पुरानी कहावत है, ‘हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती’। यह बात हर उस चीज़ के लिए लागू होती है जिसे हम सोना समझ लेते हैं। फिर वो चाहे आर-ओ से निकलने वाला चमचमाता पानी ही क्यों न हो। क्या आर-ओ का पानी जितना साफ बताया जाता है उतना ही गुणकारी भी होता है? क्या आर-ओ के पानी में वे सभी ज़रूरी तत्व होते हैं जो हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता व के विकास के लिये ज़रूरी हैं? क्या हमें आर-ओ का पानी पीना चाहिए?
अक्सर देखा गया है कि दूषित पानी से गंभीर बीमारियाँ हो जाती हैं। दूषित पानी से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए और पानी को पीने योग्य व स्वच्छ बनाने के लिए रिवर्स ऑस्मोसिस (आर-ओ) व अन्य तरह के कई उपकरण बाज़ार में लाए गये। इन उपकरणों को बनाने वाली कंपनियों के दावे हैं कि उनके उपकरण सर्वश्रेष्ठ हैं। वे दूषित पानी से सभी कीटाणु निकाल कर उन्हें पीने योग्य व स्वच्छ बना देते हैं। परंतु यहाँ सवाल उठता है कि क्या कीटाणुओं के साथ-साथ आर-ओ जैसे ये आधुनिक उपकरण पानी में से ज़रूरी खनिज भी निकाल देते हैं? यदि इसका उत्तर हाँ है तो क्या हमें बिना ज़रूरी मिनरल वाला पानी पीना चाहिए?
विश्व स्वास्थ्य संगठन और ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैण्डर्ड के तय मानकों के अनुसार आर-ओ व अन्य तकनीकों से शुद्ध किए जाने वाले पानी को उसमें मौजूद टोटल डिजाल्वड सॉलिड्स या टीडीएस की मात्रा से स्वच्छ या पीने योग्य कहा जा सकता है। मानव शरीर अधिकतम 500 पार्ट्स प्रति मिलियन (पीपीएम) टीडीएस सहन कर सकता है। यदि यह स्तर 1000 पीपीएम हो जाता है, तो शरीर के लिए नुकसानदेह हैं। फिलहाल, आरओ से साफ़ हुए पानी में 18 से 25 पार्ट्स पीपीएम टीडीएस पाये जाते हैं जो काफी कम है। इसे स्वच्छ पानी तो कह सकते हैं परंतु सेहतमंद नहीं है। 100 से 150 मिलीग्राम/लीटर टीडीएस लेवल के पानी को ही पीने के लिए सही बताया गया है। टीडीएस लेवल 300 मिलीग्राम/लीटर से अधिक वाला पानी स्वाद व सेहत के लिए खराब होता है।
जब हमने सोशल मीडिया पर आर-ओ के पानी संबंधित मिलने वाली विभिन्न जानकारियों को देखा तो सोचा कि क्यों न इसकी जाँच स्वयं ही कर ली जाए। तब हमने मापक की मदद से अपने घर व कार्यालय में अलग-अलग स्रोतों के पानी की जाँच की। आर-ओ से निकलने वाले पानी की टीडीएस मात्रा 20 से 25 के बीच पाई गई। जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किए जाने वाले पानी की टीडीएस मात्रा 100-110 के बीच पाई गई। वहीं जल बोर्ड के पानी को मिट्टी के घड़े में 8 घंटे से अधिक रखने के बाद उस पानी की टीडीएस मात्रा 125-130 के बीच आई। इसका मतलब यह हुआ कि दिल्ली जैसे शहर में जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किए जाने वाले पानी की गुणवत्ता काफ़ी अच्छी है। परंतु जब अपने ही कार्यालय के एक सह-कर्मी के घर के पानी के सैंपल को जाँच गया तो वहाँ आर-ओ का आँकड़ा तो नहीं बदला पर जल बोर्ड का आँकड़ा काफ़ी अधिक पाया गया, 500 से ऊपर। ऐसे इलाक़ों में जब तक सही टीडीएस का पानी उपलब्ध न हो तब तक मजबूरी में आर-ओ का ही पानी पीना चाहिए।
पानी में टीडीएस 100 मिलीग्राम से कम हो तो उसमें चीजें तेजी से घुल सकती हैं। प्लास्टिक की बोतल में बंद पानी में कम टीडीएस हो तो उसमें प्लास्टिक के कण घुलने का खतरा भी होता है। ऐसा पानी स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होता है। ऐसा भी देखा गया है कि कई आर-ओ बनाने वाली कंपनियां पानी को मीठा करने के लिए उसका टीडीएस घटा देती हैं। 65 से 95 टीडीएस होने पर पानी मीठा तो ज़रूर हो जाता है लेकिन उसमें से कई जरूरी मिनरल्स भी निकल जाते हैं। ज़्यादातर लोगों को इससे होने वाले नुक्सान समझ में नहीं आते हैं। आर-ओ पानी में से जहां एक ओर बुरे मिनरल जैसे लेड, आर्सेनिक, मरकरी आदि को निकाल देता है वहीं अच्छे मिनरल यानी कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि को भी निकाल देता है। इस कारण आर-ओ के पानी के लगातार उपयोग से आवश्यक मिनरल हमारे शरीर को नहीं मिल पाते और इनकी शरीर में कमी हो सकती है। अतः ये हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
एक शोध के अनुसार, अगर नियमित रूप से आर-ओ का पानी पीया जाता है तो इसका बुरा प्रभाव हमारे पाचन तंत्र पर भी पड़ता है। पाचन तंत्र के कमजोर होने से पेट संबंधित कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही यदि लम्बे समय तक आर-ओ के पानी को पीया जाए तो उससे हृदय संबंधी समस्याएं, थकावट, सिरदर्द और दिमागी समस्याएं आदि भी हो सकती हैं। पानी में मौजूद गंदगी व खनिज हटने से यह पानी अधिक साफ़ तो हो जाता है लेकिन इसके बाद यह पानी एसिडिक भी हो जाता है जो शरीर के लिए बहुत हानिकारक है। यही नहीं, पानी में मौजूद कार्बोनिक एसिड हमारे शरीर से कैल्शियम की मात्रा को भी कम करने का काम करते हैं। ऐसे में हड्डियों में कमज़ोरी और जोड़ों में दर्द भी शुरू हो जाता है। इसलिये आजकल काफ़ी डॉक्टर आर ओ का पानी बिलकुल भी न पीने की सलाह देते हैं।
कुल मिलाकर यह माना जाए कि हमें बाज़ार के प्रभाव में आ कर और भेड़-चाल में नहीं चलना चाहिए। अपने शहर में जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किए जाने वाले पानी की गुणवत्ता जाँच करने के बाद ही निर्णय लेना चाहिए कि वास्तव में आर-ओ की ज़रूरत है या नहीं। जिन इलाक़ों में पानी का टीडीएस लेवल तय माणकों से अधिक है या खारा पानी आता हो केवल वहीं पर आर-ओ का इस्तेमाल करें। लेकिन उसे आर-ओ से निकालने के बाद कम से कम 24 घंटे तक पहले मिट्टी के घड़े या ताँबे के कलश में रखें। इससे उसकी गुणवत्ता काफ़ी बढ़ जायेगी। अन्य जगहों पर पारंपरिक तरीक़े भी लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। ऐसा करने से हमारे शरीर को मिलने वाले ज़रूरी मिनरल भी मिलते रहेंगे और प्यास भी बुझेगी।
*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं
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