मुद्दे की परख

भारत अब ‘सॉफ्ट स्टेट’ नहीं: जॉर्ज सोरोस, हिंडनबर्ग और बीबीसी को सीधा संदेश

अडानी ग्रुप को लेकर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के आने के कई हफ्तों बाद अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस ने पीएम नरेंद्र मोदी और भारत के खिलाफ बयानबाजी की थी. वहीं, बीबीसी के दिल्ली और मुंबई स्थित दफ्तरों पर आईटी के ‘सर्वे’ पर भी विदेशी मीडिया में खबरें चलीं. भारत के दौरे पर आए ब्रिटेन के फॉरेन सेक्रेटरी जेम्स क्लेवरली ने भी बीबीसी के दफ्तरों पर आयकर विभाग के सर्वे के मुद्दे को उठाया, जिस पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ब्रिटिश फॉरेन सेक्रेटरी से दो टूक कहा कि जो भी कंपनियां भारत में काम कर रही हैं, उन्हें देश के कायदे-कानून का पालन करना होगा.

भारत में जी20 के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए आए क्लेवरली ने एस. जयशंकर के साथ बातचीत के दौरान इस मुद्दे को उठाया. पिछले दिनों बीबीसी के दिल्ली और मुंबई स्थित दफ्तरों में कथित टैक्स फ्रॉड जांच के सिलसिले में आयकर विभाग ने सर्वे किया था. यूके स्थित मुख्यालय से संचालित ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) द्वारा प्रधानमंत्री और 2002 के गुजरात दंगों पर एक दो-भाग वाली डॉक्यूमेंट्री, “इंडिया: द मोदी क्वेश्चन” प्रसारित करने के कुछ सप्ताह बाद यह सर्वे किया गया था.

जयशंकर की यह प्रतिक्रिया पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के रवैये के बिल्कुल विपरीत है, जब 2010 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने वोडाफोन ग्रुप पीएलसी पर टैक्स क्लेम को लेकर अपना विरोध दर्ज कराते हुए मनमोहन को पत्र लिखा था. तब मनमोहन सिंह ने गॉर्डन ब्राउन को आश्वस्त किया था कि विदेशी लेनदेन के जरिए हचिंसन के भारत संचालन का अधिग्रहण करने के लिए वोडाफोन पर पूर्वव्यापी कर नहीं लगाया जाएगा. मनमोहन सिंह ने 5 फरवरी, 2010 को ब्राउन को लिखे पत्र में कहा था, “मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि वोडाफोन को कानून का पूरा संरक्षण मिलेगा.” दुर्भाग्य से सिंह यह वादा भी पूरा नहीं कर सके.

तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने वित्त विधेयक 2012 में एक प्रावधान पेश किया, जिसमें भारतीय संपत्ति के अप्रत्यक्ष हस्तांतरण पर रेट्रोस्पेक्टिव तरीके से टैक्स की मांग की गई थी, जिसे वर्षों के बाद मुकदमेबाजी के बाद आखिरकार वापस ले लिया गया था. दस साल के बदलाव के बाद भारत वैश्विक परिदृश्य में काफी मजबूत स्थिति में खड़ा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने हाल के वर्षों में अपनी अर्थव्यवस्था और गवर्नेंस दोनों के संदर्भ में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं. भारत को एक ‘सॉफ्ट स्टेट’ माना जाता रहा है, लेकिन देश ने राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और आर्थिक विकास जैसे विभिन्न मोर्चों पर अपनी ताकत और संकल्प का प्रदर्शन करने के लिए कई कदम उठाए हैं. कुछ उदाहरण के जरिए समझते हैं कि भारत अब ‘सॉफ्ट स्टेट’ क्यों नहीं रहा.

राष्ट्रीय सुरक्षा: भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले पर कई कदम उठाए हैं, जिसमें अपनी सीमा सुरक्षा को मजबूत करना, अपने सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण और अपनी खुफिया जानकारी एकत्र करने की क्षमताओं को बढ़ाना शामिल है. भारत ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद पर कड़ा रुख अपनाया है और हिंसा और उग्रवाद के प्रति जीरो-टॉलरेंस की नीति अपनाई है.

विदेश नीति: भारत-प्रशांत रणनीति के हिस्से के रूप में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाते हुए भारत अपनी विदेश नीति में मुखर रहा है. चीन के साथ सीमा विवाद और दक्षिण एशिया में उसके बढ़ते आर्थिक और सैन्य प्रभाव सहित मामलों में भारत ने चीन को लेकर कड़ा रुख अपनाया है.

आर्थिक विकास: भारत ने हाल के वर्षों में तेजी से आर्थिक विकास किया है और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया है. सरकार ने अधिक बिजनेस-फ्रेंडली माहौल बनाने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए जीएसटी और आईबीसी जैसे कई आर्थिक सुधारों को लागू किया है.

सामाजिक परिवर्तन: भारत में महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन भी हुए हैं, जैसे कि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को समाप्त करना, नागरिकता संशोधन अधिनियम की शुरुआत और हाल ही में कृषि बिल. ये परिवर्तन महत्वपूर्ण सुधारों को लागू करने और विरोध के बावजूद नीतियों को आगे बढ़ाने के सरकार के संकल्प को दर्शाते हैं.

संक्षेप में पीएम मोदी के गतिशील नेतृत्व के तहत भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति, आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन ये दर्शाते हैं कि भारत अब एक ‘सॉफ्ट स्टेट’ नहीं है बल्कि एक मजबूत, मुखर देश है जो अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए साहसिक कदम उठाने को तैयार है.

(मूल लेख का हिंदी अनुवाद)

उपेन्द्र राय, सीएमडी / एडिटर-इन-चीफ, भारत एक्सप्रेस

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