विश्लेषण

क्यों बदला भारत का स्टैंड?

इजरायल और हमास के बीच चल रहे जंग को लेकर दुनिया की सियासत में भी बदलाव देखा जा रहा। आज विश्व का राजनीतिक परिदृश्य काफी बदल चुका है। आज भारत 1947 के वक्त का भारत नहीं है और ना ही दुनिया का नजरिया भारत को लेकर पहले जैसा है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दुनिया में भारत का कद कई गुना ज्यादा बढ़ा है। आज दुनिया के तमाम देश भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं। पीएम मोदी की विदेश नीति और कुटनीति ही है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में दुनिया के देश भारत की ओर देख रहे हैं। भारत भी बार-बार रूस और यूक्रेन से बातचीत के जरिए मसले को सुलझाने की वकालत कर चुका है।

इजरायल और हमास के बीच जंग में भी भारत ने पहले की विदेश नीति से इतर जाकर अलग स्टैंड लिया है। पीएम नरेंद्र मोदी ने हमास के हमले को आतंकी हमला बताया है। उन्होंने जंग के बीच इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू से कहा, कि संकट की इस घड़ी में भारत इजरायल के साथ खड़ा है। हालांकि इससे पहले भारत ने कभी इजरायल का खुलकर समर्थन नहीं किया था। वहीं प्रधानमंत्री ने फिलीस्तीन को लेकर कुछ भी नहीं कहा। हालांकि, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के शासन काल में भारत के फिलिस्तीन से अच्छे रिश्ते रहे हैं।

भारत के इजरायल और फिलिस्तीन के साथ संबंध समय-समय पर बदलते रहे हैं। जब 1947 में संयुक्त राष्ट्र यानी UN में अरबों और यहूदियों के बीच फिलिस्तीन के विभाजन का प्रस्ताव आया, तब भारत ने उसके विरोध में मतदान किया। तत्कालीन पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि अरबों और यहूदियों को ज्यादा स्वायत्तता मिले, इसके अलावा नेहरू यरुशलम को विशेष दर्जा देने के हक में भी थे।

दरअसल, नेहरू राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों को ही आगे बढ़ा रहे थे। गांधी जी मानते थे कि इतिहास में यहूदियों के साथ नाइंसाफी हुई है। हालांकि गांधी जी फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक अलग देश बनाने के विरोध में थे। उनका मानना था कि ऐसा करना 6 लाख अरबी लोगों के साथ अत्याचार होगा।

पंडित जवाहरलाल नेहरू फिलिस्तीन की परेशानी के लिए ब्रिटिश हुकूमत को जिम्मेदार मानते थे। हालांकि इजरायल के निर्माण को लेकर भारत का नजरिया कई वजहों से प्रभावित था। भारत की एक बड़ी आबादी मुस्लिम थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू चुनाव में नुकसान की वजह से मुसलमानों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते थे। इसके साथ ही अरब लोगों के प्रति सहानुभूति भी थी। इतना ही नहीं भारत भारत अरब देशों से भी रिश्ते खराब करना नहीं चाहता था, क्योंकि तत्कालीन सोवियत संघ अरबी लोगों के साथ था। ऐसे में भारत ने भी फिलिस्तीन का साथ दिया।

हालांकि 1950 के दशक में भारत ने इजरायल को मान्यता दे दी, लेकिन 1992 तक दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध नहीं बन पाए। 1992 में भारत के तत्कालीन पीएम पीवी नरसिम्हा राव ने एक बड़ा फैसला लिया और इजरायल के साथ संबंध बनाने की नीति अपनाई। हालांकि, वो फिलिस्तीन के समर्थन से भी पीछे नहीं हटे। कोई भी देश अपने कूटनीतिक रिश्ते राजनीतिक हितों के मद्देनजर ही रखता है। ऐसे में भारत ने इजरायल के साथ बेहतर रिश्ते बनाने का फैसला किया। साथ ही उसकी कूटनीति फिलिस्तीन को साथ लेकर चलने की भी रही।

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मौजूदा वक्त में फिलिस्तीन की जगह भारत के रिश्ते इजरायल से ज्यादा बेहतर और खास दिख रहे हैं। पीएम मोदी का हमास के हमले को आतंकी हमला बताना उसी कड़ी का हिस्सा है। मौजूदा दौर में भारत और इजरायल के बीच काफी मजबूत संबंध है और दोनों देशों के व्यावसायिक हित भी एक दूसरे से जुड़े हैं।

-भारत एक्सप्रेस

प्रशांत पांडेय, संपादक, भारत एक्सप्रेस

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