Commonwealth Games: अंतर्राष्ट्रीय हॉकी महासंघ (FIH) ने ग्लासगो में 2026 में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स से हॉकी को बाहर रखे जाने पर अफसोस जताया है, लेकिन यह साफ कर दिया गया है कि यह निर्णय सही नहीं है और यह फेरबदल केवल इसी संस्करण से संबंधित है. बढ़ती लागत के कारण 2026 राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी से ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य के पीछे हटने के बाद ग्लासगो ने मोर्चा संभाला है.
ग्लासगो, जिसने 2014 में राष्ट्रमंडल खेलों की सफलतापूर्वक मेजबानी की थी, ने मंगलवार को बताया कि वह 2026 में केवल 10 प्रमुख खेलों की मेजबानी करेगा जिसमें हॉकी, बैडमिंटन, कुश्ती और स्क्वैश जैसे प्रमुख खेलों को हटा दिया जाएगा. इस संबंध में एफआईएच ने कहा कि कॉमनवेल्थ गेम्स महासंघ (CGF) ने पुष्टि की है कि हॉकी उसके लिए एक महत्वपूर्ण खेल बना हुआ है.
हालांकि राष्ट्रमंडल खेल महासंघ को विक्टोरियन सरकार के हटने के बाद 2026 खेलों के लिए एक नए मेजबान की पुष्टि करनी थी. हमने इस बात पर ध्यान दिया है कि 2026 के लिए नई अवधारणा को छोटा कर दिया गया है, जिसमें केवल 10 खेलों की मुख्य पेशकश की गई है. हम 2026 ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों के कार्यक्रम में हॉकी को शामिल न करने के सीजीएफ के निर्णय से और भी अधिक निराश हैं.
लेकिन 2026 में राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन की संभावना नहीं होने से भारत, मलेशिया और पाकिस्तान की टीमों पर दबाव कम होगा और वे अब विश्व कप और एशियाई खेलों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे. एशियाई खेल बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह अगले ओलंपिक खेलों के लिए क्वालीफाइंग इवेंट है. इससे 2022 में भारतीय महिला टीम के सामने आने वाली स्थिति से बचने में मदद मिलेगी, जब उसने 15 दिनों के अंतराल में विश्व कप और राष्ट्रमंडल खेल खेले थे.
भारतीय पुरुष हॉकी टीम के कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने कॉमनवेल्थ गेम्स-2026 से हॉकी को बाहर करने के फैसले को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया और खुलासा किया कि उनकी टीम इस टूर्नामेंट में गोल्ड जीतने का लक्ष्य बना रही थी. मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में मौजूदा विश्व चैंपियन जर्मनी के साथ द्विपक्षीय श्रृंखला से पहले भारतीय पुरुष टीम के मुख्य कोच क्रेग फुल्टन और हरमनप्रीत ने प्री मैच कॉन्फ्रेंस पर इस मुद्दे पर बात की.
फुल्टन ने कहा, “यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है, हालांकि मुझे इसके बारे में सोचने के लिए समय चाहिए. फिलहाल हमारा फोकस इस मुकाबले पर है.” वहीं हरमनप्रीत ने कहा, “मुझे अभी पता चला. मैं भी यही सोचता हूं. हम उस टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक जीतने का लक्ष्य बना रहे थे, लेकिन अब यह खबर सुनकर दुख हुआ. यह हमारे हाथ में नहीं है और हम इसके बारे में अभी ज्यादा सोच भी नहीं सकते. फिलहाल जर्मनी के खिलाफ दो मैच हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं.”
बता दें कि भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स में पुरुष हॉकी में कभी स्वर्ण पदक नहीं जीता है, हालांकि वह 2010, 2014 और 2022 में फाइनल में पहुंचा था और तीनों ही बार उसे ऑस्ट्रेलिया से हार का सामना करना पड़ा था. महिला हॉकी टीम ने 2002 में मैनचेस्टर में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के लिए एकमात्र स्वर्ण पदक जीता था. दिलचस्प बात यह है कि पुरुष टीम ने 2002 के संस्करण में भाग नहीं लिया था.
-भारत एक्सप्रेस
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