PM Modi US Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका (US) की तीन दिवसीय यात्रा के लिए रवाना हो चुके हैं. भारत- अमेरिकी संबंधों को एक नई ऊंचाई देने के लिए प्रधानमंत्री के दौरे से पहले ही एक बड़ी डिफेंस डील (Defence Deal) तय हो गई. भारत की डिफेंस मिनिस्ट्री ने अमेरिका से MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन खरीदने के सौदे को मंजूरी दे दी. प्रधानमंत्री मोदी अपनी इस यात्रा के दौरान तकरीबन 3 अरब डॉलर यानी लगभग 24 हजार करोड़ रुपये के इस सौदे में 31 प्रीडेटर ड्रोन की खरीददारी करेंगे.
गौरतलब है कि बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका में पहली स्टेट विजीट है. बाइडेन और फर्स्ट लेडी जिल बाइडेन के न्योते पर पहुंचे पीएम मोदी व्हाइट हाउस में आयोजित एक रात्रि भोज में शिरकत करेंगे. इस दौरान वह राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ द्वीपक्षीय वार्ता करेंगे. वार्ता को लेकर न सिर्फ भारत और अमेरिका बल्कि दूसरे देशों की भी नजरें टिकी हैं. दोनों देशों के बीच बड़े स्तर पर डिफेंस, स्ट्रैटेजिक, बिजनेस और टेक्नोलॉजी में डील होने वाली है. इसमें सबसे खतरनाक माने जाने वाले प्रीडेटर ड्रोन की खरीददारी काफी अहम है.
यह प्रीडेटर ड्रोन बेहद आधुनिक है और 1200 किलोमीटर तक की इसकी मारक क्षमता है. यानी, 1200 किलोमीटर दूर स्थित अपने टारगेट को यह आसानी से भेद सकता है. अमेरिका ने तालिबान और ISIS के खिलाफ जंग में इस ड्रोन का काफी इस्तेमाल किया और विरोधियों को भारी नुकसान पहुंचाया. ये वही ड्रोन है जिसके जरिए अमेरिका ने अलकायदा के चीफ अल जवाहरी को मौत के घाट उथार दिया था.
भारत को इस ड्रोन की लंबे समय से जरूरत थी. जिस तरह से भारत चीन और पाकिस्तान की बदनीयति से घिरा है, ऐसे में यह ड्रोन काफी कारगर साबित होने वाला है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डील फाइन होने के बाद तीनों सेनाओं को 10-10 प्रीडेटर ड्रोन आवंटित किए जाएंगे. ये ड्रोन चीन के साथ हिंद महासागर में चल रहे पावर गेम के लिए काफी अहम बताए जा रहे हैं.
चीन को टक्कर देने के लिए भारत अपने वायु सेना की ताकत में लगातार इजाफा कर रहा है. भारत की कोशिश है कि वह ज्यादा से ज्यादा लड़ाकू विमानों की खेप तैयार रखे. वर्तमान में भारत को तेजस मार्क-2 के लिए नए इंजन की जरूरत है. अमेरिका के साथ जेट इंजन डील फाइनल होते ही भारत में GE414 Engine का निर्माण तेजी से शुरू हो जाएगा. अमेरिका इसके लिए तमाम तकनीकी सहयोग मुहैया कराएगा. ऐसे में भारत अपने ही देश में ताकतवर लड़ाकू विमानों को आसानी से बना लेगा.
स्ट्राइकर एक बख्तरबंद वाहन है जिसका अमेरिका अलग-अलग युद्धग्रस्त क्षेत्रों में इस्तेमाल करता रहा है. अमेरिका ने अपने इस शक्तिशाली बख्तरबंद वाहन का निर्माण भारत के साथ करने की पेशकश की है. पीएम मोदी अपने दौरे में इस डील पर भी मुहर लगा सकते हैं. स्ट्राइकर बख्तरबंद वाहन दुनिया का सबसे ताकतवर डिफेंस व्हीकल है. यह मोबाइल गन सिस्टम, 105 MM की तोप और एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल से लैस रहता हैं.
अमेरिका के साथ डिफेंस डील में भारत के पास पड़े कई लाइट वेट हथियारों के अपग्रेडेशन की भी पेशकश शामिल है. चीन के साथ मुकाबले के लिए खास तौर पर तैयार M-777 लाइट होवित्जर तोप को अपग्रेड करने का भी अमेरिका ने ऑफर दिया है. जिसमें इसके वजन को और ज्यादा कम करने से लेकर मारक क्षमता बढ़ाने की बात शामिल है. गौरतलब है कि यह तोप चीन से मुकाबला करने के लिए लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक की पहाड़ियों में तैनात है.
भारत अमेरिका के साथ 26F-18 लड़ाकू विमान की डील फाइनल कर सकता है. दरअसल, भारत ने स्वदेशी तकनीक से निर्मित एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत को लॉन्च किया था और इसके लिए एक बेहतरीन फाइटर एयरक्राफ्ट की जरूरत थी. जानकारों के मुताबिक INS- विक्रांत के लिए 26F-18 सुपर हॉर्नेट काफी बेहतर रहेगा. पीएम मोदी इस डील पर भी मुहर लगा सकते हैं.
बीते एक दशक में भारत की रक्षा नीति में काफी बदलाव देखने को मिले हैं. कल तक रक्षा सौदों के लिए रूस पर निर्भर रहने वाला भारत, आज की तारीख में कई देशों के साथ अपना डिफेंस डील तेजी से आगे बढ़ा रहा है. इसमें फ्रांस, इजराइल और ब्रिटेन काफी महत्वपूर्ण हैं. हालांकि, अमेरिका के साथ अभी तक बड़े पैमाने पर डील से भारत किनारा करता रहा है. लेकिन, हाल के कुछ वर्षों में रक्षा सौदे में भारत का झुकाव अमेरिका की तरफ भी बढ़ा है. ऐसे में रूस के साथ डील में कमी आना भी स्वाभाविक है.
अब सवाल उठता है कि क्या भारत रूस के साथ रक्षा सौदे से अपना मुंह मोड़ रहा है? इस सवाल के जवाब पर रक्षा के जानकार मानते है कि भारत ऐसा कर रहा है. रक्षा के जानकारों का मानना है कि भारत के लिए जरूरी है कि वह रक्षा क्षेत्र में खुद आत्मनिर्भर बने और नई तकनीकों के साथ लैस हो जाए.
बीते एक साल के दौरान रूस-यूक्रेन की जंग में रूसी हथियारों की मारक क्षमता भी काफी हद तक उजागर हो चुकी है. लिहाजा, डिफेंस मार्केट के तौर पर रूस भारत को अब आकर्षित नहीं कर पा रहा. वहीं, अमेरिका जैसा देश लगातार रक्षा उपकरणों और हथियारों के मामले में अपग्रेडेशन करता जा रहा है. गौरतलब है कि अमेरिका के साथ रक्षा डील न सिर्फ दो देशों के बीच एक व्यापारिक समझौता है, बल्कि जीयो-पॉलिटिक्स की दिशा में भी एक बड़ा उलट-फेर भी है.
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