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विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने तंजानिया में विवेकानंद की आवक्ष प्रतिमा का किया अनावरण

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तंजानिया के दारेसलाम में भारत के सांस्कृतिक केंद्र में स्वामी विवेकानंद की आवक्ष प्रतिमा का शुक्रवार को अनावरण किया. उन्होंने कहा कि यह प्रतिमा उनकी कालजयी शिक्षाओं का प्रमाण है, जो सीमाओं से परे हैं और मानवता में विश्वास के उनके संदेश को रेखांकित करती हैं. जयशंकर जंजीबार की यात्रा के बाद बृहस्पतिवार को दारेसलाम पहुंचे. उन्होंने विवेकानंद की आवक्ष प्रतिमा का अनावरण करने के बाद ट्वीट किया, ‘‘दारेसलाम में स्वामी विवेकानंद संस्कृति केंद्र में स्वामी विवेकानंद की आवक्ष प्रतिमा का अनावरण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.’’

कालजयी शिक्षाओं का प्रमाण है आवक्ष प्रतिमा- विदेश मंत्री

इस अवसर पर अपने संबोधन में विदेश मंत्री ने कहा कि महान आध्यात्मिक नेताओं में से एक की आवक्ष प्रतिमा का अनावरण करना ‘एक महत्वपूर्ण क्षण’ है. जयशंकर ने कहा, ‘‘यह आवक्ष प्रतिमा निश्चित रूप से उनकी कालजयी शिक्षाओं का प्रमाण है, जो सीमाओं से परे हैं और वास्तव में मानवता में विश्वास के उनके संदेश को रेखांकित करती हैं.’’ उन्होंने स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र के महत्व पर भी प्रकाश डाला, जिसने 2010 में अपनी स्थापना के बाद से तंजानिया में भारतीय संस्कृति और कला को बढ़ावा देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

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जयशंकर ने कहा, ‘‘सांस्कृतिक केंद्र का उद्देश्य न केवल तंजानिया में भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना है, बल्कि भारत में तंजानियाई संस्कृति का भी प्रचार-प्रसार करना है.’’उन्होंने कहा कि तंजानिया की उनकी यात्रा यह दर्शाती है कि वैश्वीकरण के इस युग में भारत और तंजानिया जैसे दो देश एक-दूसरे के साथ और अधिक काम कर सकते हैं तथा ऐसा इस तरीके से किया जा सकता है, जो पारस्परिक रूप से लाभप्रद हो.

“जो प्रतिमा आपके सामने है, उसे देखना बेहद दिलचस्प है”

विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘वास्तव में वैश्वीकरण का मतलब यह है कि हम एक-दूसरे के जीवन में बहुत ही सहज तरीके से शामिल हों.’’आवक्ष प्रतिमा में विवेकानंद की मुद्रा का वर्णन करते हुए जयशंकर ने कहा, ‘‘जो प्रतिमा आपके सामने है, उसे देखना बेहद दिलचस्प है. प्रतिमा की यह मुद्रा सबसे प्रसिद्ध है… जो आत्मविश्वास, आत्म-आश्वासन, अपने इतिहास में निष्ठा और संस्कृति में समाई परंपराओं को दर्शाती है.’’उन्होंने कहा, ‘‘स्वामी विवेकानंद 19वीं सदी की शख्सियत थे, जब भारत औपनिवेशिक शासन के अधीन था, और वह उस दौर में भारतीय समाज को खुद पर विश्वास दिलाने की कोशिशों में जुटे रहे.’’

-भारत एक्सप्रेस

Shailendra Kumar Verma

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