Hate Speech In Elections: देश में जब भी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव होता है उस दौरान भड़काऊ भाषणों से चुनावी माहौल को गरमाने और आचार संहिता में अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश की जाती है. इस आरोप में आजम खान, कुलदीप सिंह सेंगर सहित कई नेता अपनी सदस्यता खो चुके हैं. लोकसभा का चुनाव हो रहा है. नेताओं द्वारा वोटर्स को लुभाने के लिए आये दिन बयानबाजी की जा रही है. भाजपा ने सहारनपुर से कांग्रेस प्रत्यासी इमरान मसूद द्वारा भड़काऊ भाषण दिए जाने की शिकायत चुनाव आयोग से की है और कानूनी कार्रवाई की मांग की है. मसूद ने भड़काऊ भाषण देते हुए कहा को अगर बीजेपी दोबारा सत्ता में आ गई तो सबसे पहले इलाज हमारा और तुम्हारा होगा. वहीं असम पुलिस ने मोरीगांव जिले में 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस विधायक आसिफ नजर द्वारा भड़काऊ भाषण देने के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है. यह FIR स्थानीय भाजपा नेता अब्दुल कलाम ने भूरागांव थाने में दर्ज कराई है. इसके अलावा भी कई नेताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई हैं.
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार पहले ही आशंका जाहिर कर चुके थे कि 2024 लोकसभा चुनाव में आयोग को सबसे ज्यादा चुनौती सोशल मीडिया और प्रचार के दौरान नेताओं के भड़काऊ भाषणों से आने वाली है. इसको लेकर चुनाव आयोग द्वारा पहले ही नोटिस जारी किया जा चुका है.
2019 लोकसभा चुनाव के दौरान भड़काऊ भाषण देने के मामले में समाजवादी पार्टी ने नेता आजम खान को अपनी लोकसभा की सदस्यता गवानी पड़ी. जबकि आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषण के मामले में विधानसभा की सदस्यता गवानी पड़ी. इतना ही नहीं, मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी को भी सजा हो गई थी और उनकी सदस्यता चली गई थी, बाद में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई. ऐसा नही है कि इस दायरे में सिर्फ विपक्षी दल के नेता ही आये हं. बीजेपी विधायक खब्बू तिवारी, विक्रम सैनी, राम दुलार गोंड, कुलदीप सिंह सेंगर और अशोक सिंह चंदेल को भी अपनी कुर्सी गवानी पड़ी. 2019 लोकसभा चुनाव में आचार संहिता के उल्लंघन के 479 मामले दर्ज हुए. 385 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई और इनमें 31 मामलों में सजा हुई. 328 मामले अंडर ट्रायल हैं, जबकि एक मामला अभियोजन स्वीकृति के लिए लंबित है. 93 मामलों में पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी है, जिसमें 44 स्वीकृत हो गई, जबकि 49 मामले कोर्ट में लंबित हं. 15 मामलों में आरोपियों की रिहाई हो गई है.
भड़काऊ भाषण या बयान या हेट स्पीच क्या होगी? हालांकि इसकी कोई कानूनी भाषा तय नही है, लेकिन बोलकर, लिखकर, इशारों से या किसी भी तरीके से हिंसा भड़काने की कोशिश होती है या दो समुदायों या समूहों के बीच सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश होती है तो ऐसा करना अपराध माना गया है. इसे ही भड़काऊ भाषण या हेट स्पीच कहते हं. 2017 में लॉ कमीशन ने 267 पेज की रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट में लॉ कमीशन ने कहा था, हेट स्पीच कोई भी लिखा या बोला हुआ शब्द, इशारा या कोई प्रस्तुति हो सकती है, जिसे देखकर या सुनकर डर पैदा हो या हिंसा को बढ़ावा मिले. हालांकि आयोग के रिपोर्ट को अभी लागू नहीं किया गया है. आयोग ने सरकार से हेट स्पीच के लिए अलग धारा जोड़ने की सिफारिश की थी. आयोग ने धारा 153C और 505 A जोड़ने का सुझाव दिया था.
प्रस्तावित 153 C में धर्म, जाति या समुदाय आदि के आधार पर बोलकर, लिखकर या इशारों से धमकाने पर 2 साल की कैद और 5 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है. वहीं कुछ मामलों में भय या हिंसा भड़काने पर सजा देने के लिए 505 A जोड़ा जाए. इस धारा के तहत 1 साल की कैद या 5 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान करने का प्रस्ताव दिया गया है.
IPC 171 (ख)- रिश्वत देकर लोगों को प्रभावित करना.
IPC 171 (ज) – अवैध भुगतान करना.
IPC 171( झ)- निर्वाचन से जुड़े खर्च का ब्यौरा न देना.
IPC 171 (छ)- चुनावों के परिणाम पर प्रभाव डालने को लेकर मिथ्या बयान देना.
इनमें 500 रुपये तक के जुर्माना भी शामिल है. जबकि RP ACT 1951 के तहत निर्वाचन सभाओं में उपद्रव करने वाले को छह माह की सजा और 2000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है. वहीं मतदान केंद्र के पास प्रचार करने पर 250 रुपये जुर्माने का प्रावधान है. मतदान केंद्र के पास बवाल करने पर तीन माह की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.
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नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक देश मे हर साल धारा 153 A के तहत दर्ज होने वाले मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. 2014 में देश में भड़काऊ भाषण के 336 मामले दर्ज हुए थे. वहीं 2020 में 1804 मामले दर्ज हुए हैं. 2020 में 186 मामलों में ट्रायल पूरा हुआ और 38 मामलों में सजा मिली. 2020 में भड़काऊ भाषण के मामलों में कन्विक्शन रेट 20.4% था. इससे पहले 2019 में 159 मामलों का ट्रायल पूरा हुआ था और 42 मामलों में सजा मिली थी. इसका मतलब यह है कि ज्यादातर मामलों में आरोपी बरी हो जाते है.
-भारत एक्सप्रेस
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