राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा की सियासी पिच पर बेटिंग करने उतरे सचिन पायलट ने खुद अपनी ही सरकार को बैकफुट पर खड़ा कर दिया. 12 दिन से पुलवामा के शहीदों की पत्नियां अपनी मांगो को लेकर धरना दे रही हैं. भाजपा जहां सियासी बढ़त के लिए उनकी ऐसी मांग का समर्थन कर रही थी, जिसका नियमों में प्रावधान नहीं है. वहीं पायलट ने भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से चल रही राजनीतिक अदावत के चलते उसका समर्थन कर दिया.
दरअसल 2019 के पुलवामा अटैक में 40 जवानों की शहादत हुई थी. उनमें पांच जवान राजस्थान के सपूत थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद अशोक गहलोत ने शहीदों के आश्रितों के लिए कारगिल पैकेज की घोषणा की थी. लेकिन 28 फरवरी को पुलवामा के शहीदों की पत्नियों ने सरकार पर वायदा खिलाफी का आरोप लगाते हुए आंदोलन शुरु कर दिया. भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा शहीद स्मारक पर पहले दिन से ही इनके साथ धरने पर बैठे थे.
06 मार्च को धरने पर बैठी शहीदों की विधवाओं ने सचिन पायलट से मुलाकात की और कांग्रेस सरकार पर वायदे पूरे नहीं करने का आरोप लगाया था. तब पायलट ने भी उनका समर्थन करते हुए कहा था कि मांगे पूरी करने में कानूनी बाधा है तो उसे ठीक किया जा सकता है. इसके अगले दिन सरकार के दो मंत्रियों प्रताप सिंह और शंकुतला रावत ने धरने पर बैठी महिलाओं से मिलकर उनकी मांगे मानने का भरोसा दिया था.
मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उसी दिन ट्वीट कर साफ़ कर दिया कि वह ऐसी मांगो को नहीं मानेंगे जो सही नहीं है. दरअसल एक शहीद की विधवा दो प्रतिमाएं लगने के बाद एक चौराहे पर तीसरी प्रतिमा लगवाने की मांग कर रही थी तो एक आश्रित के तौर पर अपने देवर के लिए नौकरी मांग रही थी. जब महिला का नाबालिग बच्चा बड़ा होगा तो उसका भविष्य सुरक्षित कैसे होगा ?
जानकारों की मानें तो इस मामले में अशोक गहलोत सही बात कर रहे हैं. शहीद के आश्रितों में बच्चे की जगह भाई को नौकरी देने के लिए कानून में बदलाव की कोशिश पूरे देश में नया सियासी बवाल खड़ा कर देगी. ऐसे में भाजपा शासित राज्यों में ऐसा आंदोलन शुरू हुआ तो सरकारे बैकफुट पर खड़ी नजर आएंगी.
राजस्थान सरकार में अशोक गहलोत और सचिन पायलट की राजनीतिक अदावत से हर कोई वाकिफ है. मगर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले जिस तरह पायलट भाजपा की पिच पर उतारकर अपनी ही सरकार के खिलाफ बेटिंग कर रहे हैं, वह कांग्रेस को राजनीतिक तौर पर नुकसान पहुंचा सकता है. खुद के लिए सत्ता की हसरत कांग्रेस की सियासी जमीन को दलदल में तब्दील कर सकती है.
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