमें अमृतपाल बैठा था क्यों महज संयोग है? राज्य की 80 हजार पुलिस को चकमा देकर एक देश विरोधी का भाग निकलना किसकी ‘काबिलियत’ कही जाएगी? नाकामी केवल पंजाब पुलिस की ही नहीं है, ये इंटेलिजेंस के लिए भी उतनी ही शर्म की बात है क्योंकि जब कोई वांटेड अपराधी होता है तो केंद्रीय इंटेलिजेंस ब्यूरो की भी ये जिम्मेदारी होती है कि वो उसे ट्रैक करें और नजदीकी पुलिस थाने को इसकी सूचना दें और उसकी गिरफ्तारी को सुनिश्चित करें। बेशक मोदी सरकार की सख्त निगरानी और अचूक कार्रवाई के कारण देश में आतंकवादी घटनाएं अब पुराने दिनों की बातें हो गईं हैं। इसलिए ये बात हैरान करती है कि अमृतपाल पर इंटेलिजेंस कैसे चूक कर गई? व्यावहारिक समझदारी तो यही कहती है कि अमृतपाल ने जिस देश में कदम रखा, उसी दिन से और खासकर खालिस्तान का खुलेआम समर्थन करने के बाद तो निश्चित रूप से उसे देश के खुफिया रडार पर होना चाहिए था और उस पर एनएसए के तहत केस दर्ज किया जाना चाहिए था। 24 फरवरी को अजनाला पुलिस थाने पर हमले के बाद आखिरकार जब उस पर कार्रवाई का निर्णय लिया गया, तब तक काफी देर हो चुकी थी।
चेहरे बदल-बदलकर देश के सुरक्षा तंत्र को चुनौती दे रहे अमतृपाल का असली चेहरा क्या है? पिछले साल गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराने वाले दीप सिद्धू की कार दुर्घटना में रहस्यमय मौत और उसकी जगह ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन की कमान अपने हाथ में लेने से पहले तक अमृतपाल को भारत क्या, पंजाब का आम बाशिंदा भी ठीक से नहीं जानता था। इसी वजह से वो दुबई से जुड़े अपने अतीत के बारे में खुलकर बात नहीं करता है जहां वह गैर-अमृतधारी था और सिख धार्मिक सिद्धांतों का पालन नहीं करता था। दुबई में वो ड्रग डीलर जसवंत सिंह रोडे से जुड़ा हुआ था, जिसका भाई पाकिस्तान से काम कर रहा है। भारत आने के बाद उसने अचानक एक धार्मिक कट्टरपंथी के रूप में काम करना शुरू कर दिया, जो एक तो उसकी पिछली 29 साल की जिंदगी से बिल्कुल अलग था और दूसरा स्पष्ट रूप से इस आशंका को बल देता है कि उसे भारत में भारतीय हित के लिए विरोधी ताकतों द्वारा लगाया गया।
ये ताकतें कौन सी हैं – इसकी जानकारी के लिए ये पता लगाना जरूरी है कि कौन उसे खालिस्तान के बहाने देश में अस्थिरता फैलाने के लिए रसद पानी दे रहा था, कौन उसे कानून के शिकंजे बचा रहा था, और अब जब वो मारा-मारा फिर रहा है तो कौन उसके लिए सुरक्षित ठिकाने उपलब्ध करा रहा है? अमृतपाल को 158 विदेशी खातों से फंडिंग की सूचना है जिनमें से 28 खातों से 5 करोड़ से ज्यादा की रकम भेजी गई थी। इन खातों का कनेक्शन पंजाब के माझा और मालवा से है। आश्चर्य की बात है कि फेमा पर केन्द्र सरकार की सक्रियता और उससे जुड़ी कई सक्सेस स्टोरी के बीच भी अमृतपाल एक साथ इतने सारे विदेशी खातों को कैसे ऑपरेट कर रहा था? क्या इस मामले का हवाला से भी कोई कनेक्शन सामने आएगा? उसके मददगारों में एक ओर ड्रग तस्कर हैं जो अपनी काली कमाई से उसकी मदद कर रहे हैं और दूसरी ओर आईएसआई है जो उस तक हथियार और अन्य मदद पहुंचा रही है। विदेशों में बैठे उसके आका अलग से उसे करोड़ों की फंडिंग कर रहे हैं। नशा मुक्ति केन्द्र की आड़ में वो खुद को हथियारों से लैस कर एक अलग सेना तैयार कर रहा था। अमृतपाल की एक महिला ब्रिगेड को लेकर भी जानकारी मिल रही है जो एक तरह से उसका साया बनकर घूम रही है और जिसकी मदद से हाई अलर्ट होने के बावजूद वो शहर-शहर सारी एजेंसियों को चकमा देता घूम रहा है। यह संयोग नहीं हो सकता कि हर बदलते ठिकाने पर उसे आसरा देने वाली उसकी कोई महिला मित्र ही निकली है। वहीं बार्डर पार कराने के लिए आईएसआई की ओर से अपने सभी स्लीपर सेल को एक्टिव करने की खबरें भी हैं। महज डेढ़ महीने पहले उसकी पत्नी बनी किरणदीप कौर का भी संदिग्ध अतीत है। वो ब्रिटेन में रहती है और खालिस्तानी समर्थक होने के साथ ही कथित तौर पर बब्बर खालसा संगठन के संपर्क में है।
निश्चित रूप से ये जानकारियां महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि इन्हें जुटाने में अब बहुत देर हो चुकी है। अमृतपाल का अब तक पकड़ में नहीं आना उसके बढ़ते कद की तरह अब बड़ा सवाल बन गया है। वो खुलेआम पंजाब से लेकर देश के नेताओं को अंजाम भुगतने की चुनौती दे रहा है। सबसे बड़ा खतरा इस बात का है कि पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है जहां सामाजिक और आर्थिक बवंडर फैलाने का तमाम मसाला पहले से मौजूद है। मुख्यधारा में सिखों के बहिष्कार का नैरेटिव, कट्टरपंथी प्रवासी और आईएसआई का दखल पंजाब में अलगाववाद को फिर हवा दे सकता है। तेजी से नुकसान का धंधा बनती जा रही खेती और उसके साथ ही कम हो रही कृषि योग्य भूमि के बीच बढ़ती बेरोजगारी और सीमा पार से आ रहे ड्रग के कारण चुनौती और गंभीर हो सकती है। पंजाब में आम चलन है कि परिवार के एक व्यक्ति को विदेश भेजने के लिए जमीन बेच दी जाती है। फिर जब घर में आर्थिक मुश्किलें आती हैं तो मदद विदेश से आती है और धीरे-धीरे परिवार प्रवासी कट्टरपंथियों के प्रभाव के प्रति संवेदनशील होता जाता है। इसके पीछे शेष भारत में अल्पसंख्यकों के हवाले से पैदा हुआ डर भी काफी काम करता है। कौम की आड़ में फैलाया गया ये पूरा नैरेटिव अमृतपाल जैसे लोगों की ‘लार्जर दैन लाइफ’ वाली छवि बनाने के काम आता है जैसा हमने भिंडरावाले के मामले में भी देखा है। पंजाब फिर अस्सी वाले उसी दशक में न पहुंच जाए इसके लिए जरूरी है कि अमृतपाल के सरेंडर करने या उसकी गिरफ्तारी के बाद पारदर्शी जांच और अभियोजन सुनिश्चित कर जल्द-से-जल्द उसकी इस कथा का उपसंहार लिख दिया जाए। क्योंकि अमृतकाल में हिंद की गौरव गाथा में दाग है ये अमृत कथा।
-भारत एक्सप्रेस
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