विश्लेषण

दरबारी नहीं, जमीनी कार्यकर्ताओं को मिलेगी दिल्ली की भाजपा टीम में जिम्मेदारी!

दिल्ली भाजपा की नई टीम के गठन की चर्चा तेज होते ही पार्टी नेताओं में बेचैनी शुरू हो गई है. दिल्ली भाजपा के कई नेता टीम में जगह पाने के लिए, प्रदेश कार्यालय ही नहीं बल्कि केंद्रीय नेताओं से लेकर मंत्रियों तक के दरबार में जुगत भिड़ाते घूम रहे हैं. ख़ास बात यह है कि जमीनी स्तर पर वजूद नहीं होने के बावजूद दरबारी परिक्रमा में माहिर ऐसे ही कई नेता अहम जिम्मेदारियां पाते रहे हैं. हालांकि चर्चा है कि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष केवल चाटुकार और दरबारी नेताओं को अपनी टीम में जगह देने के लिए तैयार नहीं हैं. शायद यही कारण है कि टीम की घोषणा में देरी हो रही है.

विधानसभा में परास्त, मगर निगम में अभेद रही भाजपा

प्रदेश भाजपा की टीम गठन की चर्चा के साथ ही दिल्ली में भाजपा के बीते तीन दशक के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि संगठनात्मक स्तर पर पार्टी कमजोर होती जा रही है. यही वजह है कि 1993 के बाद से आज तक दिल्ली भाजपा विधानसभा चुनाव में फतेह हासिल नहीं कर पाई. हालांकि 1997 में हुए नगर निगम चुनाव में उसने 134 में से 79 सीटो पर विजय पाकर इस पर भी कब्ज़ा कर लिया. उस समय दिल्ली की सत्ता में भी भाजपा की ही सरकार थी.

मगर 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों परास्त हुई भाजपा 2002 के निगम चुनाव में भी महज 16 सीटो पर सिमटकर सत्ता से बाहर हो गई. लेकिन 2007 में नगर निगम का पुनर्गठन हुआ तो निगम वार्डों की संख्या 134 से बढ़कर 272 हो गई और इस बार भाजपा 164 सीट जीतकर फिर सत्ता में वापस आ गई. पांच साल बाद 2012 में उसकी सीटें कम होकर 138 रह गई. सत्ता विरोधी लहर की आशंका से परेशान पार्टी ने 2017 में अमित शाह फॉर्मूले के चलते पुराने पार्षदों की घर वापसी के साथ ही पार्टी ने नए चेहरों पर दांव लगा दिया और परिणाम यह हुआ कि लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटी भाजपा रिकार्ड 181 सीट जीतने में सफल रही.

गुटबाजी और रीढ़ विहीन नेताओं ने किया नुकसान

देश भर में विपक्ष की बेचैनी का कारण बनी भाजपा देश की राजधानी में लगातार कमजोर होती गई. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर दांव लगाने के कारण पार्टी लोकसभा चुनाव में दो बार से दिल्ली की सभी सात सीट जीत रही है. मगर बात दिल्ली विधानसभा चुनाव की हो तो में वह फेल हो जाती है. खास बात यह है कि 2022 के निगम चुनाव में भी भाजपा “आप” के हाथों परास्त हो गई। माना जा रहा है कि पार्टी नेताओं की गुटबाजी, टिकट वितरण में भ्रष्टाचार और रीढ़-विहीन नेताओं ने पार्टी की यह हालत की है. हैरानी की बात तो यह है कि पार्टी में संगठन मंत्री के पद पर तैनात संघ के दो संगठन महामंत्री मंत्री भी खुद को आरोपों से बचा नहीं पाए.

संगठन की मजबूती की जगह दरबारी होते रहे सुशोभित

जमीनी स्तर पर प्रभावशाली तरीके से काम करने वाली पार्टी की दिल्ली में दुर्गति के लिए भी कोई और नहीं बल्कि पार्टी के कई केंद्रीय नेताओं और मंत्रियों को जिम्मेदार माना जाता है. सूत्रों के अनुसार यह नेता टिकट वितरण से लेकर संगठन तक के गठन के समय अपने दरबारियों को अहम जिम्मेदारी से नवाजने का दबाव बनाते हैं. शायद यही वजह है कि दिल्ली भाजपा में कई ऐसे नेताओं को अहम जिम्मेदारी मिलती रही है, जिनका अपना जमीनी वजूद ही नहीं है. पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस बार भी दिल्ली की राजनीति से सरोकार नहीं होने के बावजूद उसमे अपना दखल रखने वाले कई मंत्री और राष्ट्रीय नेता ही नहीं संघ के कई पदाधिकारी भी अपने “चेलों” को संगठन में अहम जिम्मेदारी देने के लिए दबाव बना रहे हैं.

इस बार है मजबूत टीम की उम्मीद

दिल्ली भाजपा में अहम जिम्मेदारी संभालने वाले एक वरिष्ठ नेता की मानें तो इस बार दिल्ली भाजपा की टीम कई मायनों में पहले से मजबूत होगी. इस बार केवल उन्हीं कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी मिलेगी जो लम्बे समय से जमीन पर काम कर रहे हैं और संगठन मजबूत करने की दक्षता रखते हैं. इनमें कुशल रणनीतिकारों से लेकर विभिन्न समुदायों में प्रभाव रखने वाले पार्टी कार्यकर्ता शामिल रहेंगे. केवल केंद्रीय मंत्रियों और नेताओं के दरबार में हाजिरी लगाने वालों को इस बार तवज्जो नहीं दी जाएगी. शायद इसी आशंका के कारण बीते कुछ दिनों से रीढ़-विहीन नेताओं की बेचैनी ज्यादा ही बढ़ी हुई नजर आ रही है.

सुबोध जैन

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