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गैंग्स ऑफ वासेपुर से लेकर गली गुलियां तक… Manoj Bajpayee की वो 10 फिल्में, जिसमें उनके अभिनय ने उड़ाए दर्शकों के होश

Manoj Bajpayee Films: मनोज बाजपेयी अपने करियर की 100वीं फिल्म रिलीज करने जा रहे हैं. फिल्म का नाम ‘भैया जी’ है जो 24 मई को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है. इसे साउथ फिल्म इंडस्ट्री की तर्ज पर #MB100 कहकर प्रमोट किया गया है.

मनोज बाजपेयी की फिल्मों को देखने के लिए फैंस बेसब्री से इंजतजार करते हैं. वो अपने करियर की अब तक की सबसे अलग फिल्म कर रहे हैं. इसमें उनका खूब मारधाड़ लावा एक्शन दिखाया गया है. ऐसे में आइए उनके 99 फिल्मों में से 14 चुनिंदा रोल्स पर बात कर लेते हैं.

बैंडिट क्वीन (1994)

मनोज बाजपेयी की सबसे पहली फिल्म बैंडिट क्वीन थी जो साल 1994 में रिलीज हुई थी. इसमें उन्होंने डाकू मान सिंह का रोल किया था. इस रोल को देखकर ही उन्हें सत्या मिली थी. पहले वो विक्रम मल्लाह का रोल करने वाले थे. लेकिन फिर शेखर कपूर ने ये रोल निर्मल पांडे को दे दिया. उसके बाद मान सिंह का रोल नसीर कर रहे थे. लेकिन नसीर ने रोल करने से मना कर दिया. तब मनोज को रोल मिला. कहते हैं उस समय फूलन देवी ने इस पर सवाल उठाया और कहा कि ये फिल्म अगर नहीं हटाई गई, तो वो थिएटर के बाहर आत्मदाह कर लेंगी.

सत्या (1998)

मनोज बाजपेयी ‘सत्या’ फिल्म के लिए रामू के पास गए साथ में इरफान खान भी साथ गए थे. तभी रामू को पता चला कि ये मान सिंह का किरदार निभाने वाला एक्टर है. तभी अचानक से रामू उछल पड़े और बोले अगली फिल्म में तुम लीड होंगे. पर मनोज ने 35 हजार रुपये के लिए भाग दौड़ की फिर जाके सत्या फिल्म रिलीज हुई. पहले मनोज लीड रोल करने वाले थे फिर भीकू मात्रे का रोल करना पड़ा. उसके बाद मनोज मुंबई के किंग कहलाने लगे.

शूल (1999)

‘शूल’ के लिए पहले मनोज को कास्ट नहीं किया जाना था. पर वो अनुराग कश्यप से कहते रहते थे कि मुझे करना है, समर वाला रोल. कैरेक्टर का नाम भी मनोज ने ही सुलझाया था. ये इत्तफाक ही है कि पहले मनोज असल जिंदगी में भी अपना नाम बदलकर समर रखना चाहते थे. नवाज ने ‘शूल’ में वेटर का रोल किया था. उनकी फीस 2500 रुपए थी, पर पैसा मिला नहीं. इसके बदले में उन्होंने कई महीनों तक प्रोड्यूसर के ऑफिस में खाना खाकर अपना पैसा वसूल किया. ‘शूल’ के क्लाइमैक्स की बहुत चर्चा होती है. मनोज ने कम से कम इसे 200 बार रिहर्स किया था. इसके बाद वो परफेक्शन आ सका था, जिस वजह से आज उसे याद रखा जाता है.

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अक्स (2001)

साल 2001 में रिलीज हुई फिल्म ‘अक्स’  में मनोज बाजपेयी ने राघवन का किरदार निभाया है. इस फिल्म के लिए उन्हें जितनी सराहना मिलनी चाहिए थी, उतनी मिल नहीं पाई.

पिंजर (2003)

किसी नॉवेल पर बनी बहुत कम फिल्में हैं, जो किताब से बेहतर बन पड़ी हों. ऐसी ही फिल्म है ‘पिंजर’. मनोज ने स फिल्म में क्या शानदार काम किया है. कहते हैं मनोज बाजपेयी उर्मिला मातोंडकर को ज़्यादा तवज्जो दिए जाने पर मेकर्स से नाराज थे. उनको था कि वो लीडिंग रोल में हैं, पर उर्मिला को प्रमोशन में ज़्यादा महत्व दिया जा रहा है.

राजनीति (2010)

साल 2010 में रिलीज हुई फिल्म ‘राजनीति’ को प्रकाश झा द्वारा डायरेक्ट किया गया है. मनोज बाजपेयी इस फिल्म को अपने करियर का टर्निंग पॉइंट मानते हैं. यहां से उनकी दूसरी पारी शुरू होती है. पहले मनोज, अर्जुन रामपाल वाला रोल करने वाले थे. उन्हें प्रकाश झा ने इसके लिए ही चुना था. पर मनोज ने प्रकाश से कहकर अपना रोल बदलवाया. क्योंकि वो वीरेंद्र प्रताप के रोल में खुद को ज्यादा फिट महसूस कर पा रहे थे.

चिटगॉन्ग (2012)

इसमें मनोज ने फ्रीडम फाइटर सूर्य सेन का रोल निभाया था. उनको स्क्रिप्ट इतनी पसंद आई कि उन्होंने इस फिल्म के लिए के भी पैसा भी नहीं लिया था. मनोज के साथ फिल्म में राजकुमार राव, नवाजुद्दीन, जयदीप अहलावत, विजय वर्मा भी थे. इन सभी एक्टर्स ने आगे चलकर अपनी एक अलग पहचान बनाई. इस फिल्म के लिए अनुराग कश्यप ने अमिताभ बच्चन पर फिल्म की डेट आगे बढ़वाने का आरोप लगाया था.

गैंग्स ऑफ वासेपुर (2012)

इस फिल्म पर और सरदार खान पर जितनी बात की जाए कम है. मनोज का GOW से पहले अनुराग कश्यप से कुछ मनमुटाव था. इस फिल्म ने पूरा माहौल बदल दिया. इसे आप 21 वीं सदी की ‘सत्या’ कह सकते हैं. ये हिंदी सिनेमा का माइलस्टोन है. अनुराग सरदार खान के किरदार के बारे में कहते हैं, मनोज को एक बहुत अलग किरदार करना था, जो उनसे बिल्कुल अलग हो. इसके लिए हमें पुराने मनोज बाजपेयी को हटाना था और हमने उनका सिर मुड़वाने का प्लान किया. बाजपेयी ने मेकअप टीम के साथ पूरा एक दिन बिताया. उनके चेहरे के साथ एक्सपेरिमेंट हुए. उन्होंने अपना 6 किलो वजन घटाया.

अलीगढ़ (2015)

‘अलीगढ़’ की स्क्रिप्ट तीन-चार बार मनोज ने पढ़ी. उन्हें लगा कि प्रोफेसर सीरस का समलैंगिग होना बहुत फोकस की बात नहीं होनी चाहिए. ये एक नॉर्मल बात है. फोकस करना है, संगीत और मराठी साहित्य के प्रेम पर. उन्होंने मराठी सीखनी शुरू की. 10-15 दिन तक रोज तीन घंटे मराठी संगीत और कविता सुनते थे. यानी उस किरदार को साहित्य के जरिए पकड़ा. साथ ही एक छोटा-सा वीडियो था बरखा दत्त के साथ प्रोफेसर सीरस का, उसे बार-बार देखा.

गली गुलियां (2017)

खुशनसीब हैं वो लोग जिन्होंने ‘गली गुलियां’ थिएटर में देखी है. ये एक ऐसी फिल्म है कि इस पर थीसिस लिखी जा सकती है. मनोज के किरदार खुद्दूस पर एम.फिल की जा सकती है. मनोज ने इस रोल के बारे में कहा था, “मैं इसकी तैयारी करने मैं अपना मानसिक संतुलन खोने की कगार तक पहुंच गया था. बात इतनी बढ़ गई थी कि मुझे शूटिंग बंद करनी पड़ी. ‘गली गुलियां’, मेरा अब तक का सबसे चैलेंजिंग और एक्टर के तौर पर मेरे लिए सबसे फायदेमंद प्रोजेक्ट रहा”

-भारत एक्सप्रेस 

Akansha

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