विश्लेषण

‘जय फिलिस्तीन’ का नारा क्यों?

लोकसभा की सदस्यता की शपथ लेते समय हैदराबाद के सांसद अससुद्दीन ओवैसी ने एक ऐसा नारा लगाया जिस पर पूरा देश चौक गया। उन्होंने ‘जय भीम’, ‘जय मीम’, ’जय तेलंगाना’ और ‘जय फ़िलिस्तीन’ का नारा लगाया। जहां तक ‘जय भीम’ और ‘जय तेलंगाना’ जैसे नारों की बात है तो ये देश के सीमाओं के दायरे में आते हैं। पर एक दूसरे देश की जयकार बोलना, वो भी संसद के भीतर, ये किसी के गले नहीं उतरा। ओवैसी ने एक बहुत ही ग़लत परंपरा की शुरुआत की है। आनेवाले वर्षों में कोई सांसद ‘जय अमरीका’, ‘जय पाकिस्तान’ या ‘जय चीन’ का भी नारा लगा सकता है। इस तरह भारत की संसद संयुक्त राष्ट्र का अखाड़ा जैसी बन जाएगी। इसलिए इस ख़तरनाक प्रवृत्ति पर लोकसभा और राजसभा के अध्यक्षों को फ़ौरन रोक लगानी चाहिए।

भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र

सब जानते और मानते हैं कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है। धर्म निरपेक्ष का मतलब नास्तिक होना नहीं है। बल्कि इसका भाव है, सर्व धर्म समभाव, यानी हर धर्म के प्रति सम्मान का भाव। पर देखने में यह आया है कि भारत में रहने वाले मुसलमानों और हिंदुओं के कुछ नेता सांप्रदायिकता को भड़काने के उद्देश से धार्मिक उन्माद बढ़ाने वाले नारे लगवाते हैं। जिससे उनके वोटों का ध्रुवीकरण हो। जहां एक तरफ़ बरसों से मुसलमानों को अल्पसंख्यक बता कर उनके पक्ष में ऐसे काम किये गये जो संविधान की मूल भावना के विरुद्ध थे। जैसे रमज़ान में सरकारी स्तर पर इफ़्तार की दावतें आयोजित करना। अगर ऐसी दावतें अन्य धर्मों के उत्सवों पर भी की जातीं तो किसी को बुरा नहीं लगता। पर ऐसा नहीं हुआ। नतीजा यह हुआ कि हिंदुत्व की राजनीति करने वालों को अपने समर्थकों को उकसाने का आधार मिल गया।

शायद इसी का परिणाम है कि पिछले दस वर्षों में भाजपा के सांसदों और विधायकों ने संसद और विधान सभाओं में ज़ोर-ज़ोर से व सामूहिक रूप से धार्मिक नारे लगाना शुरू कर दिया। इसका परिणाम ये हो रहा है कि अब मुसलमानों के बीच भी उत्तेजना और अक्रमकता पहले से ज़्यादा बढ़ गई है। जबकि ये एक ख़तरनाक प्रवृत्ति है, जिसे सख़्ती से रोका जाना चाहिए वरना समाज में गतिरोध और हिंसा बढ़ेगी। वैसे इस तरह का वातावरण असली मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए भी तैयार किया जाता है। इसलिए समझदार हिंदू और मुसलमान अपने धर्म के प्रति आस्थावान होते हुए भी इस हवा में नहीं बहते हैं।

बड़ी बात

हिंदुत्व का समर्थक कोई पाठक मुझसे तर्क कर सकता है कि हिंदुस्तान में भाजपा के सांसदों और विधायकों को अगर हिन्दुवादी नारे लगाने से रोका जाएगा तो क्या हम फ़िलिस्तीन में जा कर ये नारे लगाएंगे? मेरा उत्तर है कि मैं एक सनातन धर्मी हूं और मेरा परिवार और पूर्वज शुरू से आरएसएस से जुड़े रहे हैं। लेकिन पिछले 30 वर्षों में हिंदुत्व की राजनीति का जो चेहरा मैंने देखा है उससे मन में कई सवाल खड़े हो गये हैं। जब देश की आबादी 141 करोड़ है, इनमें से 97 करोड़ वोटर हैं। उसमें से केवल 36.6 प्रतिशत वोटरों ने ही इस चुनाव में भाजपा को वोट दिया है। मतलब ये कि कुल 111 करोड़ हिंदुओं में से केवल 35 करोड़ हिंदुओं ने बीजेपी को वोट दिया। तो भाजपा सारे हिन्दू समाज के प्रतिनिधित्व का दावा कैसे कर सकती है? चूंकि देश की आबादी में 78.9 प्रतिशत हिंदू हैं और उनमें से एक छोटे से हिस्से ने बीजेपी को वोट दिया है। मतलब बहुसंख्यक हिंदू भाजपा की नीतियों से सहमत नहीं हैं।

बीजेपी हिंदू धर्म के पुरोधा कैसे हुए?

हम सब मानते हैं कि हमारा धर्म सनातन धर्म है। जिसका आधार है वेद, पुराण, गीता, भागवत, रामायण आदि ग्रंथ। क्या भाजपा इनमें से किसी भी ग्रंथ के अनुसार आचरण करती है? अगर नहीं तो वे कैसे हिंदू धर्म के पुरोधा होने का दावा करती है? हमारे धर्म के चार स्तंभ हैं, उन चारों पीठों के शंकराचार्य जिन्हें आदि शंकराचार्य जी ने सदियों पहले भारत के चार कोनों में स्थापित किया था। क्या भाजपा इन चारों शंकराचार्यों को यथोचित सम्मान देती है और इनके ही मार्ग निर्देशन में अपनी धार्मिक नीति बनाती है? अगर नहीं तो फिर बीजेपी हिंदू धर्म के पुरोधा कैसे हुए?

सनातन धर्म में साकार और निराकार दोनों ब्रह्म की उपासना स्वीकृत है। इस तरह उपासना के अनेक मार्ग व अधिकृत संप्रदाय हैं। इसलिए पूरे देश में व्याप्त सनातन धर्म का कोई एक झंडा या एक जय घोष नहीं होता। जैसे ‘जय श्री राम’ किसी अधिकृत संप्रदाय का जयघोष नहीं है। प्रभु श्री राम को लोग ‘जय सिया राम’, ‘राम-राम’ ‘जय रामजी की’ आदि अनेक संबोधनों से पुकारते हैं। ‘जाकी रही भावना जैसी हरि मूरत देखी तिन तैसी’। फिर केवल ‘जय श्री राम’ धार्मिक उदघोष कैसे हुआ?

ऐसी तमाम अन्य सब बातों को भी देख सुनकर कर यह स्पष्ट होता है कि भाजपा का हिंदुत्व सनातन धर्म नहीं है। ये इनकी राजनीति के लिये एक अस्त्र मात्र है। इसका अर्थ यह हुआ कि संसद में चाहे “जय श्री राम”का नारा लगे और चाहे “अल्लाह हो अकबर”का दोनों ही राजनैतिक उद्देश्य से लगाए जाने वाले नारे हैं जिनका उद्घोष संसद में नहीं होना चाहिए। जय फ़िलिस्तीन का नारा तो और भी ख़तरनाक प्रवृत्ति को दर्शाता है। आशा की जानी चाहिए कि संसद के दोनों सदनों के अध्यक्ष इस विषय पर गंभीरता से विचार करके संविधान और संसद की गरिमा बचाने का काम करेंगे।

*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंध संपादक हैं।

रजनीश कपूर, वरिष्ठ पत्रकार

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