विश्लेषण

कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा दुनिया का अंत या इसके सहारे दुनिया जीतने की लालसा

अपनी भविष्यवाणी की गंभीरता और महत्व से लोगों को प्रभावित करने का एक कपटपूर्ण तरीका यह है कि या तो आप उन्हे एक पूर्वानुमान दीजिये या फिर एक तारीख, लेकिन दोनों एक साथ कभी मत दीजिये। ऐसा ही कुछ कृत्रिम बुद्दिमता द्वारा दुनिया को मिटा देने के बारे में हो रहा है। बड़ी शिद्धत से यह दावा तो किया जा रहा है कि एआई दुनिया को मिटा देगा लेकिन ऐसा वो कब करेगा इसका जवाब बड़ी चतुराई से टाल दिया जाता है।

कृत्रिम बुद्धि को प्रलयकारी मानना एक स्वाभाविक मानवीय प्रतिक्रिया है। ऐसी कोई भी तकनीकी ईजाद जो बड़े बदलाव लाने के दावे के साथ बाजार में उतारी जाती है तो वो वृहद स्तर पर लोगों का ध्यान आकर्षित करती है और उसकी अनूगूंज चारो ओर सुनाई पड़ने लगती है। लेकिन जब इस अनोखी तकनीक के असीम शक्ति से लैस होने का भ्रम फैलाया जाता है तो वो सर्वनाश का भय पैदा करती है। हम इंसान अपनी सुरक्षा को लेकर अत्यधिक चिंतित रहते हैं और किसी भी नई चीज को शक की निगाह से देखते है। चैट जीपीटी, बार्ड या एलएलएम जैसी तकनीक की क्षमताओं और शक्त्तियों के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर किए जा रहे दावे हमारे अवचेतन में असुरक्षा का भाव पैदा करते हैं और इस भय जनित घबराहट में हम प्रलय की कल्पना करने लग जाते हैं। पाषाण काल से यह चला आ रहा है कि जब भी किसी अनजानी शक्ति से हमें डर लगता है तो हम उसे देवता का दर्जा दे देते हैं। इस दुष्प्रचार के चलते एआई को हम उसी दृष्टि से देखने लगे है और उसके कुपित होकर मानवता को मिटा देने की चेतावनी से बदहवास होकर बौखलाये हुए हैं।

पिछले महीने वैश्विक प्रभाव रखने वाले बुद्धिजीवीयों और व्यवसाईयों के एक शक्तिशाली समूह ने पत्र लिखकर एआई के विकास पर रोक लगाने की मांग की है। और हाल ही में अग्रणी एआई शोधकर्ता जेफ्री हिंटन ने कहा कि उन्हें डर था कि एआई मानव बुद्धि से आगे निकल सकता है, और आसानी से दुर्भावनापूर्ण उपयोग में लाया जा सकता है। इन कारगुजारीयों से एआई की तीव्र गति से बहती विकास धारा पर कितना प्रभाव पड़ेगा यह कहना तो मुश्किल है। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इसने एआई के सर्वशक्तिमान या भस्मासुर का अवतार बनकर मानवता को नष्ट कर देने वाली चिंता से भरी चर्चाओं को बल प्रदान किया है।

“कृत्रिम बुद्धिमत्ता एक दिन सम्पूर्ण मानवता का विनाश कर देगी” आज के इस आधुनिक संसार में यह विचार उतना ही बचकाना और विवेकशून्य है जितना कि फेसबुक द्वारा मेटावर्स की घोषणा के बाद वास्तविक रूप से मिलना जुलाना खत्म हो जाने की आशंका। वस्तुत: यह एक कारगर विज्ञापन की तरह प्रचार की एक तकनीक है। जिसका उपयोग सिलिकॉन वैली में बैठी दिग्गज तकनीकी कंपनीया अपने व्यवसायिक हितों के साधने, अपने उद्देश्यों की प्राप्ति और निजी फायदे के लिए इस्तेमाल करती हैं। वो अपने आप को महत्वपूर्ण साबित करने के लिए आपको सप्रयास यह समझाते हैं कि उनकी तकनीक इतनी शक्तिशाली है कि वो दुनिया का अस्तित्व मिटा सकती है।

एआई की महत्ता का बखान करने में यह प्रमुखता से बताया जाता है कि एआई के आने से गलत सूचनाए फैलने लगी है जो सृष्टि को गलत दिशा में ले जा सकती है। लेकिन निजी हितों को साधने के लिए असरदार लोगों द्वारा भ्रम की रचना करना और उसे लोगों के दिमाग में भरना, अफवाहे फैलाना, तथ्यों को तोरा मरोड़कर प्रस्तुत करना, इतिहास को अपनी सुविधानुसार बदलना यह सब कृत्य तो सदीयों से होते आ रहे है। ये तो तब भी होता था जब कंप्यूटर या एआई का अस्तित्व कल्पना में भी नही था। उस समय भी सिलसिलेवार ढंग से झूठ फैलाया जाता था, लोगों को बेवकूफ बनाया जाता था। वस्तुत: यह समस्या तकनीक की कम और राजनीतीक ज्यादा है। उदाहरण के लिए 2019 की पहली तिमाही में फेसबुक को 2.2 अरब फर्जी प्रोफाइल हटाने पड़े, एआई का इससे कोई लेना-देना नहीं था। जिनका इस्तेमाल राजनीतीक फ़ायदों के लिए किया जाता था। पक्षपात रहित पारदर्शी नजर से देखे तो एआई अभिशाप नही वरदान है। जिस एआई का सहारा लेकर जितनी मेहनत से एक झूठ गढ़ा जा सकता है उसी तकनीक का सहारा लेकर उससे कहीं अधिक सरलता से उस झूठ का पता लगाया जा सकता है।

पहले पहल जब कंप्यूटर आए थे तब भी इसी तरह का माहौल बनाया गया था। उसे लालबुझक्कड की तरह हर समस्या के समाधान में सक्षम एक अबूझ यंत्र की तरह प्रस्तुत किया गया था जिसका संचालन सीमीत हाथों द्वारा नियंत्रित था। लेकिन आज हम जानते हैं कि कंप्यूटर कोई हौवा नहीं है। और एआई चेतना रहित है। यह तो बस मानव रचित एल्गोरिदमिक निर्देशों की एक श्रृंखला भर है। निहीत सत्य तो यह है कि एआई मनुष्य के इशारों पर नाचने वाला एक खिलौना भर है, जिसका स्वामी मानव ही है। फिर भी ये ताकते अपने निजी फायदे के लिए हमें भयभीत कर एआई को शिवजी के तीसरे नेत्र की तरह प्रस्तुत कर हमारे भगवान बन जाना चाहती हैं। हमें इनके बहकावे से परे रहकर इनके इस षडयंत्र से सावधान रहने की जरूरत है।

एआई दुनिया को मिटा देगा यह कपट भरा विचार सुनते सुनते अब कान पक चुके हैं। इस बात के विरुद्ध आप यह तर्क रख सकते हैं कि मैं लंबे समय से इस काल्पनिक प्रलय की भविष्यवाणीयां सुनते आ रहा हूँ। एआई की मानव पर विजय को फिल्मों में देखता आ रहा हूँ और एआई जनित सर्वनाश के बारे में विज्ञान फंतासी कथाओं में पढ़ता आ रहा हूँ लेकिन दुनिया आज भी कायम है और आगे भी रहेगी। अब तो मुझे इस बात पर तब ही विश्वास होगा जब मैं स्वयं अपनी आंखो के सामने दुनिया को मिटते हुए देखूंगा।

राजकुमार जैन, स्वतंत्र लेखक और विचारक

स्वतंत्र लेखक और विचारक

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