13 मार्च 1940 के दिन को आजादी के दीवाने क्रांतिकारी उधम सिंह के अदम्य साहस के लिए याद किया जाता है. भारत उन दिनों अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, अंग्रेजों का हिंदुस्तानियों पर जुल्म जारी था. दूसरी ओर गुलामी की इन जंजीरों को तोड़ने के लिए अपनी जान तक लुटा देने वाले नौजवानों की टोली थी, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था.
इन्हीं युवाओं में से एक नाम क्रांतिकारी उधम सिंह (Udham Singh) का था, जिन्होंने देश के लिए ऐसा काम किया था कि इतिहास के पन्नों में उनका नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया.
उन्होंने साल 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार (Jallianwala Bagh Massacre) का बदला लेने के लिए 13 मार्च 1940 को पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर (Michael O Dyer) की ताबड़तोड़ गोलियां मारकर हत्या कर दी थी. यह साहसिक घटना भारत में नहीं, बल्कि अंग्रेजों के देश ब्रिटेन (Britain) की राजधानी लंदन में अंजाम दी गई थी.
उधम सिंह का जन्म ‘शेर सिंह’ के रूप में 26 दिसंबर 1899 को एक सिख परिवार में हुआ था. उनका गांव ब्रिटिश भारत के लाहौर (अब पाकिस्तान) शहर से लगभग 130 मील दक्षिण में स्थित था. उनके पिता का नाम टहल सिंह और माता का नाम नारायण कौर था.
उनके पिता मजदूरी करते थे. उधम के एक बड़े भाई थे, जिनका नाम साधु था. जब वे 3 साल थे, तब उनकी मां का निधन हो गया था. उनके पिता को मजदूरी के सिलसिले में अलग-अलग गांवों में भटकना पड़ता था, इस दौरान दोनों भाई उनके साथ ही रहते थे.
हालांकि दोनों भाइयों को अधिक दिनों तक पिता का साथ नहीं मिल पाया. 1907 में पिता के निधन के बाद उन्हें उनके एक चाचा को सौंप दिया गया, जो कि उनका पालन-पोषण करने में असमर्थ रहे और फिर उन्हें अमृतसर के एक अनाथालय को दे दिया गया. यहां ‘शेर सिंह’ का नाम ‘उधम सिंह’ हो गया. 1917 में उनके बड़े भाई की भी अज्ञात बीमारी के कारण मौत हो गई थी.
उधम सिंह आजादी की लड़ाई के दौरान गदर पार्टी और HSRA यानी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े हुए थे. जलियांवाला बाग नरसंहार ने उन्हें हिलाकर रख दिया था. उधम सिंह इस घटना का बदला लेना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने कई देशों की यात्रा की और कई बार अपने नाम बदल कर भी रहे थे.
पटियाला के पंजाब विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर डॉ. नवतेज सिंह ने अपनी किताब ‘द लाइफ स्टोरी ऑफ शहीद उधम सिंह’ में जानकारी दी है कि उधम सिंह 1934 में किसी समय ब्रिटेन पहुंचे. उन्होंने लिखा है, ‘उधम सिंह सबसे पहले इटली पहुंचे, जहां वह 3-4 महीने तक रहे. फिर फ्रांस, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया से होते हुए वह 1934 के अंत में इंग्लैंड पहुंचे थे. 1936 और 1937 के बीच उन्होंने रूस, पोलैंड, लातविया और एस्टोनिया की यात्रा की और 1937 में इंग्लैंड लौट आए थे.
जैसे-जैसे उधम बड़े हुए और उनको देश के बारे में एहसास हुआ तो उन्होंने भारत को ही अपनी मां माना और इसे आजाद कराने के लिए क्रांतिकारियों के दल में शामिल हो गए. जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद वह इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने बदला लेने की ठान ली थी. पढ़ाई-लिखाई छोड़कर वह आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे. जनरल डायर को मारना उनका मकसद बन गया था.
इतिहासकारों की मानें तो वह 1934 में कई देशों की यात्रा और वहां समय बिताने के बाद लंदन पहुंचे थे, ताकि जनरल डायर को उसके किए की सजा दी जा सके. 13 मार्च 1940 को जनरल डायर को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और सेंट्रल एशियन सोसाइटी (अब रॉयल सोसाइटी फॉर एशियन अफेयर्स) की एक संयुक्त बैठक को संबोधित करना था.
बताया जाता है कि उधम सिंह उस रोज यहां पहुंच गए. उन्होंने एक किताब के बीच के हिस्से का रिवॉल्वर के शेप में काटकर उसमें एक रिवॉल्वर छिपा ली था, जब वे कैक्सटन हॉल में दाखिल हुए तो किताब के कारण उन पर किसी का शक नहीं हुआ.
इसके बाद उधम ने जनरल डायर को तब दो बार गोली मार दी, जब वह बोलने के मंच की ओर बढ़ रहा था, जिससे तुरंत ही उसकी मौत हो गई. उधम को गिरफ्तार कर लिया गया था और उनके ऊपर मुकदमा चला. 31 जुलाई, 1940 को उन्हें फांसी दे दी गई थी.
जालियांवाला बाग नरसंहार को भारत के इतिहास की सबसे बड़ी और भयानक घटनाओं में एक माना जाता है. 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) के करीब स्थित जलियांवाला बाग में रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act) का विरोध करने के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्र होकर एक सभा में हिस्सा ले रहे थे. इस सभा में सैकड़ों महिलाएं अपने बच्चों के साथ मौजूद थीं तो वहीं पुरुषों के साथ ही बुजुर्ग भी थे. बताया जाता है कि उधम सिंह और अनाथालय के उनके दोस्तों ने यहां जुटी भीड़ के लिए पानी की व्यवस्था की थी.
इस सार्वजनिक सभा को रोकने के लिए अस्थायी ब्रिगेडियर जनरल आरईएच डायर उर्फ रेजिनाल्ड डायर ने ब्रिटिश भारतीय सेना के जवानों के साथ लोगों को घेर लिया था. जलियांवाला बाग में आने और जाने का केवल एक ही रास्ता था, इसके बाकी के तीन किनारे इमारतों से घिरे हुए थे और कोई निकास नहीं था. अपने सैनिकों के साथ निकास मार्ग को अवरुद्ध करने के बाद रेजिनाल्ड डायर ने भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दे दिया था.
बताया जाता है कि ब्रिटिश भारतीय सेना के जवान तब तक गोलीबारी करते रहे, जब तक उनका गोला-बारूद खत्म नहीं हो गया. गोलीबारी से भगदड़ मची तो लोग इधर-उधर भागे, सैकड़ों महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों ने जान बचाने के लिए वहां बने गहरे कुएं में छलांग लगा दी थी.
इस घटना में मारे गए लोगों का अनुमान 379 से 1,500 या अधिक लोगों तक है और 1,200 से अधिक अन्य लोग घायल हुए थे, जिनमें से 192 गंभीर रूप से घायल हुए थे. रेजिनाल्ड डायर को ‘अमृतसर का बूचर’ कहा जाता है.
इस घटना के समय माइकल ओ डायर पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था. उसने जलियांवाला बाग में रेजिनाल्ड डायर की कार्रवाई का समर्थन किया और स्पष्ट किया था कि भीड़ पर गोली चलाने के डायर के आदेश को वह सही मानता है.
भारत में उधम सिंह पर कई किताबें लिखी गई हैं और कई फिल्मों का निर्माण भी हो चुका है. लेखक राकेश कुमार में उधम सिंह पर 4 किताबें और एक नाटक लिखा है. वह कहते हैं, ‘उधम सिंह ने अपने जीवन में लगभग 18 देशों की यात्रा की थी. खासकर उन देशों की जहां गदर पार्टी से जुड़े लोग थे.’
उधम सिंह को लेकर ये भी दावा किया जाता है कि उन्होंने कुछ फिल्मों में काम भी किया था. पिछले कुछ वर्षों में कुछ मूवी क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, जो कि चर्चा का विषय बनीं और इनको लेकर दावा किया गया कि इन फिल्मों में उधम सिंह ने काम किया है. ऐसा भी दावा है कि उधम सिंह ने ब्रिटेन की कुछ फिल्मों में भी काम किया था.
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-भारत एक्सप्रेस
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