Narmada Jayanti 2024: नर्मदा जयंती हर साल माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है. इस साल नर्मदा जयंती 16 फरवरी को यानी आज मनाई जा रही है. शास्त्रों में नर्मदा नदी को पुण्यदायिनी कहा गया है. इसके अलावा मान्यता यह भी है कि जो कोई नर्मदा जयंती पर इस नदी में स्नान करता है, उसे अत्यंत पुण्य की प्राप्ति होती है. अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर मां नर्मदा की उत्पत्ति कैसे हुई और धरती पर इनका आगमन कैसे हुआ.
शास्त्रों के मुताबिक, मां नर्मदा सुख को देने वाली है. मां नर्मदा की स्तुति (नर्मदाष्टक) में शंकराचार्य ने लिखा है ‘सर्वतीर्थ नायकम्’. यानी सभी तीर्थों में नर्मदा सर्वप्रथम है. इसलिए ऐसा कहा जाता है कि इस दिन नर्मदा नदी में स्नान करने से बेहद पुण्यफल की प्राप्ति होती है.
पौराणिक मान्यता के अनुसार, शिव जी की कठोर तपस्या के परिणामस्वरूप मां नर्मदा की उत्पत्ति हुई. यही वजह है कि मां नर्मदा को शिवजी की पुत्री भी माना जाता है. स्कंद पुराण के अनुसार, राजा हिरण्यतेज ने अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए 14 वर्षों तक तपस्या की. जिसमें उन्होंने ने शिवजी से प्रार्थना की कि नर्मदा को पृथ्वी पर भेजा जाए.
कहा जाता है कि शिवजी की आज्ञा से एक 12 वर्ष की कन्या (नर्मदा) मगरमच्छ पर बैठकर मेखलपर्वत (मध्यप्रदेश के अमरकंटक के पास) पर अवतरित हुईं. वहां से नर्मदा गुजरात के भड़ूच (खंभात की खाड़ी) में विलीन हो गईं. यही वजह है कि अमरकंटक को मां नर्मदा के सिर का भाग माना जाता है. जबकि भड़ूच को पैर वाला हिस्सा माना गया है.
पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु के हर (मगरमच्छ) अवतार ने नर्मदा नदी के किनारे मां नर्मदा की स्तुति की थी. कहा जाता है कि जो पुण्य फल सरस्वती नदी में तीन दिन के स्नान से मिलता है, उतना नर्मदा नदी में एक दिन नहाने से मिल जाता है.नर्मदा जयंती के दिन भक्त नर्मदा नदी की पूजा करते हैं. मान्यता है कि नर्मदा नदी की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है. साथ ही मां नर्मदा के समृद्धि का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. मध्यप्रदेश का अमरकंटक नर्मदा जयंती की पूजा के लिए बेहद लोकप्रिय स्थान है.
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-भारत एक्सप्रेस
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