Gymkhana Club: जिमखाना के सरकारी निदेशकों ने क्लब में हुए तथाकथित डेविस कप घोटाले में एक पूर्व कांग्रेसी और एक भाजपा नेता को क्लीन चिट दे दी है. 2022 की आम सभा से पहले पेश सालाना रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई है. सभा में हंगामा ना हो इसलिए वर्चुअल तरीके से की जा रही बैठक में महज 20 फीसदी सदस्यों को ही शामिल करने का फरमान जारी किया गया है. इससे क्लब सदस्यों में भारी रोष है.
जिमखाना में घोटालों और अनियमितता की जांच के लिए नियुक्त सरकारी निदेशक खुद भ्रष्टाचार के मामलों पर लीपापोती के आरोपों में उलझते नजर आ रहे हैं. ऑडिटर की आपत्ति के बावजूद इस साल मार्च में डेविस कप के नाम पर किए गए तथाकथित घोटाले के आरोपी पूर्व कांग्रेसी और एक भाजपा नेता को क्लीन चिट दे दी गई है. जिससे जिमखाना के सरकारी प्रबंधन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं. सदस्यों का आरोप है कि सरकारी प्रबंधन उनकी आवाज दबाने की साजिश के तहत काम कर रहा है. इसलिए जानबूझकर आम सभा की बैठक वर्चुअल तरीके से करने का फैसला किया गया है. इतना ही नहीं इसमें महज 20 फीसदी सदस्यों को ही शामिल किया जाएगा.
2022 की सालाना रिपोर्ट में ऑडिटर ने मार्च में हुए डेविस कप के संदर्भ में किए गए करार और शर्तों को लेकर सवाल उठाया है. ध्यान रहे कि इस टूर्नामेंट के बाद एनसीएलटी ने तत्कालीन प्रशासक ओम पाठक और सचिव जतिंदर पल सिंह को हटाकर 15 निदेशक नियुक्त करने का आदेश दिया था. ऑडिटर के अनुसार क्लब रिकार्ड में इसका कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया है. क्लब ने इसके लिए आयोजन कराने वाली संस्था ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन से क्लब द्वारा खर्च किए गए करीब साढ़े तीन करोड़ रुपए मांगे थे. लेकिन एसोसिएशन ने महज सवा छब्बीस लाख ही वापस दिए हैं. गौरतलब है कि इस टूर्नामेंट के नाम पर करीब दस करोड़ से ज्यादा की रकम स्पोंसरशिप के नाम पर जुटाई गई थी. इस मामले में तत्कालीन प्रशासक ओम पाठक की भूमिका पर भी सवाल खड़े हुए थे. क्योंकि उन्होंने ही विभिन्न विभागों को पात्र लिखकर स्पोंसरशिप के लिए पैसा माँगा था. लेकिन जिमखाना के सरकारी निदेशकों ने अपने जवाब में क्लब को हुए नुकसान की भरपाई के लिए कोई बात ना करके महज यह कहा है कि इस मामले को लेकर किसी तरह का कोई विवाद नहीं है और इस मामले में कारपोरेट कार्य मंत्रालय से बातचीत की जा रही है. आरोप है कि केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत एक पूर्व नौकरशाह पूर्व प्रशासक ओम पाठक और सचिव जतिंदर पाल सिंह के तथाकथित घोटाले पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा हैं. जिससे सदस्यों में बहुत नाराजगी है.
क्लब के सदस्यों की बात करें तो क्लब में फिलहाल विभिन्न श्रेणियों के तहत 15091 सदस्य हैं. इनमें से महज 5206 सदस्यों के पास ही मतदान का अधिकार है. सदस्यों का आरोप है कि सेवानिवृत्ति के बाद क्लब में निदेशक के तौर पर नियुक्त किए गए कुछ कृपा पात्र निदेशक नहीं चाहते कि उनके क्रियाकलापों को लेकर कोई सवाल उठाए. यही वजह है कि उन्होंने 30 दिसंबर को आयोजित होने वाली आम सभा को वर्चुअल तरीके से करने का फैसला किया है. इसमें भी महज एक हजार सदस्य ही हिस्सा लेकर मतदान कर सकते हैं. इससे साफ है कि सरकारी निदेशकों की नीयत में खोट है.
कोरोना काल से ही क्लब प्रबंधन पर आरोप लग रहा था कि वह क्लब के कई सदस्यों को कानूनी लड़ाई के लिए नियुक्त कर क्लब का एक करोड़ रुपए से ज्यादा पैसा खर्च कर दिया है. अब ऐसा ही आरोप सरकारी निदेशकों पर भी लग रहा है. ऑडिटर ने क्लब से जुड़े कानूनी विवादों में लॉ फर्म द्वारा वसूल की गई राशि पर सवाल उठाए हैं. इसमें कहा गया है कि लॉ फर्म ने घंटों के हिसाब से पैसा वसूला है और क्लब ने इस मामले में घंटों की सीमा निर्धारित करने या निगरानी की भी कोशिश नहीं की. इतना ही आंतरिक बैठकों की एवज में भी लॉ फर्म ने पैसा वसूल किया है. इस मामले में सरकारी निदेशकों ने विस्तृत उत्तर देने के बजाए सिर्फ यह जवाब दिया है कि भुगतान तय शर्तों के आधार पर संबंधित प्राधिकारी की अनुमति से किया गया है. सदस्यों का आरोप है कि क्लब के एक निदेशक अपनी खास कानूनी फर्मों को फायदा पहुँचाने के लिए उसे पहले से कई गुणा ज्यादा रकम का भुगतान करा रहे हैं.
गौरतलब है कि आम सभा की बैठक बुलाने का फैसला सरकारी निदेशकों ने क्लब सदस्यों की पहल के बाद लिया गया है. क्लब के 30 वरिष्ठ सदस्यों ने क्लब को ईमेल भेजकर आपातकालीन आम सभा बुलाने की मांग की थी. कंपनी कानून के तहत 30 सदस्यों की लिखित मांग के बाद ऐसी बैठक बुलाना अनिवार्य है. लेकिन खुद पर लग रहे आरोपों से बौखलाए सरकारी प्रबंधन ने 30 सदस्यों के एजेंडे के आधार पर आपातकालीन आम सभा आयोजित करने के बजाए महज 24 घंटे में आम सभा बुलाने का फैसला कर लिया. जिसके लिए न्यूनतम 21 दिन के नोटिस की अनिवार्यता का भी पालन नहीं किया गया है. इसके विरोध में 30 सदस्यों ने सोमवार को फिर से आपातकालीन आम सभा बुलाने की मांग की है. आरोप है कि निदेशक के तौर पर नियुक्त एक नौकरशाह पूर्व प्रशासक ओम पाठक और सचिव जेपी सिंह के कार्यकाल के दौरान सामने आई ऑडिटर की आपत्तियों और सदस्यों के आरोपों को दबाने की कोशिश कर रहे हैं.
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