लम्बी दूरी के बेहतरीन तैराक माने जाने वाले मिहिर सेन ने 27 सितंबर, 1958 को 14 घंटे और 45 मिनट में इंग्लिश चैनल को तैरकर पार किया. वह ऐसा करने वाले पहले भारतीय और पहले एशियाई थे. पांच महाद्वीपों के सातों समुद्रों को तैरकर पार करने वाले मिहिर सेन विश्व के प्रथम व्यक्ति रहे.
मिहिर सेन का जन्म 16 नवंबर, 1930 को पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में हुआ था. वास्तव में पेशे से वह वकील थे लेकिन उन्होंने एक महान तैराक के तौर पर अपनी पहचान बनाई. मिहिर सेन को लंबी दूरी का बेहतरीन तैराक माना जाता है.
इंग्लिश चैनल अटलांटिक महासागर का हिस्सा है. यह ग्रेट ब्रिटेन द्वीप को उत्तरी फ्रांस से अलग करता है और उत्तरी महासागर को अटलांटिक महासागर से जोड़ता है. इंग्लिश चैनल की लंबाई 563 किलोमीटर और चौड़ाई 240 किलोमीटर है.
मिहिर सेन ने 1966 में पाक जलडमरूमध्य (strait) को तैरकर पार किया. पाक जलडमरूमध्य 40 मील में फैला हुआ है. उन्होंने जिब्राल्टर जलडमरूमध्य (strait) को भी तैरकर पार किया जो मोरक्को और स्पेन के बीच है. उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड का हिस्सा बन गया. उनसे भारत के भावी तैराकों ने प्रेरणा ली और लंबी दूरी की तैराकी की हिम्मत जुटाई. उनकी साहसिक और बेजोड़ उपलब्धियों के कारण भारत सरकार की ओर से 1959 में उन्हें ‘पद्मश्री’ प्रदान किया गया और 1967 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ प्रदान किया गया.
कानून की पढ़ाई करने के लिए ब्रिटेन जाने वाले मिहिर को अचानक तैराकी का जुनून कहां से चढ़ा? असल में वे जब ब्रिटेन पहुंचे तो इंग्लिश चैनल पार करने वाली पहली अमेरिकी महिला फ्लोरेंस चैडविक पर केंद्रित एक लेख पढ़ा और यहीं से तैराकी में कुछ अलग करने का कीड़ा उनके दिमाग में आया. पर यह आसान एकदम नहीं था. इसके लिए लगातार प्रैक्टिस और कुशल ट्रेनर की जरूरत थी.
मिहिर ने इसकी शुरुआत सामान्य तरीके से कर दी. जैसे-जैसे सीखते गए, भरोसा बढ़ता गया और वे तय कर पाए कि वे भी इंग्लिश चैनल पार करेंगे. भारत का नाम रोशन करेंगे. लगातार चलने वाला यह अभ्यास आसान इसलिए नहीं था क्योंकि बाकी काम पीछे छूटते गए और मिहिर तैराकी में आगे बढ़ते रहे. उनके कुछ प्रयास विफल भी रहे लेकिन हर विफलता से उन्होंने सीखा और ज्यादा ऊर्जा के साथ बार-बार कोशिश करते रहे और अंततः 27 सितंबर 1958 को वह दिन आ ही गया जब सबसे तेज चौथे तैराक के रूप में 14.45 घंटे में इंग्लिश चैनल पार करने वाले पहले भारतीय और पहले एशियाई भी बनकर उभरे.
मिहिर के जीवन में आई इस कामयाबी ने उन्हें जुनून से भर दिया. वे एक के बाद एक समुद्र नापते रहे. लगातार अभ्यास करते रहे मिहिर ने अगला टास्क श्रीलंका के तलाई मन्नार से भारत के धनुष कोटि तक तैरने का लिया. इसमें वे 25.44 घंटे तैरे. यह उनका दूसरा साहसिक अभियान था. वित्तीय कठिनाई भी आई. फिर यह बात पीएम इंदिरा गांधी की जानकारी में आई, उन्होंने पैसों की परेशानी दूर कर दी.
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भारतीय नौसेना के दो जहाज उनके साथ चले. समुद्र का यह इलाका शार्क और जहरीले सांप वाला बताया जाता है. छह अप्रैल 1966 को शुरू हुई यात्रा अगले दिन पूरी हुई. इसके बाद मिहिर ने अनेक रिकॉर्ड बनाए. इसी साल 24 अगस्त को जिब्राल्टर डार ई डेनियल पार किया. इसमें समय लगा आठ घंटे और एक मिनट, यह जगह स्पेन और मोरक्को के बीच है. इस तरह साल 1966 में ही मिहिर ने पांच महत्वपूर्ण रिकॉर्ड अपने नाम किए. इसके बाद पूरी दुनिया में उनके नाम का डंका बजने लगा.
12 सितंबर 1966 को मिहिर डारडेनेल्स पार करने वाले दुनिया के पहले व्यक्ति बने तो 21 सितंबर को वास्फोरस पार किया. 29 अक्तूबर को पनामा नहर को लंबाई में पार करना शुरू किया और यह यात्रा 31 अक्टूबर को पूरी हुई. इसमें मिहिर ने 34.15 घंटे लगाए. इस तरह वे दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति के रूप में दर्ज हुए, जिसने सातों समुंदर पार कर लिए.
अगले साल यानी 1967 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया. वे एक्सप्लोरर्स क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भी रहे. पेशे से बैरिस्टर मिहिर सेन का निधन 11 जून 1997 को कोलकाता में हुआ.
-भारत एक्सप्रेस
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