जिमखाना क्लब के भ्रष्टाचार का भूत कंपनी कार्य मंत्रालय की चारदीवारी लांघकर अब दिल्ली पुलिस को भी परेशान करने लगा है. अभी तक आरोप लग रहे थे कि भारत सरकार के सीधे हस्तक्षेप के बावजूद कंपनी कार्य मंत्रालय के अधिकारी और सरकारी नुमाइंदे, यहां हुई वित्तीय अनियमितताओं की जाँच में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. आरोप है कि प्रशासक और निदेशक के तौर पर यहां नियुक्ति पाने वाले सेवानिवृत्त नौकरशाह क्लब को आरामगाह में तब्दील कर लेते हैं.
हैरानी की बात है कि ऐसे ही आरोप निदेशक बने भाजपा नेताओं पर भी लगे हैं. शायद यही वजह है कि जिमखाना का काला सच खंगालने को नियुक्त सरकारी कृपा पात्र खुद ही आरोपों में उलझने लगे हैं. आरोप यह भी है कि जिमखाना से जुड़े मामलों की जांच में कोताही बरती जा रही है. जिसके चलते विशेष मामलों की खास तरीके से जांच करने के लिए मशहूर आर्थिक अपराध शाखा और आला पुलिस अधिकारियों का दामन भी दागदार होने लगा है.
दरअसल बीते साल अगस्त में आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान जिमखाना क्लब के सरकारी निदेशकों ने यहां तिरंगा यात्रा निकाली थी. इस यात्रा की वीडियो-ग्राफी कराने के लिए एक निदेशक ने यहां ड्रोन उडा दिया. जबकि प्रधानमंत्री आवास की दीवार सटी होने के कारण इस इलाके में गर्म गुब्बारे तक उड़ाना प्रतिबंधित है. मामले का खुलासा हुआ तो प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात एसपीजी ने पुलिस को कड़ा पत्र लिखा. लेकिन हैरानी की बात है कि तत्कालीन पुलिस उपायुक्त अमृता गुगुलोथ ने तथ्यों की जानकारी के बावजूद बिना जांच ड्रोन उड़ने की घटना को झुठला दिया.
सूत्रों की माने आला पुलिस अफसरों के हस्तक्षेप के कारण घटना के छह माह बाद भी इस मामले में मुकदमा दर्ज नहीं किया गया. दरअसल जिमखाना के प्रबंधन से जुड़ा एक निदेशक, आईबी में उच्च पद पर रह चुका है. उसी के हस्तक्षेप के चलते दिल्ली पुलिस के आला अधिकारियों ने प्रधानमंत्री आवास की सुरक्षा को भी तवज्जो नहीं दी. उन्हीं के दबाव के चलते इस मामले में मुकदमा दर्ज नहीं किया गया. इनमें से एक अधिकारी कांग्रेस नेताओं का नजदीकी बताया जाता है.
जब चाणक्यपुरी पुलिस वीडियो रिकॉर्डिंग और शिकायत मिलने के बाद भी मामले को दबाने में जुटी रही तो शिकायतकर्ता ने पटियाला हाउस अदालत में शिकायती मुकदमा डाल दिया. जिसमे अदालत ने चाणक्यपुरी थानाध्यक्ष को नोटिस देकर पूछा है कि क्या पुलिस को इस मामले में कोई शिकायत मिली थी ? मिली थी तो क्या उसकी जांच की गई ? और जाँच की गई तो क्या तथ्य सामने आए ? और वह तथ्य अहम थे मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया गया ? मामले में पुलिस को 31 मार्च तक अपनी रिपोर्ट पेश करनी है.
कल तक रसूख के दम पर नियम-कानून को तवज्जो नहीं देने वाले आला पुलिस अधिकारी अब खुद को सेफ रखने को कोशिश में जुटे हैं. सूत्रों का कहना है कि खुद मुकदमा दर्ज करने में अड़ंगा लगा रहे, इन्हीं अफसरों ने SHO को बलि का बकरा बना दिया. हैरानी की बात है कि प्रधानमंत्री आवास की सुरक्षा से जुड़े एक गंभीर मामले में अब भी लीपापोती की कोशिश की जा रही है. क्योंकि मामले का आरोपी कोई और नहीं बल्कि रिटायर्ड आयकर आयुक्त है.
चाणक्यपुरी SHO संजीव वर्मा को थानाध्यक्ष के पद से हटाने को लेकर दिल्ली पुलिस में कोई भी खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है. नई जिला पुलिस उपायुक्त प्रणव तायल कहते हैं कि यह कार्रवाई प्रशासनिक कारणों से की गई है. जिसका खुलासा नहीं किया जा सकता.
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