Shri Krishna Janmabhoomi Case: काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर पर विवाद के बीच, उत्तर प्रदेश में एक और मंदिर-मस्जिद विवाद पनप रहा है. मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि विवाद आठ दशक से अधिक पुराना है और इसमें 13.37 एकड़ भूमि का स्वामित्व शामिल है. गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह में सर्वे को मंजूरी दे दी. हिन्दू पक्ष की याचिका स्वीकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये फैसला दिया. अब ज्ञानवापी की तरह ही शाही ईदगाह का सर्वे कराया जाएगा. हिंदू पक्ष शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की वर्षों से मांग कर रहे हैं.
बता दें कि कृष्ण जन्मभूमि स्थल भारत में सबसे अधिक देखे जाने वाले धार्मिक स्थानों में से एक है. यह उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर मथुरा का मुख्य आकर्षण है. मथुरा और इसके आसपास के क्षेत्र, जिनमें वृन्दावन और गोकुल भी शामिल हैं, भगवान कृष्ण की बचपन की कहानियों से जुड़े हुए हैं और इसलिए महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थान हैं.
यह विवाद 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व से संबंधित है, जिसके बारे में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि यह भूमि भगवान कृष्ण विराजमान की है. याचिकाकर्ताओं ने कटरा केशव देव मंदिर के परिसर से 17वीं सदी की शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की है, उनका दावा है कि मस्जिद भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर बनाई गई थी. कथित तौर पर मस्जिद का निर्माण 1669-70 में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर किया गया था. इससे पहले मई में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने मथुरा अदालत को श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से संबंधित सभी मामलों को चार महीने के भीतर निपटाने का आदेश दिया था.
स्वामित्व के अलावा, विवाद का एक अन्य मुद्दा श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ, मंदिर प्रबंधन प्राधिकरण और शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट के बीच 1968 का समझौता है. कहा जाता है कि समझौते के दौरान मंदिर प्राधिकरण ने जमीन का एक हिस्सा ईदगाह को दे दिया था.
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि इस समझौते की कोई कानूनी वैधता नहीं है क्योंकि श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट, जिसके पास स्थान का स्वामित्व है, इसमें पक्षकार नहीं था. याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि इस प्रकार, अदालत को उस भूमि को देवता को हस्तांतरित करने का आदेश देना चाहिए जिस पर मस्जिद बनाई गई थी.
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ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की तरह, 2019 में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कृष्ण जन्मभूमि मामले ने तूल पकड़ लिया. मामले में पहली याचिका सितंबर 2020 में ‘भगवान श्री कृष्ण विराजमान’ की ओर से लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री और छह अन्य द्वारा मथुरा सिविल कोर्ट में दायर की गई थी. उन्होंने मस्जिद को हटाने और जमीन कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को वापस करने की मांग की थी.
हालांकि, सिविल जज ने 30 सितंबर, 2020 को मुकदमे को गैर-स्वीकार्य बताते हुए खारिज कर दिया. जस्टिस ने कहा कि कोई भी याचिकाकर्ता मथुरा से नहीं है और इसलिए मामले में उसकी वैध हिस्सेदारी है. इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने आदेश में संशोधन के लिए मथुरा जिला अदालत का रुख किया. बाद में उनकी याचिका मंजूर कर ली गई. मुकदमे में ट्रस्ट और मंदिर प्राधिकारियों को पक्षकार बनाया गया है.
2020 के बाद से श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुद्दे पर मथुरा की अदालतों में कम से कम एक दर्जन मामले दायर किए गए हैं. इसी में से एक मामले में आज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह परिसर की सर्वे की मंजूरी दी है.
इतिहासकारों के अनुसार, कृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर, जिसमें कटरा केशव देव मंदिर है, माना जाता है कि जेल की कोठरी के आसपास बनाया गया था. कहा जाता है कि इसी जगह भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था. उनके माता-पिता को अत्याचारी शासक कंस ने कोठरी में बंदी बना लिया था. किंवदंती है कि मंदिर वास्तव में छठी शताब्दी ईसा पूर्व में कृष्ण के परपोते वज्रनाभ द्वारा बनाया गया था. तब से इसे कई बार पुनर्निर्मित किया गया है.
शाही ईदगाह मस्जिद कथित तौर पर 1670 में औरंगजेब द्वारा बनाई गई थी. 1815 में, तत्कालीन बनारस (अब वाराणसी) के राजा पटनी मल ने ईस्ट इंडिया कंपनी से एक नीलामी में 13.77 एकड़ जमीन खरीदी थी. 20वीं सदी की शुरुआत में यह ज़मीन बनारस के राजा की थी. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1935 में एक फैसले में स्वामित्व को बरकरार रखा. करीब 10 साल बाद यह जमीन बिजनेसमैन युगल किशोर बिड़ला ने खरीद ली. उन्होंने क्षेत्र में एक कृष्ण मंदिर बनाने के उद्देश्य से श्री कृष्णभूमि ट्रस्ट का गठन किया. 1958 में, श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ का गठन किया गया और इसने मंदिर ट्रस्ट की ज़िम्मेदारियां संभालीं.
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