Rangbhari Ekadashi: आज रंगभरी एकादशी का हिंदू धर्म ग्रंथों में खास महत्व है. आज के दिन भगवान शिव शंकर और मां पार्वती की पूजा की जाती है. बताया जाता है आज के दिन ही उनका गौना हुआ था. इसलिए उनके भक्त होली खेलते हैं, लेकिन यह कोई आम होली नहीं होती क्योंकि रंगों की जगह इसमें चिताओं की भस्म होती है. आज के दिन मनाई जाने वाली काशी की भस्म होली का नजारा लेने के लिए लोग दूर-दूर से आकर कल से ही डेरा डाले हुए थे.
आज के दिन की होली डरावनी भी लग सकती है. क्योंकि कोई इंसान खोपड़ियों की माला पहन नृत्य में मगन है तो कोई जानवरों की खाल पहन झूम रहा है. ऐसा लगता है जैसे भगवान भोलेनाथ के गण कैलाश से यहां उतर आए हों. काशी का मणिकर्णिका घाट हो या हरिश्चंद्र घाट चिताओं से निकलने वाली राख के लिए लोगों की लंबी कतार लगी है. आज के दिन अघोरी बाबा भी पूरी मस्ती में नजर आ रहे हैं.
माता पार्वती का हुआ था गौना
धार्मिक ग्रंथों में इस बात का जिक्र मिलता है कि शादी के बाद भगवान शिव शंकर माता पार्वती का गौना कराकर लाए थे. इस अवसर पर उन्होंने काशी में अपने गणों के साथ रंग और गुलाल की होली खेली थी. वहीं श्मशान के भूत, प्रेत, पिशाच, किन्नर और अन्य जीव जंतुओं के साथ भगवान शिव होली नहीं खेल पाए थे. इस कारण महादेव ने इनके साथ होली खेलने के लिए रंगभरी एकादशी का दिन चुना. तभी से यहां इस दिन चिता की राख से होली खेलने की परंपरा चली आ रही है.
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इस मंदिर से निकलती है बारात
हरिश्चंद्र घाट पर मसान मंदिर में शिव जी विराजते हैं. सुबह से ही इस मंदिर में त्योहार की धूम मची है. शिवलिंग पर दूध, दही, शहद, फल, फूल, माला, गांजा, धतूरा, भस्म चढ़ाने के बाद बाबा का रुद्राभिषेक किया गया फिर उनका श्रृंगार किया गया. मंदिर से एक रथ पर एक लड़के को शिव और एक लड़की को पार्वती बनाकर झांकी निकाली जाती है, जोकि मंदिर से करीब 700 मीटर दूर अघोराचार्य कीनाराम के आश्रम जाती है. यहां से बाबा भोलेनाथ की बारात निकलती है. ऐसे में आज मणिकर्णिका घाट महादेव के जयकारों के साथ गूंज उठा है.
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