प्रतिष्ठित रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित मैकेनिकल इंजीनियर और हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स, लद्दाख के निदेशक सोनम वांगचुक आजकल फिर से सुर्ख़ियों में हैं. इससे पहले वे अपने व्यक्तित्व पर 2009 में बनी फ़िल्म ‘3 इडिअट्स’ को लेकर सुर्ख़ियों में थे. इसी फ़िल्म का एक मशहूर डायलॉग था ‘ऑल इज़ वेल’. फ़िल्म में यह डायलॉग वांगचुक का किरदार निभा रहे अभिनेता आमिर ख़ान हर कठिन परिस्थिति में ख़ुद को हौसला देने के लिए कहते हैं. परंतु आज इसी बात को लद्दाख निवासी विपरीत ढंग से क्यों कह रहे हैं?
दरअसल, पिछले कुछ दिनों से लद्दाख के मशहूर इनोवेटर सोनम वांगचुक मीडिया का केंद्र बने हुए हैं. वे 26 जनवरी 2023 को लद्दाख के हालत को लेकर एक आंदोलन करने की तैयारी में थे. परंतु लद्दाख प्रशासन ने उन्हें ऐसा करने से रोका और उन्हें नजरबंद कर दिया. वांगचुक ने यह जानकारी यूट्यूब पर एक वीडियो के माध्यम से दी. आंदोलन शुरू करने से पहले, 21 जनवरी को वांगचुक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम ‘लद्दाख के मन की बात’ नामक संदेश में, लद्दाख के बिगड़ते हुए हालात की बात की. उसी वीडियो में उन्होंने आंदोलन करने के बारे में भी बताया.
वांगचुक ने अपने वीडियो में कहा था कि वह खारदुंगला टॉप पर पांच दिवसीय अनशन पर बैठेंगे. खारदुंगला टॉप 18,000 फीट की ऊँचाई पर है. यहां का तापमान -40 डिग्री सेल्सियस तक रहता है. उन्होंने लद्दाख में बढ़ते उद्योगों, खनन और पर्यटन विकास को लेकर चिंता जताई है. उनका मानना है कि लद्दाख व अन्य हिमालयी क्षेत्रों को औद्योगिक शोषण से सुरक्षा मिलनी चाहिए. क्योंकि, बढ़ते उद्योगों के चलते पर्यावरण पर इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है. इसके साथ ही वे कहते हैं कि, “कश्मीर यूनिवर्सिटी और अन्य शोध संगठनों के हाल के अध्ययनों से निष्कर्ष निकला है कि यदि ठीक से देखरेख नहीं की गई तो लेह-लद्दाख में दो-तिहाई ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे.” जब से उनका ये वीडियो सामने आया है लद्दाख प्रशासन में तनाव का माहौल बन गया है.
आनन-फानन में लद्दाख प्रशासन ने वांगचुक को नज़रबंद कर दिया. उनका आरोप है कि प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाने को लेकर उन्हें नजरबंद कर दिया गया है. जिस तरह लद्दाख की पुलिस मंदिर की दीवार लांघ कर वांगचुक को अपने साथ लेकर गई उस पर सवाल उठ रहे हैं?
वांगचुक ने अपने वीडियो के माध्यम से प्रधान मंत्री व केंद्रीय गृह मंत्री का ध्यान लद्दाख की समस्याओं की ओर आकर्षित किया है. 31 अक्टूबर 2019 को केंद्र सरकार ने लद्दाख को कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था. वांगचुक का आरोप है कि, “तीन साल से केंद्र का यूटी प्रशासन नाकाम रहा है. हर आदमी दुखी है. नौकरियां नहीं मिल रही है. फंड है लेकिन इसका ज्यादातर हिस्सा वापस चला जाता है. 6 हजार करोड़ रुपये का क्या करना है इसका फैसला केवल यहां के उपराज्यपाल ही लेते हैं. इसी बजट का करीब 8-9 प्रतिशत बजट वहां के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा स्थापित हिल कौंसिल के हिस्से आता है.” वे आगे कहते हैं कि, “12000 नौकरियों का वादा किया गया था लेकिन करीब 800 को ही नौकरी मिली वो भी पुलिस में. विकास की कोई भी नई योजना नहीं बनाई गई है.”
वांगचुक के वीडियो से यह भी पता चलता है कि लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के तीन साल बाद जब एक सर्वेक्षण हुआ तो वहां के 95 प्रतिशत लोगों ने लद्दाख प्रशासन को 5 में से 1 या 0 अंक दिये. इसका मतलब यह लगाया जा सकता है कि वहां की जनता इस निर्णय से खुश नहीं है.
लद्दाख के निवासी केंद्र की भाजपा सरकार को उनके द्वारा किए वादे याद दिला रही है. सोनम वांगचुक ने बताया कि भाजपा ने 2020 में लद्दाख हिल काउंसिल चुनाव के लिए जारी घोषणा पत्र में छठी अनुसूची को शामिल किया था. इसके साथ ही 2019 लोकसभा चुनावों में भी यह वादा भाजपा के पहले तीन वादों में शामिल था. परंतु जनता के हाथ केवल निराशा ही लगी। इसीलिये वहां के नागरिक इसके विरुद्ध आवाज़ उठा रहे हैं.
दरअसल, 1949 में संविधान सभा द्वारा पारित छठी अनुसूची, स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद और स्वायत्त जिला परिषदों के माध्यम से आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा का प्रावधान करती है. यह विशेष प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत किया गया है. राज्यपाल को स्वायत्त जिलों को गठित करने और पुनर्गठित करने का अधिकार है. फिलहाल छठी अनुसूची में पूर्वोत्तर के चार राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित विशेष प्रावधान हैं. सितंबर 2019 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की सिफारिश की थी. नया केंद्र शासित प्रदेश, लद्दाख मुख्य रूप से आदिवासी बाहुल्य (97% से अधिक) है. यहां की विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की मंशा से ही ऐसी सिफारिश की गई थी. जनवरी 2022 में गृह मंत्रालय ने केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी के नेतृत्व में “लद्दाख की भाषा, संस्कृति और भूमि के संरक्षण से संबंधित मुद्दों” को लेकर एक कमेटी का गठन किया था.
यहां सवाल उठता है कि दुनिया भर में प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटन के आकर्षण का केंद्र बने लद्दाख को अपने अधिकारों के लिए केंद्र सरकार से संघर्ष क्यों करना पड़ रहा है? लद्दाख के पर्यावरण और वहां के नागरिकों की जायज मांग को उठाने वाले, विश्व पटल पर लद्दाख का नाम रोशन करने वाले मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित, सोनम वांगचुक को नजरबंद करना कहां तक उचित है? क्या प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को लद्दाख समस्या से संबंधित पूरी जानकारी नहीं दी जा रही? यदि जानकारी उन तक नहीं पहुंच रही तो इसके लिये कौन जिम्मेदार है? यदि जानकारी मिलने के बावजूद कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जा रही तो ऐसा क्यों? लद्दाख में रहने वाले कब कहेंगे ‘ऑल इज वेल’?
*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं.
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