General Election 2024: सियासत में ना कोई स्थायी दोस्त होता है और ना ही कोई स्थायी प्रतिद्वंदी; सियासत में वक्त की नज़ाकत देखकर परिस्थितियों से तालमेल बिठाने के लिए दोस्ती-दुश्मनी की जाती है. हालांकि, आज के दौर में सियासी दुश्मनी के दौरान भाषाई मर्यादा को टूटते हुए देखना सामान्य सी बात हो गई है.
देश में लोकसभा के चुनाव हो रहे हैं, ऐसे में यूपी का जिक्र होना उतना ही जरुरी है- जितना टूथपेस्ट में नमक का होना. उत्तर प्रदेश में सियासी पारा बढ़ा हुआ है और माननीय बनने की चाह रखने वालों से लेकर बनवाने वाले उनके समर्थकों तक को सूरज की तपिश में तपना पड़ रहा है और जिसको देखकर वह सीधे मुंह बात नहीं करते थे, उनको भी चाचा नमस्ते बोलना पड़ रहा है.
यह भारतीय संविधान की खूबसूरती है और लोकतंत्र की ताकत है कि सबको समान अधिकार दिया गया है, इसमें ना कोई आरक्षण है और ना ही कोई भेदभाव…बस अगर जेल में बन्द कैदियों की बात ना की जाए तो.
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं और हर सीट का अपना अलग सियासी मिजाज है, हर सीट के अलग समीकरण हैं और हर सीट की अपना वोटिंग पैटर्न और सेंटीमेंट हैं. जब मैं यह खबर लिख रहा हूं तबतक उत्तर प्रदेश में चार चरणों का मतदान हो चुका है और तीन चरणों का मतदान होना बाकी है. लेकिन आज हम बात करेंगे उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री एवं जनसत्ता दल लोकतान्त्रिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह के सियासी प्रताप की.
यूपी की सियासत में दो क्षत्रिय जाति के नेता एक ही दिन अपने समर्थकों को बुलाते हैं, एक भाजपा के समर्थन करने की बात तो दूसरे अपने मन से मतदान करने की बात कहते नजर आते हैं. जो भाजपा के पक्ष में खड़े हैं, वह जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह हैं और जो कथित तौर पर न्यूट्रल हैं, वह रघुराज प्रताप सिंह हैं.
रघुराज प्रताप सिंह ने बढ़ाई सियासी हलचल
रघुराज प्रताप सिंह की कार्यकर्ता बैठक से पहले कौशांबी से बीजेपी उम्मीदवार विनोद सोनकर और केंद्रीय मंत्री संजीव बलियान ने बेंती कोठी पहुंचकर रघुराज सिंह से मुलाकात की थी. कुछ दिन पहले कौशांबी से सपा प्रत्याशी पुष्पेंद्र सरोज ने भी मुलाकात की थी और कुछ दिन पहले ही रघुराज सिंह की बेंगलुरु में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई थी. इसके बाद कहा जाने लगा था कि रघुराज सिंह कौशांबी और प्रतापगढ़ सीट पर बीजेपी को अपना समर्थन दे सकते हैं. इसके बावजूद रघुराज प्रताप सिंह ने लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को समर्थन न देने का ऐलान करते हुए कहा कि अपने समर्थकों से अपने पसंद और विवेक के आधार पर मतदान करने की अपील की है.
अब सभी की नजरें रघुराज सिंह के प्रभाव वाली कौशांबी और प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर टिकी हुई हैं क्योंकि रघुराज सिंह ने कथित तौर पर न्यूट्रल रहने का ऐलान किया है.
उत्तर प्रदेश की सियासत में कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह का अपना एक सियासी मुकाम है. रघुराज सिंह के प्रभाव वाली कौशांबी लोकसभा सीट पर पांचवें और प्रतापगढ़ सीट पर छठे चरण में मतदान होना है. लेकिन दोनों ही सीट पर जनसत्ता दल लोकतान्त्रिक का कोई अपना उम्मीदवार चुनावी मैदान में नहीं है. भाजपा और समाजवादी पार्टी दोनों के प्रत्याशियों ने रघुराज प्रताप सिंह से समर्थन की उम्मीद लगा रखी थी, लेकिन किसी के पक्ष में कोई निर्णय लेने के बजाय उन्होंने न्यूट्रल रहने का फैसला किया है.
ऐसे में बहुत से सियासी सवाल उठते हैं कि आखिर रघुराज सिंह के न्यूट्रल रहने का कारण क्या है?
सूत्रों की मानें तो एक समय रघुराज सिंह समाजवादी पार्टी का समर्थन करने का मन बना चुके थे, इसके लिए समाजवादी पार्टी के मुखिया के पास संदेशा भिजवाया गया कि वह सार्वजनिक तौर पर इण्डिया गठबंधन का समर्थन करने की अपील करें और फिर रघुराज सिंह समर्थन दे देंगे, क्योंकि तब तक समाजवादी पार्टी ने अपने प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया था. इस बात पर सहमति बनते दिखी, लेकिन मामला घोसी लोकसभा सीट को लेकर फंस गया. सूत्रों की मानें तो रघुराज प्रताप सिंह समाजवादी पार्टी से घोसी लोकसभा के प्रत्याशी को बदलकर अपने करीबी को प्रत्याशी बनवाना चाहते थे और जीत की गारंटी भी दे रहे थे, लेकिन रामगोपाल यादव की इस मामले पर सहमति नहीं मिल पाई और समर्थन की सियासी खिचड़ी नहीं पक पाई.
सूत्रों की मानें तो समाजवादी पार्टी के साथ मामला ना बनता देख रघुराज प्रताप सिंह की भाजपा से नजदीकियां बढ़ी और अमित शाह से बेंगलुरु में मुलाकात भी हो गई. मुलाकात के कुछ दिन बाद ही रघुराज सिंह के एक करीबी नेता की भाजपा में वापसी हुई. वापसी के बाद कयास लगाए गये कि रघुराज सिंह भाजपा के प्रत्याशियों के समर्थन की घोषणा करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
जनसत्ता दल लोकतान्त्रिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह के कौशांबी संसदीय सीट से भाजपा प्रत्याशी विनोद सोनकर और प्रतापगढ़ संसदीय सीट से भाजपा प्रत्याशी संगम लाल गुप्ता से ताल्लुकात बहुत अच्छे नहीं बताये जाते हैं.
विनोद सोनकर खुलकर रघुराज सिंह का विरोध करते रहे हैं, तो सपा नेता इंद्रजीत सरोज ने भी उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. विनोद सोनकर ने रघुराज सिंह के विरोधी गुट वाले सभी नेताओं को अपने साथ मिला रखा है, जिसमें राजकुमारी रत्ना सिंह से लेकर शिव प्रसाद मिश्रा सेनानी तक शामिल हैं. वहीं, संगम लाल गुप्ता भी रघुराज प्रताप सिंह के सियासी प्रताप से इतर अपनी सियासत करते रहे हैं. हालांकि, प्रतापगढ़ से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी एसपी सिंह से रघुराज सिंह के रिश्ते तल्ख नहीं हैं.
रघुराज सिंह 28 साल से लगातार प्रतापगढ़ जिले की कुंडा विधानसभा सीट से विधायक चुने जा रहे हैं. रघुराज भाजपा और सपा की सरकारों में हिस्सा रहे, लेकिन उन्होंने कभी किसी के सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ा.
रघुराज सिंह निर्दलीय विधायक चुने जाते थे, लेकिन 2018 में उन्होंने जनसत्ता दल के नाम से अपनी पार्टी बना ली है. कुंडा से रघुराज सिंह खुद विधायक हैं, तो उनके करीबी विनोद सरोज बाबागंज से विधायक हैं. यह दोनों ही विधानसभा सीटें कौशांबी लोकसभा क्षेत्र में आती हैं. इसके अलावा रघुराज सिंह के करीबी अक्षय प्रताप सिंह प्रतापगढ़ क्षेत्र से एमएलसी हैं और वह 2004 में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर प्रतापगढ़ से सांसद भी रह चुके हैं. इस तरह दोनों ही लोकसभा सीटों पर रघुराज सिंह का अपना सियासी प्रभाव है, लेकिन कुंडा क्षेत्र का सियासी समीकरण ऐसा है, जहां पर रघुराज सिंह के जीत का आधार बस क्षत्रिय मतदाता नहीं बल्कि पासी, यादव, कुर्मी और मुस्लिम मतदाता हैं.
समाजवादी पार्टी ने कौशांबी संसदीय सीट पर पासी समुदाय से आने वाले पुष्पेंद्र सरोज, तो प्रतापगढ़ सीट पर कुर्मी समुदाय से आने वाले एसपी सिंह पटेल को चुनावी मैदान में उतारा है. ऐसे में राजा भैया अगर भाजपा के प्रत्याशियों के पक्ष में समर्थन करते तो पासी और कुर्मी समुदाय के लोगों के नाराज होने की संभावना बन सकती थी. रघुराज सिंह भले ही सियासी तौर पर कितने भी प्रतापी क्यों ना हों लेकिन मुस्लिम मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में बिना खुद चुनाव लड़े लामबंद करना असंम्भव सा था.
रघुराज सिंह रणनीति के साथ सियासी नफा नुकसान देखकर सियासत करते रहे हैं. स्थानीय जानकार भी कह रहे हैं कि इन दोनों लोकसभा क्षेत्रों में सियासी मिजाज किसी एक के पक्ष में नहीं दिख रहा है, न ही भाजपा की हवा है और न ही सपा के पक्ष में किसी तरह का माहौल दिख रहा है. प्रतापगढ़ और कौशांबी सीट पर 2014 और 2019 दोनों ही चुनाव में एनडीए जीतने में सफल रहा था, लेकिन इस बार कांटे की लड़ाई मानी जा रही है. ऐसे में रघुराज सिंह अगर दोनों ही संसदीय सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों को समर्थन करते और उसके बाद भी अगर भाजपा नहीं जीत पाती तो उससे रघुराज सिंह का सियासी कद कम होने की आशंका बनी रहती. इसीलिए राजा भैया किसी एक के पक्ष में खड़े होकर अपनी कुंडा सीट के साथ – साथ अपने दल के सियासी समीकरण को नहीं बिगाड़ना चाहते हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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