23 दिसंबर 2004, ये दिन कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ताओं के लिए किसी काले दिन से कम नहीं था…ये वो तारीख थी जब राजनीति के एक अध्याय का अंत हो गया. कांग्रेस का एक ऐसा योद्धा चिरकाल की निद्रा में सोने चला गया. जिसने कांग्रेस के लिए अपना पूरा जीवन खपा दिया. अनंतकाल की यात्रा पर निकले इस कांग्रेसी नेता को कांग्रेस वो सम्मान नहीं दे पाई जिसके वो असल हकदार थे. कहा तो ये भी जाता है कि इस नेता के पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय की दहलीज से इसलिए वापस लौटा दिया गया था क्योंकि तत्कालीन पार्टी अध्यक्षा सोनिया गांधी की इजाजत नहीं थी कि उस कांग्रेसी नेता के पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए कांग्रेस मुख्यालय में रखा जाए.
ये पूरा सियासी घटनाक्रम देश के पूर्व प्रधानमंत्री पामुलापर्ति वेंकट नरसिम्हा राव के साथ घटित हुआ था, जिन्हें हम पीवी नरसिम्हा राव के नाम से भी जानते हैं. पीवी नरसिम्हा राव राजनीति के मझे हुए खिलाड़ी होने के साथ ही 17 भाषाओं के जानकार थे. नरसिम्हा राव मुख्यमंत्री से लेकर देश के विदेश, रक्षा मंत्री, गृहमंत्री और प्रधानमंत्री बने.
पीवी नरसिम्हा राव अपने निर्वासन काल में भी कांग्रेस के कट्टर सिपाही बने रहे, लेकिन कांग्रेस ने उनके साथ खूब अन्याय किया. माना जाता है कि कांग्रेस उन्हें वो मान-सम्मान कभी नहीं दे पाई जो पार्टी की तरफ से मिलना चाहिए था. उनके हिस्से के इस सम्मान को पार्टी के चंद नेताओं ने मिलकर डकार लिया. पार्टी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले कांग्रेस के एक कट्टर सिपाही से क्या उनके निधन पर क्या सलूक किया गया, ये पूरा देश जानता है.
कहा जाता है कि जब नरसिम्हा राव का निधन हुआ और उनका पार्थिव शरीर कांग्रेस मुख्यालय ले जाया गया तो गेट पर ही रोक दिया गया, जबकि हमेशा से कांग्रेस की ये परंपरा रही कि जब किसी कांग्रेस के कार्यकर्ता का निधन होता तो उसके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए कार्यालय में रखा जाता था, लेकिन पार्टी की तत्कालीन अध्यक्षा सोनिया गांधी के साथ पीवी नरसिम्हा राव के चल रहे मन-मुटाव के चलते उनके पार्थिव शरीर को गेट से ही वापस ले जाना पड़ा था. जबकि पीवी नरसिम्हा राव का परिवार उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार दिल्ली में ही करना चाहता था. हालांकि बाद में उनके पार्थिव शरीर को हैदराबाद ले जाया गया और वहीं पर उनका अंतिम संस्कार किया गया.
2004 से लेकर 2014 तक कांग्रेस केंद्र से लेकर कई राज्यों की सत्ता पर काबिज रही, लेकिन उसके बाद भी पीवी नरसिम्हा राव के नाम पर एक स्मारक तक नहीं बनवा पाई. जब 2014 में सरकार की बागडोर बीजेपी के पास पहुंची और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तब जाकर पीएम मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के सम्मान में एक स्मृति घाट का निर्माण कराया.
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पीवी नरसिम्हा राव को लेकर अरुण जेटली अक्सर कहा करते थे कि भारत के इतिहास में एक ऐसा भी प्रधानमंत्री हुआ, जिसने अपने दम पर सियासत की ऐसी लकीर खींची जिसके सामने सियासत के मानदंड की सारी लकीरें छोटी पड़ गईं. पीवी नरसिम्हा राव ने साबित कर दिया कि बिना किसी परिवार विशेष से आए भी देश की सेवा की जा सकती है. अपनी ईमानदारी, लगन और मेहनत से देश के सर्वोच्च पदों तक पहुंचा जा सकता है. तमाम मतभेदों के बाद भी पीवी नरसिम्हा राव अपने जीवन के अंत तक मन और तन से कांग्रेसी बने रहे.
-भारत एक्सप्रेस
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