Stockholm: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को यूरोपीय संघ-हिंद-प्रशांत मंत्री स्तरीय बैठक में मल्टीपोलर वर्ल्ड की अवधारणा पर जोर दिया. उन्होंने इस क्षेत्र से जुड़े राष्ट्रों को आर्थिक एवं रणनीतिक तौर पर और ज्यादा साझेदारी बढ़ाने पर जोर दिया. जयशंकर ने कहा, “हिंद-प्रशांत क्षेत्र अपने आप में जटिलताओं से जुड़ा क्षेत्र है. इसे अधिक से अधिक जुड़ाव के जरिए सही ढंग से समझा जा सकता है. आर्थिक विषमताओं को यहां का उदार और रणनीतिक दृष्टिकोण का हद तक पाटता है और यही बात यूरोपीय संघ को आकर्षित भी करती है.” उन्होंने कहा कि जितनी ज्यादा इंडो-पेसिफिक और यूरोपीय संघ के दरम्यान डील होगी, इनके बीच उतना ही रिश्ता मजबूत होगा.”
इंडो-पैसिफिक विकास में यूरोपीय संघ की भूमिका
विदेश मंत्री जयशंकर ने ईयू-इंडिया पैसिफिक मिनिस्ट्रियल फोरम में इंडो-पैसिफिक के बारे में अपने विचार साझा करते हुए यह टिप्पणी की. जयशंकर ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच क्षमताओं, गतिविधियों और प्रयासों को दर्शाते हुए छह बिंदुओं को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि इंडो-पैसिफिक विकास में यूरोपीय संघ की बड़ी हिस्सेदारी है, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, कनेक्टिविटी, व्यापार और वित्त से संबंधित.
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वैश्वीकरण समय की वास्तविकता
विदेश मंत्री ने कहा, “वैश्वीकरण हमारे समय की भारी वास्तविकता है. हालांकि, बहुत दूरी, क्षेत्रीयता और राष्ट्र महत्वपूर्ण घटनाओं के लिए काफी मायने नहीं रखते. क्योंकि, हम इन्हें अपनी सुविधा के लिए नहीं चुन सकते हैं. यूरोपीय संघ के पास भारत-प्रशांत विकास में प्रमुख हिस्सेदारी है, विशेष रूप से जैसा कि वे प्रौद्योगिकी, कनेक्टिविटी, व्यापार और वित्त से संबंधित हैं. इसे यूएनसीएलओएस के संबंध में और पालन करना है. ऐसे मामलों पर अज्ञेयवाद वाली अवधारणा का कोई विकल्प नहीं है.”
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