दिल्ली विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजने वाली है वहीं आम आदमी पार्टी ने चुनाव को लेकर अपनी तैयारी बहुत पहले से ही शुरू कर दी है. दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया 9 अगस्त को जेल से बाहर आए उसके बाद उन्होंने दिल्ली की तमाम विधानसभाओं में पद यात्रा का कार्य शुरु किया था और उसी को आगे बढ़ाया जब दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आए थे. कुल मिलाकर पद यात्रा और फिर आतिशी को कमान देने के बाद से आम आदमी पार्टी पूरे चुनावी मोड में है. केजरीवाल की रेवड़ी पर चर्चा हो या एनडीएमसी के सफाई कर्मचारियों के साथ बैठक, ये सारी कवायद चुनावी रणनीति को धार देने के लिए शुरू की गई.
लोकसभा चुनाव 2014 का हो या 2019 का, या फिर 2024 का, हर बार आम आदमी पार्टी का दिल्ली में सूपड़ा साफ हुआ है. भले ही विधानसभा चुनाव में पार्टी अपने झंडे बुलंद करती रही है और सरकार में है. पहली बार 2024 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा था फिर भी बीजेपी को दिल्ली की सातों सीट के जीतने के रिकॉर्ड को तोड़ नहीं पाई, और लोकसभा चुनाव खत्म होते ही पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने साफ कह दिया था कि दिल्ली में कांग्रेस से गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव के लिए हुआ था . विधानसभा का चुनाव पार्टी अकेले ही लड़ेगी.
वहीं हरियाणा में पार्टी का जब कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं हो पाया तो इस बात पर फाइनल मुहर ही लग गई. मजे की बात है कि जम्मू कश्मीर में भी आम आदमी पार्टी को इंडिया ब्लॉक ने एक भी सीट नहीं दिया था, लेकिन आम आदमी पार्टी अपने एक उम्मीदवार को जिताने में सफल रही थी. जब डोडा विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी मेहराज मलिक ने बीजेपी उम्मीदवार गजय सिंह राणा को 4770 से ज्यादा वोटों से हराया था.
बहरहाल आम आदमी पार्टी को डर है कि दिल्ली में जिस तरह पैटर्न चल रहा है कि लोकसभा में बीजेपी और विधानसभा में आम आदमी पार्टी , कहीं इस बार तब्दीली न हो जाए, क्योंकि पार्टी कांग्रेस के साथ जुड़कर भी लोकसभा में करारी हार झेल चुकी है, जबकि केजरीवाल को भरोसा था कि उनको सिंपैथी वोट मिलेगा
जहां अन्य पार्टियां अपनी चुनावी रणनीति को धार देने में जुटी हुई हैं वहां आम आदमी पार्टी ने उम्मीदवारों की अपनी 2 लिस्ट भी जारी कर दी है. आम आदमी पार्टी की पहली लिस्ट में जहां 11 उम्मीदवारों के नाम थे वहीं दूसरी सूची में 20 उम्मीदवारों के नाम हैं. आम आदमी पार्टी ने मनीष सिसोदिया की सीट इस बार बदल दी है . जो बेहद चौंकाने वाली बात लग रही है . दो बार से पटपड़गंज से जीत रहे सिसोदिया को इस बार जंगपुरा से लड़ाया जा रहा है जबकि अभी एक हफ्ते पहले ही पार्टी में एंट्री करने वाले अवध ओझा को पटपड़गंज से टिकट थमा दी गई है .
अवध ओझा कोचिंग सेटर चलाते हैं साथ ही मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं. खैर सिसोदिया की सीट बदलने में कई बात हो सकती है. क्या आम आदमी पार्टी ने एंटी-इनकंबेंसी को काउंटर करने के लिए बीजेपी की रणनीति तो नहीं अपना ली है? आपको याद होगा पिछली बार गुजरात विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी ने सीएम समेत पूरे मंत्रिमंडल को बदल दिया और नतीजा उसके हक में रहा .
दरअसल एंटी-इनकंबेंसी को खत्म करने के लिए मौजूदा उम्मीदवारों को बदलकर उनके खिलाफ पब्लिक की नाराजगी को कम या पूरी तरह खत्म करने की चाल उसकी कामयाब हो गई . यही नहीं, बीजेपी का यह प्रयोग कई राज्यों में सफल भी रहा है, तो क्या आम आदमी पार्टी इसी ढर्रे पर चलकर चुनावी किले को फतह करना चाहती है. जाहिर है पिछली बार मनीष सिसोदिया पटपड़गंज से बामुश्किल 3 हजार वोटों से जीते थे तो इस बार पार्टी ने यहां बीजेपी वाली रणनीति तो नहीं चल दी.
आम आदमी पार्टी अपने इस थीम में बिल्कुल क्लियर है कि जीत के बाद भरत बनीं आतिशी खड़ाऊ केजरीवाल को दे देंगी और ताज भी. मतलब पार्टी को अगर जीत मिली तो राजनीतिक वनवास के बाद केजरीवाल को ताज मिलना निश्चित है, लेकिन पुराना इतिहास देखकर यह बहुत आसान भी नहीं दिखता. जीतनराम मांझी हों या चंपाई सोरेन, दोनों के सीएम पद से हटने के बाद क्या हुआ सबके सामने है. हालांकि आम आदमी पार्टी में ऐसा होगा लगता नहीं, क्योंकि पार्टी आतिशी को फुल फुटेज नहीं दे रही .
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इंडिया गठबंधन जब झारखंड में सत्ता में आया और हेमंत सोरेन को कमान मिली तो भगवंत मान के साथ केजरीवाल तो रांची गए, लेकिन आतिशी नहीं. वहीं तमाम अहम मसलों पर सीधे केजरीवाल या मनीष सिसोदिया खुद बात रखते हैं. जाहिर है पार्टी अपने पत्ते अपने हाथ में ही रखना चाहती है. आपको याद होगा खुद दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना ने आतिशी के कार्य की सराहना की थी. 22 नवबर को इंदिरा गांधी दिल्ली महिला तकनीकी विश्वविद्यालय के सातवें दीक्षांत समारोह में वी के सक्सेना ने कहा था- दिल्ली की मुख्यमंत्री एक महिला हैं और मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि वह अपने पूर्ववर्ती से हजार गुना बेहतर हैं
वो कहावत है कि दूध से जली बिल्ली मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीती है. आम आदमी पार्टी बेहद सधे तरीके से अपने कदम बढ़ा रही है. लोकसभा चुनाव के हार का दंश उसको सता रहा है. उस चुनाव में केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से बेहद मार्मिक अपील की थी . 21 दिन मिली जमानत का उन्होंने बेहद सार्थक उपयोग किया, लेकिन नतीजा सिफर रहा था यही बात केजरीवाल को चुभ रही है. आम आदमी पार्टी को डर है कि कहीं लोकसभा चुनाव वाला हाल न हो जाए
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