विश्लेषण

Year Ender 2023: कर्नाटक और हिमाचल में जीत के बाद भी धीमी रही कांग्रेस की रफ्तार

Year Ender 2023: साल की शुरुआत में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत ने बीजेपी से मुकाबला करने के लिए आवश्यक आत्मविश्वास देने में मदद की. इस साल के दूसरे महीने में कांग्रेस ने तीन उत्तर-पूर्वी राज्य- त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड खो दिए. हालांकि,सबसे पुरानी पार्टी ने इस साल मई में कर्नाटक में अपनी अभूतपूर्व जीत के साथ दक्षिण भारत में अपने एकमात्र गढ़ से भाजपा सरकार को गिराकर फिर से अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाई. हालांकि, कांग्रेस के ख्वाबों को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बड़ा धक्का लगा.

अब जबकि लोकसभा चुनाव में कुछ ही महीने बाकी हैं, कांग्रेस को अपने हिस्से गिनने होंगे, जो गलत हुआ उसे पहचानना होगा और उसे ठीक करना होगा और नई ऊर्जा के साथ मोदी रथ का मुकाबला करना होगा. इस साल की गई गलतियों से सीख लेनी होगी.

कर्नाटक जीत के साथ सुर्खियों में आई कांग्रेस

उत्तर-पूर्वी तीन राज्यों में कांग्रेस की हार मई में कर्नाटक में उसकी ऐतिहासिक जीत के साथ सुर्खियों में आई. पार्टी ने राज्य में विधानसभा की 224 सीटों में से 43.2 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 135 सीटें हासिल कीं. पार्टी को इतनी बड़ी जीत 1999 के बाद ही मिली. उस वक्त एसएम कृष्णा के नेतृत्व में कांग्रेस ने 40.84 वोट प्रतिशत के साथ 132 सीटें जीतीं थीं. कर्नाटक की जीत ने विपक्षी ब्रिगेड को नई उम्मीदें दीं. दरअसल, कांग्रेस को 2022 में मिली लगातार चुनावी हार के बाद एक मोमेंटम मिलता दिख रहा था.

18 जुलाई को, 26 विपक्षी दल लोकसभा चुनाव में भाजपा से मुकाबला करने के लिए एक नया गठबंधन बनाने के लिए एक साथ आए. जिसमें कांग्रेस प्रमुख थी. इसके बाद विपक्षी दलों के गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ कर दिया गया.

मिजोरम की ओर कांग्रेस का रुख

विपक्षी गुट की तीन बैठकों के बाद, कांग्रेस, ने अपने सहयोगियों के बीच बातचीत को ठंडे बस्ते में डाल दिया और विधानसभा चुनावों पर ध्यान केंद्रित किया. मिजोरम में, जहां न तो भाजपा और न ही कांग्रेस चुनावी दौड़ में मुख्य दावेदार थे. लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस ने ज़ोरमथांगा सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया. क्योंकि मिज़ो नेशनल फ्रंट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का भागीदार है. ज़ोरम पीपल्स मूवमेंट जो हाल के वर्षों में राज्य में प्रमुखता से उभरा, मिजोरम में सत्ता में आया. कांग्रेस ने सिर्फ एक सीट जीती, जबकि भाजपा ने दो सीटें जीतीं.

राजस्थान में, कांग्रेस मौजूदा सरकारों के सत्ता से बाहर होने के दशकों पुराने रिकॉर्ड को तोड़ने में विफल रही. भाजपा राज्य में कांग्रेस के दरूनी झगड़े का फायदा उठाने में सफल रही. कांग्रेस पेपर लीक कांड और गहलोत की निगरानी में महिलाओं के खिलाफ अपराध दर में वृद्धि के आरोपों की छाया से बाहर नहीं आ सकी. पार्टी ने 69 सीटें जीतीं.जबकि बीजेपी को 115 सीटें मिलीं. राजस्थान की कमान भाजपा को मिल गई.

शिवराज को नहीं रोक पाए कमल नाथ

मध्य प्रदेश में, कई ‘गारंटियों’ के वादों के बावजूद, कमल नाथ के नेतृत्व में कांग्रेस नेतृत्व शिवराज सिंह चौहान के कल्याणकारी उपायों, विशेषकर लाडली बहना योजना के किले को नहीं तोड़ सका. 2018 के विधानसभा चुनावों में चुनावी लड़ाई जीतने के बाद भी, उनकी पार्टी के पूर्व सहयोगी ज्योतिरादित्य सिंधिया के विद्रोह के कारण मध्य प्रदेश में कमल नाथ सरकार गिर गई. पार्टी इस साल 230 में से सिर्फ 66 सीटों पर सिमट गई.

छत्तीसगढ़ में, जहां पार्टी जीत को लेकर सबसे अधिक आश्वस्त थी, खासकर 2018 के चुनावों में 90 में से 68 सीटें हासिल करने के बाद. भाजपा ने भूपेश बघेल सरकार से सत्ता छीन ली. भाजपा ने राज्य में कई घोटालों को अंजाम देने का आरोप लगाकर बघेल के किले को तोड़ दिया, विशेष रूप से महादेव सट्टेबाजी ऐप घोटाला, जो जाहिर तौर पर उनके ताबूत में आखिरी कील था. कांग्रेस 90 में से केवल 35 सीटें ही जीत पाई.

नवंबर के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए एकमात्र उम्मीद की किरण तेलंगाना थी, जहां पार्टी एक दशक पुरानी भारत राष्ट्र समिति सरकार को उखाड़ फेंकने में सक्षम थी. रेवंत रेड्डी के नेतृत्व में पार्टी ने 119 में से 64 सीटें जीतीं और दक्षिण भारत में विपक्ष की पकड़ और मजबूत कर दी.

इस साल के विधानसभा चुनाव साबित करते हैं कि जब भाजपा से सीधी लड़ाई की बात आती है तो कांग्रेस की जीत की संभावना अभी भी कम है, भाजपा के खिलाफ आमने-सामने की लड़ाई के मामले में, पार्टी के पास दो वर्षों में घमंड करने के लिए और कुछ नहीं है. लोकसभा चुनाव से पहले, पिछले साल हिमाचल प्रदेश की जीत और इस साल कर्नाटक की जीत को छोड़कर.

विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन ने उसे अपने गठबंधन सहयोगियों के सामने मोलभाव करने की शक्ति भी कम कर दी है, जिनके साथ पार्टी को पीएम नरेंद्र मोदी से मुकाबला करने के लिए और भी अधिक गठबंधन करने की जरूरत है. चूंकि पार्टी आगामी 2024 की लोकसभा नीति पर नजर रख रही है, इसलिए नरेंद्र मोदी लहर को कैसे रोका जाए, इस पर स्पष्टता की जरूरत है. सीट-बंटवारे, राज्य-स्तर के मामले में अपने गठबंधन सहयोगियों के प्रति उदारता दिखा रही है.

रेवंत रेड्डी के नेतृत्व में कांग्रेस की जीत

नवंबर के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए एकमात्र उम्मीद की किरण तेलंगाना थी, जहां पार्टी एक दशक पुरानी भारत राष्ट्र समिति सरकार को उखाड़ फेंकने में सक्षम थी. रेवंत रेड्डी के नेतृत्व में पार्टी ने 119 में से 64 सीटें जीतीं और दक्षिण भारत में विपक्ष की पकड़ और मजबूत कर दी.

इस साल के विधानसभा चुनाव साबित करते हैं कि जब भाजपा से सीधी लड़ाई की बात आती है तो कांग्रेस की जीत की संभावना अभी भी कम है, भाजपा के खिलाफ आमने-सामने की लड़ाई के मामले में, पार्टी के पास दो वर्षों में घमंड करने के लिए और कुछ नहीं है. लोकसभा चुनाव से पहले, पिछले साल हिमाचल प्रदेश की जीत और इस साल कर्नाटक की जीत को छोड़कर.

विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन ने उसे अपने गठबंधन सहयोगियों के सामने मोलभाव करने की शक्ति भी कम कर दी है, जिनके साथ पार्टी को पीएम नरेंद्र मोदी से मुकाबला करने के लिए और भी अधिक गठबंधन करने की जरूरत है.

चूंकि पार्टी आगामी 2024 की लोकसभा नीति पर नजर रख रही है, इसलिए उसे नरेंद्र मोदी लहर को कैसे रोका जाए, इस पर स्पष्टता की जरूरत है. सीट-बंटवारे के मामले में अपने गठबंधन सहयोगियों के प्रति उदारता दिखाना, राज्य स्तर के ऐसे नेताओं का होना जो चुनाव के दौरान अच्छा प्रदर्शन कर सकें और भाजपा के हिंदुत्व राष्ट्रवादी आख्यान का मुकाबला करने के लिए एक ठोस वैकल्पिक विचार के साथ आना ही पार्टी की एकमात्र उम्मीद हो सकती है.

-भारत एक्सप्रेस

Rakesh Kumar

Sr. Sub-Editor

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