विश्लेषण

कांग्रेस से क्यों खफा हैं INDIA गठबंधन के सहयोगी?

2024 के लोकसभा चुनावों से पहले भारत में विपक्षी दलों का एकजुट होना एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम था, जो बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत मोर्चे के रूप में सामने आया. हालांकि अब, जब इंडिया गठबंधन के भीतर कई दलों में कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर असंतोष बढ़ता जा रहा है, तो यह सवाल उठता है कि क्यों सहयोगी दल राहुल गांधी के नेतृत्व से खफा हो रहे हैं और क्या इस असहमति का भविष्य गठबंधन पर असर डालेगा?

कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल

इंडिया गठबंधन का गठन मुख्य रूप से भाजपा को हराने के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन कई विपक्षी नेताओं की तरफ से कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं. कांग्रेस ने कई राज्यों में गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा, लेकिन इन चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा. उदाहरण के तौर पर, हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार ने गठबंधन के भीतर चिंता पैदा कर दी. महाराष्ट्र में कांग्रेस ने एमवीए के तहत चुनाव लड़ा, लेकिन बीजेपी के खिलाफ गठबंधन को कोई सफलता नहीं मिली. इस हार ने कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठाने की शुरुआत की, क्योंकि कई क्षेत्रीय दलों ने महसूस किया कि कांग्रेस का नेतृत्व कमजोर साबित हो रहा है.

जिम्मेदारी से बच नहीं सकती कांग्रेस

कांग्रेस इस समय इंडिया गठबंधन की अगुवाई कर रही है और किस राज्य में गठबंधन करना है और किस राज्य में नहीं करना है, यह कांग्रेस ही तय करती है. कांग्रेस की इच्छा है कि इंडिया गठबंधन के दल और नेता राहुल गांधी का नेतृत्व उसी तरह से स्वीकार करें जिस तरह से एनडीए के दल नरेंद्र मोदी को स्वीकार किए हैं. इसके साथ ही वो कांग्रेस और राहुल पर न तो कोई सवाल उठाएं  और न ही किसी फैसले की आलोचना करें.

अगर कांग्रेस ऐसा चाहती है तो उसे इसके लिए जरूरी सफलता भी हासिल करके दिखानी चाहिए, जो वह नहीं कर पा रही है. कांग्रेस के ही कारण इंडिया गठबंधन को ज्यादातर हारों का सामना करना पड़ रहा है तो कांग्रेस को हार की जिम्मेदारी भी स्वीकार करनी चाहिए.

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बीजेपी के सामने नहीं टिक पाती कांग्रेस

कांग्रेस ने पहले की तुलना में कुछ ज्यादा सीटें जीती हैं, लेकिन यह भी सही है कि उसे ज्यादातर सफलता दूसरे सहयोगी दलों के बूते पर मिली है. जहां कांग्रेस अकेले बीजेपी से लड़ी, या गठबंधन में उसने दबदबा बनाने की कोशिश की, वहां बीजेपी को ही फायदा हुआ और कांग्रेस या इंडिया गठबंधन को नुकसान हुआ. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान, हरियाणा में कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के सहयोगियों की उपेक्षा की और करारी मात खाई.

महाराष्ट्र में भी वह उद्धव ठाकरे को सीएम प्रोजेक्ट करने के विरोध में रही और अपना सीएम बनाने की फिराक में थी. जब नतीजे आए तो पूरे महाविकास अघाड़ी को करारी मात झेलनी पड़ी.

अन्य सहयोगी दल ज्यादा मजबूत हैं

दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन के अन्य घटक बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं, और उसे हरा भी रहे हैं. यूपी में समाजवादी पार्टी, बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडु में डीएमके, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा इसकी मिसाल हैं और इन्हीं दलों के बलबूते पर लोकसभा चुनावों में बीजेपी की सीटें घट सकी थीं. अगर कांग्रेस ने थोड़ी भी मजबूती दिखाई होती, तो केंद्र में इंडिया गठबंधन की सरकार बननी तय थी.

ममता बनर्जी ने की पहल

इंडिया गठबंधन में सबसे पहले ममता बनर्जी ने अपनी आवाज उठाई है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में साफ कहा कि यदि नेतृत्व संभालने का अवसर दिया जाए तो वह गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं.

ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि गठबंधन को अच्छे से चलाने के लिए अब नेतृत्व में बदलाव की जरूरत है, और अगर बाकी नेता इसे चलाने में असफल होते हैं तो वह इसे यहीं से कोलकाता से चलाने के लिए तैयार हैं.

ममता का यह बयान गठबंधन में एक नई राजनीति का संकेत दे रहा है. इसके पीछे तर्क यह है कि ममता बनर्जी ने इंडिया ब्लॉक की नींव रखी थी, लेकिन अब वह महसूस करती हैं कि कांग्रेस इसकी जिम्मेदारी ठीक से नहीं संभाल पा रही है.

सत्यपाल मलिक का समर्थन ममता को

पूर्व केंद्रीय मंत्री और नेता सत्यपाल मलिक ने भी हाल ही में राहुल गांधी की आलोचना की. मलिक ने कहा कि अब कांग्रेस को एक मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता है. उन्होंने ममता बनर्जी या उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं के समर्थन किया, जिनके अनुसार, इन नेताओं के पास स्पष्ट दृष्टिकोण और निर्णय लेने की क्षमता है. मलिक का यह बयान राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा गया, क्योंकि यह कांग्रेस के नेतृत्व पर खुला हमला था और गठबंधन के भीतर ममता के नेतृत्व के पक्ष में आ रहा था.

गठबंधन में आंतरिक मतभेद

इंडिया गठबंधन में तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (यूबीटी), और कांग्रेस जैसे दल शामिल हैं. इन दलों के नेताओं के बीच नेतृत्व को लेकर विचार अलग-अलग हैं. उदाहरण के लिए, समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने भी कहा है कि कांग्रेस को अब तक अपनी जिम्मेदारी सही से नहीं निभाई है. वहीं, कांग्रेस के भीतर कुछ नेताओं ने यह माना कि नेतृत्व का फैसला गठबंधन के भीतर एक सामूहिक निर्णय होना चाहिए, और यह कोई एकतरफा निर्णय नहीं हो सकता.

हरियाणा और महाराष्ट्र में हार के असर

इंडिया गठबंधन के लिए हरियाणा और महाराष्ट्र चुनावों में हार एक बड़ा झटका था. इन दोनों राज्यों में कांग्रेस ने गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा, लेकिन परिणाम उम्मीदों से उलट रहे. खासतौर पर महाराष्ट्र में कांग्रेस के ओवर कॉन्फिडेंस और सीट-बंटवारे के दौरान गलत रणनीतियों ने महा विकास अघाड़ी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया. इस हार के बाद शिवसेना के नेता अंबादास दानवे ने कांग्रेस के रवैये पर सवाल उठाए और कहा कि अगर गठबंधन ने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया होता, तो परिणाम अलग हो सकते थे. यह बयान स्पष्ट करता है कि कांग्रेस के फैसलों और नेतृत्व को लेकर गठबंधन में असंतोष बढ़ रहा है.

ममता बनर्जी और कांग्रेस के बीच बढ़ते मतभेद

ममता बनर्जी की कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर उठाए गए सवालों से यह स्पष्ट होता है कि वह कांग्रेस के साये से बाहर निकलकर खुद को एक स्वतंत्र नेता के रूप में स्थापित करना चाहती हैं. उनका मानना है कि अगर गठबंधन को सफल बनाना है, तो कांग्रेस को अपने अहम को त्यागते हुए क्षेत्रीय दलों को समान स्थान देना होगा. ममता का यह भी मानना है कि उनके नेतृत्व में ही इंडिया ब्लॉक भाजपा का मुकाबला कर सकता है, क्योंकि उन्होंने बंगाल में भाजपा को शिकस्त दी है और उनकी स्थिति मजबूत है.

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राहुल गांधी पर बढ़ती आलोचना

राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की लगातार हार और भाजपा के खिलाफ कमजोर विपक्षी रणनीति ने कई नेताओं को असंतुष्ट किया है. ममता के अलावा, अन्य विपक्षी नेताओं ने भी इस बात का इशारा किया है कि कांग्रेस की आंतरिक राजनीति और नेतृत्व की शैली गठबंधन की एकजुटता को नुकसान पहुंचा रही है. खासकर उन राज्यों में जहां कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, वहां क्षेत्रीय दलों ने अपनी नाराजगी जाहिर की है.

इंडिया गठबंधन के नेताओं की चिंता स्वाभाविक

इंडिया गठबंधन के भीतर बढ़ते असंतोष का मुख्य कारण कांग्रेस के नेतृत्व और रणनीतियों को लेकर उठ रहे सवाल हैं. ममता बनर्जी और अन्य विपक्षी नेता यह महसूस कर रहे हैं कि गठबंधन को सही दिशा में चलाने के लिए कांग्रेस को एक कदम पीछे हटना होगा और नेतृत्व में बदलाव की आवश्यकता है.

हालांकि, कांग्रेस का यह दावा है कि नेतृत्व का फैसला सामूहिक रूप से किया जाएगा, लेकिन अगर इसी तरह के मतभेद जारी रहे तो इंडिया गठबंधन की एकजुटता पर असर पड़ सकता है. 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले यह असंतोष और नेतृत्व की लड़ाई गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक-सामाजिक चिंतक हैं.)

महेंद्र यादव

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