प्रत्येक वर्ष की भाँति वर्ष 2022 की शारदीय नवरात्रि पुनः एक अवसर है माँ भगवती की कृपा प्राप्त करने का जो नवरूपों में हमारे घर आती हैं. यह अवसर असत्य पर सत्य की विजय का संदेश देने के साथ ही देश में धार्मिक एकता का सुन्दर वातावरण भी निर्मित करता है. इस बार भी विजयादशमी ने परोक्ष रूप से राष्ट्र की नकारात्मकताओं पर भारतीय संकल्प की विजय का संदेश दिया है और यह विजय यात्रा निरंतर गतिमान है.
आज के सभ्य-वैश्विक परिवेश में भारत के पर्व इस देश की चराचर संस्कृति का परिचायक हैं. हम पूरे वर्ष अनेकों त्योहारों के साक्षी बनते हैं और इन सभी त्योहारों को मनाने की अपनी आदिकाल से चली आ रही परंपरा का निर्वहन भी करते हैं.
भारतवर्ष के समस्त त्योहार सनातन संस्कृति के अवगाहक हैं जिसके मूल में मानवता के आदर्श हैं. तदनुसार हमारा प्रत्येक पर्व अपना एक विशेष संदेश लेकर आता है. कहना न होगा कि प्रत्येक सनातनी पर्व लोगों में पारस्परिक प्रेम तथा सद्भावना का संदेश देता है औऱ जीवन में उल्लास व उत्साह का संचार करता है. सर्वविदित है कि भारत के प्रमुख पर्व होली, रक्षाबंधन, दीपावली एवं विजयादशमी न केवल देश में अपितु विश्व में भी धूमधाम से मनाये जाते हैं.
विजयादशमी का शाब्दिक अर्थ है ऐसी दसवीं तिथि जो ऋणात्मक शक्तियों पर धनात्मक प्रयासों की विजय को दर्शाती है. इसे दशहरा कह कर भी संबोधित किया जाता है जो कि हिंदुओं के लिए एक विशेष पर्व के रूप में प्रतिवर्ष प्रस्तुत होता है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को हर वर्ष मनाया जाने वाला दशहरा जनमानस में प्रसन्नता, उत्साह तथा आंतरिक ऊर्जा का संचार करता है.
इस पर्व के पौराणिक रूप को देखें तो हमारी सनातनी मान्यता बताती है कि ये वह तिथि है जब अयोध्या के राजा राम ने लंका के आततायी राक्षस रावण का वध किया था. राक्षसराज दशानन का संहार करके मर्यादापुरुषोत्तम राम ने उस युग के सबसे बड़े खलनायक के अत्याचारों का उपसंहार किया था. उसके बाद से हम भारत में भगवान राम की इस विजय-स्मृति को विजयादशमी के पर्व के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है.
प्रतिवर्ष विजयादशमी की प्रस्तोता बनती है शारदीय नवरात्रि और इसके उपरांत ही मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद विजयादशमी का उत्सव मनाया जाता है. इसके पूर्व नौ दिन माँ अन्नपूर्णाहमारे घर माँ भवानी के रूप में पधारती हैं और इन नौ दिनों के दौरान हम माँ के नव-रूपों के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं. अतएव, नवरात्रि को हम नवदुर्गा के नाम से भी पुकारते हैं. दुर्गति नाशनि दुर्गा भवानी दैत्यों-राक्षसों-असुरों का दमन करके नास्तिकता पर आस्तिकता की विजय का भी संदेश देती हैं.
संस्कृत में ‘निशेष देवगण शांति समूह मूर्त्या’ कह कर भी माँ जगदंबा की स्तुति की गई है जिसका अर्थ है समस्त देवताओं हेतु शांति की स्थापना करने वाली मातृशक्ति अर्थात आदिरूपा माँ भवानी. महिषासुर, मधु-कैटभ, शुंभ-निशुंभ जैसे विकट दैत्यों का विनाश करने वाली माँ भगवती के लिये कहा गया है –‘दैत्य नाशनार्थ वचनो दकारः परिकीर्तित’ –अर्थात दैत्यों के नाश हेतु वचन देकर अपने वचन को पूर्णता में परिवर्तित करने वाली महादेवी हैं माँ शक्तिरूपा.
भगवान शिव का अर्धांग स्वरूप माँ शिवानी भी कहलाती हैं. माँ के नवरुपों के नव-प्रयोजन भी शास्त्रों में दर्शित होते हैं. ‘उकारो विघ्ननाशस्य वाचको वेद सम्मतः’ कह कर भी माँ सिंह वाहिनी की प्रशस्ति की गई है और इस पंक्ति के माध्यम से उनको विघ्नों का नाश करने हेतु अवतरित होने वाली माँ कह कर वेदों ने उन्हें अपनी सम्मति प्रदान की है. इसी तरह ‘रेफो रोगाघ्न वचनो’ कह कर माँ को रोगों का नाश करने वाली भी कहा गया है. ‘पापघ्न वाचकः’ के शब्दों के माध्यम से माँ के पाप-नाशक स्वरूप को भी दर्शित किया गया है. ‘भय शत्रुघ्न वचनश्चाकारः परिकीर्तित’ कह कर माँ शिवानी को भय और शत्रुओं से त्राण दिलाने का वचन देने वाली माँ कह कर भी पुकारा गया है.
विजयादशमी को आयुधपूजा के नाम से भी जाना जाता है, साथ ही इस दिन प्रतिवर्ष आयुधपूजा भी की जाती है. भारतीय सशस्त्र सेना के तीनों स्तरों पर आयुधपूजा का आयोजन किया जाता है और इस तरह देश माँ भवानी से विजय के वरदान की अपेक्षा करता है. दस भुजा वाली माँ भवानी का मूल रूप तो दानव-दलन का परिचायक है परंतु यह कम ही लोग जानते हैं कि माँ की दस भुजाओं का क्या संकेत है. माँ रूप में अन्नपूर्णा अर्थात माँ पार्वती समस्त प्राणी जगत के भोजन का दायित्व वहन करती हैं और भवानी रूप में वह जगत के समस्त नकारात्मक तत्वों के नाश के उद्देश्य से अवतरित होती हैं.
माँ का संपूर्ण स्वरूप एक संदेश है मानवता के लिये परंतु भक्तों के लिये यह एक आश्वासन-विशेष है. माँ के एक हांथ में वज्र है जो कि मां के उस संकल्प की दृढ़ता का परिचायक है जो माँ ने इस रूप में आते समय दुष्ट-दलन हेतु किया है. माँ के एक हाथ में पुष्प है जो उनके भक्तों के लिये साफल्य अर्थात सफलता का पराकाष्ठा को दर्शित करता है. सुदर्शन चक्र लिये माँ का हस्त आश्वासन देता है कि समग्र विश्व ब्रम्हांड की देवी का आज्ञा-वाहक है और वही समस्त सृष्टि का संचालन कर रही है. माँ के एक हाथ में तलवार ज्ञान का प्रतीक है तो दूसरे हाथ में त्रिशूल तीनों मूल मानव-गुणों – सत, रज व तम का परिचायक है. माँ के हाथ के धनुष व उस पर संधान हेतु प्रस्तुत शर भक्त हेतु सदा उपस्थित मां की शक्ति को दर्शित करता है.
माँ दुर्गा त्रिनयन है जो मानव स्वभाव की तीन मूल इच्छाओं की प्रस्तोता है. माँ का बाँया चक्षु चंद्रमा का प्रतीक है जो भक्ति को दर्शित करता है. माँ का दायां नेत्र सूर्य का प्रतीक है जो कर्म को दर्शाता है, वहीं माँ के ललाट में जो तीसरा नेत्र है वह अग्नि को रूपित करता है और संकेतात्मक रूप से ज्ञान को दर्शित करता है. माँ के पैरों के नीचे सिंह है जो विष्णु-रूपी शक्ति व संकल्प का प्रस्तोता है. माँ के दस हाथ दस अस्त्रों के माध्यम से अपने भक्तों को पूर्ण आश्वासन देकर भय मुक्त करते हैं. इस तरह से मां की दस भुजायें अपने भक्त की दस दिशाओं से रक्षा करने के निमित्त हैं. इसी तरह माँ आदिशक्ति के हाथ में अवस्थित शंख अनहद नाद का प्रदर्शक है. ओम की जो अनंत ध्वनि संपूर्ण ब्रम्हांड में व्याप्त है, वह मूल रूप से माँ के शंख की ध्वनि है.
अपने सुधि-पाठकों हेतु विजयादशमी की शुभकामनायें देते हुए भारत एक्सप्रेस अपनी समाचार-यात्रा हेतु माँ भवानी से सदा ही विजय कामना करता है.
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