चुनावी विश्लेषण

लोकसभा चुनाव 2024: घोसी में घोषित है सियासी युद्ध, किसकी होगी फतह?

उत्तर प्रदेश के घोसी लोकसभा सीट पर सियासी जंग दिलचस्प हो चली है. घोसी लोकसभा सीट से इण्डिया गठबंधन से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव एवं प्रवक्ता राजीव राय, एनडीए गठबंधन से सुभासपा के राष्ट्रीय प्रमुख महासचिव अरविन्द राजभर एवं बहुजन समाज पार्टी से बालकृष्ण चौहान प्रमुख तौर पर उम्मीदवार हैं.

उत्तर प्रदेश में एनडीए के दलों के बीच सीटों की साझेदारी में घोसी लोकसभा की सीट सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के हिस्से में आई है. घोसी लोकसभा की सीट एनडीए गठबंधन में सुभासपा के कोटे में जाने के बाद घोसी का सियासी माहौल बदला – बदला सा नज़र आ रहा है. इस लोकसभा सीट के चुनावी समीकरणों को समझने के लिए भारत एक्सप्रेस की टीम जब घोसी लोकसभा क्षेत्र में पहुंची तो वहां का माहौल ही कुछ अलग था.

घोसी के प्रत्याशियों पर एक नजर

जब हम घोसी लोकसभा क्षेत्र में पहुंचे, तो समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी राजीव राय के साथ बड़ी संख्या में युवा समर्थक और चाहने वाले नज़र आए. बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी बालकृष्ण चौहान मधुबन इलाक़े के स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर रणनीति तैयार करते दिखे, तो सुभासपा के प्रत्याशी अरविन्द राजभर की जगह उनके पिता और यूपी सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर ग्रामीण इलाक़े में जनसम्पर्क करते दिखे.

2014 के चुनावों में घोसी सीट

भारतीय जनता पार्टी आज़ादी के बाद पहली बार 2014 में घोसी लोकसभा सीट पर जीत दर्ज कर चुकी है. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की तरफ से भाजपा के प्रत्याशी हरिनारायण राजभर को सपा बसपा गठबंधन के प्रत्याशी अतुल राय से हार का सामना करना पड़ा था.

समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी राजीव राय 2014 का लोकसभा चुनाव घोसी से ही लड़े थे लेकिन वह जीत नही दर्ज कर पाए. हालांकि, इसके बाद से राजीव राय लगातार घोसी में बने हुए हैं और लोगों के बीच रहकर उनकी मदद किए हैं इसलिए इस बार उनकी दावेदारी मजबूत मानी जा रही है.

अरविन्द राजभर की सियासी दावेदारी

अरविन्द राजभर सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के पुत्र हैं और सुभासपा के प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव हैं. अरविन्द 2017 में एनडीए गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर बलिया ज़िले की बांसडीह विधानसभा सीट से विधानसभा का चुनाव लड़े थे. हालांकि, अरविन्द चुनाव नहीं जीत सके. उसके बाद अरविन्द राजभर को उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य मंत्री का दर्जा दिया लेकिन कुछ ही दिनों बाद सुभासपा की राहें एनडीए गठबंधन से जुदा हो गईं. 2022 के विधानसभा चुनाव में अरविन्द राजभर वाराणसी ज़िले की शिवपुर विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के गठबंधन की तरफ से उम्मीदवार थे. हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में भी अरविन्द जीत नही दर्ज कर सके.

अरविन्द राजभर 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में हैं. अरविन्द राजभर ने अपने सोशल साइट एक्स पर एक पोस्ट शेयर किया है, जिसमें उनके समर्थक पोस्टर लेकर लहराते नज़र आ रहे हैं जिसपर लिखा है, ” देश में मोदी की गारंटी सहित मोदी सरकार 70 – घोसी में अरविन्द राजभर.”

घोसी लोकसभा क्षेत्र में एनडीए की तरफ से ओमप्रकाश राजभर चुनाव जीतने के लिए हर सम्भव प्रयास करते नज़र आ रहे हैं, लेकिन उनकी पूर्व में की गई सियासी बयानबाज़ी उनके लिए मुसीबत बन रही है.

बालकृष्ण चौहान को कितना मिलेगा अपनों का साथ?

बालकृष्ण चौहान बहुजन समाज पार्टी से फिर एक बार घोसी लोकसभा की सीट पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. बालकृष्ण चौहान 1999 में बसपा के टिकट पर पहली बार घोसी से लोकसभा का चुनाव जीते थे, उन्होंने पूर्व मंत्री और घोसी संसदीय सीट से लगातार चार बार सांसद रहे कल्पनाथ राय के पुत्र सिद्धार्थ राय को हराकर जीत दर्ज की थी. हालांकि, 2004 के लोकसभा चुनाव में बालकृष्ण चौहान बसपा के प्रत्याशी जरूर थे लेकिन चुनाव नही जीत पाए. 2012 में बहुजन समाज पार्टी ने बालकृष्ण चौहान को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निकाल दिया उसके बाद बालकृष्ण चौहान समाजवादी पार्टी में चले गये. 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पहले बालकृष्ण चौहान को अपना प्रत्याशी घोषित किया लेकिन बाद में उनकी जगह राजीव राय को प्रत्याशी बना दिया था. 2018 में बालकृष्ण चौहान ने कांग्रेस का हाथ थामा और 2019 के लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर घोसी से चुनावी मैदान में रहे. हालांकि, 2019 में भी बालकृष्ण को हार का सामना करना पड़ा.

बालकृष्ण चौहान 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में हैं. मीडिया से बातचीत में बालकृष्ण चौहान का कहना है कि “भाजपा जनता के मूलभूत मुद्दों से भटक गई है. जनता के बीच विकास के मुद्दे को लेकर जा रहा हूं. युवा बेरोजगार सड़कों पर घूम रहे है.” बालकृष्ण चौहान के साथ बहुजन समाज पार्टी के परम्परागत मतदाताओं के अलावा अन्य ओबीसी वर्ग के मतदाताओं को अपने साथ जोड़कर रख पाने की बड़ी चुनौती है.

क्या जनता की राय बन पाएंगे राजीव राय?

राजीव राय को 2012 के विधानसभा चुनाव में टीम अखिलेश का हिस्सा माना जाता था, राजीव राय के बारे में कहा जाता है कि राजीव राय को 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से ऑफर था लेकिन राजीव राय नहीं गये. 2014 के लोकसभा चुनाव से एक साल पहले राजीव राय की घोसी में इंट्री हुई थी, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में वह खासा कमाल नही दिखा पाए और मोदी लहर में चुनाव हार गये. जबकि स्थानीय लोगों के अनुसार लोकसभा चुनाव से पहले राजीव राय ने अखिलेश यादव से अपने व्यक्तिगत सम्बन्धों के चलते मऊ शहर में बिजली से संबंधित एवं अन्य कई काम कराए थे.

राजीव राय 2019 के लोकसभा चुनाव में भी घोसी सीट से दावेदार थे लेकिन सपा बसपा गठबंधन में यह सीट बसपा के कोटे में चली गई. 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से राजीव राय इण्डिया गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर समाजवादी पार्टी के सिम्बल पर चुनावी मैदान में हैं.

समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी राजीव राय ने सोशल साइट पर पोस्ट किया है “मेरे घोसी के मालिकों, मैं नेता की हैसियत से नहीं. बेटा और भाई के हैसियत से आपका आशीर्वाद, सहयोग और समर्थन मांग रहा हूं” राजीव राय का कहना है कि वह पिछले एक दशक से घोसी में सक्रिय हैं और बिना भेदभाव के सबकी मदद की है. वह घोसी के हैं, घोसी के रहेंगे और अपने जीवन के अन्तिम क्षण तक घोसी रहेंगे. समाजवादी पार्टी के घोसी सीट से प्रत्याशी राजीव राय की पिछले एक दशक से घोसी में सक्रियता उनके काम आ रही है तो वहीं नॉन यादव ओबीसी वर्ग और दलित वर्ग के लोगों को अपने पक्ष में लामबन्द करने की बड़ी चुनौती भी है.

क्या कहना है स्थानीय लोगों का?

घोसी लोकसभा सीट के अलग – अलग क्षेत्रों में लोगों से बात करने से यहां त्रिकोणीय मुक़ाबले की पूरी सम्भावना दिखती है. स्थानीय युवक मयंक जायसवाल दावा करते हैं कि घोसी सीट पर तीनों दलों में त्रिकोणीय मुक़ाबला होगा. मयंक के मुताबिक़ क्षेत्र में रोज़गार, महंगाई, उद्योग और विकास बड़े मुद्दे हैं. स्थानीय युवा दानिश कहते हैं, “चुनाव में नेता आते हैं फिर कोई पूछने नही आता. बुनकरों की समस्याओं का कोई समाधान नही करते दिखता है.”

घोसी सीट पर मऊ शहर में फाटक पर रेवले ब्रिज की बड़ी समस्या थी जिसकी वजह से शहरवासी बहुत परेशान रहते हैं. स्थानीय किसान नेता देव प्रकाश राय ने इस मामले को उच्च न्यायालय में उठाया और न्यायालय ने ओवरब्रिज बनवाने का आदेश दिया लेकिन अबतक काम नही हो पाया है. शहरवासियों का कहना है कि ओवरब्रिज ना होने की वजह से देर तक जाम का सामना करना पड़ता है.

स्थानीय लोगों की चुनावी बात

स्थानीय युवा अनुज प्रजापति कहते हैं, ” मऊ जिले में ए के शर्मा के मंत्री बनने के बाद विकास के बहुत से काम हुए हैं लेकिन भाजपा ने सुभासपा का उम्मीदवार देकर गलती की है.” आटे की चक्की चलाने वाले रामरुप का दावा करते हैं कि राजीव राय चुनावी रण में आगे हैं क्योंकि उन्होंने गरीबों की मदद की है, कोरोना में लोगों को विदेश से अपने देश अपने पैसे लगाकर लाया है. इसलिए लोग भावनात्मक तौर पर राजीव राय से जुड़े हैं.

स्थानीय भाजपा नेता नाम ना छापने के शर्त पर दावा करते हैं कि अगर भाजपा का प्रत्याशी होता तो चुनाव आसान होता है लेकिन ओमप्रकाश राजभर के पुराने बयानों की वजह से कार्यकर्ता और जनता में नाराजगी है. स्थानीय युवा विशाल मल्ल कहते हैं, ” हमें सांसद ऐसा चाहिए जिसका नाम बताने समय गर्व की अनुभूति हो ना कि शर्मिंदगी का सामना करना पड़े इसलिए इस बार योग्य एवं जनता के बीच रहने वाले उम्मीदवार को चुना जाएगा.”

20 लाख 66 हजार मतदाता करेंगे प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला

घोसी सीट पर करीब 20 लाख 66 हजार मतदाता हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में यहां 57 फीसदी के क़रीब मतदान हुआ था. यहां लोकसभा चुनावों के सातवें और अंतिम चरण में 1 जून को वोट डाले जाएंगे. ज़ाहिर सी बात है की इस सीट पर चुनाव प्रचार के ज़रिए मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबन्द करने के लिए प्रत्याशियों के पर्याप्त समय है, तो तय करेगा कि घोसी लोकसभा सीट का नेतृत्व कौन करेगा.

Divyendu Rai

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